Move to Jagran APP

सुरकंडा देवी सिद्धपीठ, यहां गिरा था देवी सती का सिर

राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया। पति के अपमान पर सती यज्ञ कुंड में कूद गई। इस पर शिव सती का शव त्रिशूल में टांगकर आकाश भ्रमण करने लगे। इसी दौरान सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा।

By sunil negiEdited By: Updated: Sun, 10 Apr 2016 09:48 AM (IST)
Hero Image

टिहरी। पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें उन्होंने भगवान शिव को नहीं बुलाया। मायके के मोह में भगवान शिव के मना करने के बाद भी सती यज्ञ में पहुंच गई। वहां दूसरे देवताओं की तरह उन दोनों का स्वागत सम्मान नहीं किया गया। इस पर पति के अपमान और स्वयं की उपेक्षा से क्रोधित होकर सती यज्ञ कुंड में कूद गई। इस पर क्रोधित शिव सती का शव त्रिशूल में टांगकर आकाश भ्रमण करने लगे और इसी दौरान सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा। तभी से यह स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इसका उल्लेख केदारखंड व स्कंद पुराण में भी मिलता है। यह भी कहा जाता है कि राजा इन्द्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था।

सिद्धपीठ मां सुरकण्डा मंदिर के पुजारी रमेश प्रसाद लेखवार ने बताया कि वैसे तो यहां कभी भी मां के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन गंगादशहरे व नवरात्र के मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महत्व माना गया है। मां के दर्शन मात्र से समस्त कष्टों का निवारण होता है।

साल भर खुले रहते हैं मंदिर के कपाट
प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां सुरकंडा का मंदिर टिहरी जनपद में जौनपुर प्रखंड के सुरकुट पर्वत पर स्थित है। यह स्थान समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां मंदिर के कपाट वर्ष भर खुले रहते हैं, लेकिन नवरात्र और गंगा दशहरे पर यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

गंगा दशहरे पर लगता है विशाल मेला
मां सुरकण्डा के दर्शनों का विशेष महत्व है। यह इकलौता सिद्धपीठ है जहां गंगा दशहरे पर मेला विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते है। इस मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महातम्य माना गया है। कहा जाता है कि जब राजा भागीरथ तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाये थे तो उस समय गंगा की एक धारा यहां सुरकुट पर्वत पर भी गिरी थी। तभी से गंगा दशहरे पर मां के दर्शनों का महत्व माना गया है।

ऐसे पहुंचें
यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है। सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन हरिद्वार व देहरादून है। सड़क मार्ग से मां सुरकण्डा मंदिर पहुंचने के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है। देहरादून से वाया मसूरी होते हुए 73 किमी दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंचा जाता है। यहां से दो किमी पैदल दूरी तय कर मंदिर पहुंचा जाता है। ऋषिकेश से वाया चंबा होते हुए 82 किमी की दूरी तय कर भी यहां पहुंचा जा सकता है। यहां यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाओं की सुविधा है। यहां से बदरीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ, दूनघाटी आदि स्थान दिखाई देते हैं।

पढ़ें:- चैत्र नवरात्र के पहले दिन हुई मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।