उत्तराखंड में अब पेड़ पर उगेंगे टमाटर, होगी नोटों की बारिश
अभी तक आप और हमने पौध पर ही टमाटर लगते हुए देखे होंगे, लेकिन पर अब वह दिन दूर नहीं जब पेड़ पर टमाटर लदे नजर आएंगे।
रुद्रपुर, [राहुल पांडेय]: अभी तक आप और हमने पौध पर ही टमाटर लगते हुए देखे होंगे, लेकिन पर अब वह दिन दूर नहीं जब पेड़ पर टमाटर लदे नजर आएंगे। इन टमाटर की कीमत सुनकर भी आप चौंक जाएंगे। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत 1400 रुपये किलो है। यानी टमाटर से पेड़ से नोटों की बरसात होना भी लाजमी है।
जी हां, आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड की भांति देश में भी टमाटर पेड़ों पर लगाने का प्रयोग शुरू हो चुका है। इसकी खासियत है कि यह पेड़ एक सीजन नहीं, बल्कि दस से पंद्रह साल तक फल देगा। सब्जी के साथ ही आयुर्वेदिक औषधि के रूप में भी इसका प्रयोग कर तमाम बीमारियों को भी दूर भगाया जा सकेगा।
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उत्तराखंड राज्य जैव प्रौद्योगिकी परिषद हल्दी के वैज्ञानिकों ने ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैड में पाए जाने टमरैलो यानि सोलेनियम वैक्टम प्रजाति के टमाटर की खेती करने की तैयारी कर ली है। ये प्रजाति हमारे देश में पाए जाने वाले टमाटर की ही प्रजति है।
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यह झाड़ीनुमा पेड़ हैं और इसकी खेती पहली बार 1996 में आस्ट्रेलिया में शुरू हुई थी। इसका पेड़ एक साल में फल देने को तैयार हो जाता है, जो 15 साल तक फलोत्पादन करता है।
टमरैलो जल्द बढ़ने वाला पेड़ है। इसकी ऊंचाई पांच मीटर तक जाती है और 15 से 20 सेंटीग्रेड तापमान इसके लिए जरूरी है। इसके लिए पानी की भी कम आवश्यकता होती है।
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जलवायु के लिहाज से उत्तराखंड में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। इसका उत्पादन बीज व कटिंग के साथ ही टिशू कल्चर तकनीक से भी किया जा सकता है।
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उत्तराखंड राज्य जैव प्रौद्योगिकी परिषद हल्दी के वैज्ञानिक सुमित पुरोहित इन दिनों टमरैलो की हाइड्रोपेानिक तकनीक से पौध तैयार करने में लगे हैं। प्रयोग के तौर पर इसकी खेती यहां कारगर होती दिख रही है। जल्द ही इसकी पौध काश्तकारों को उपलब्ध कराई जाएगी।
अनमोल औषधि है टमरैलो
टमरैलो रामबाण औषधि भी है। इसमें प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। इनमें विटामिन बी, सी, ई के साथ ही आयरन व पोटेशियम भी होता है। ट्रेस एलीमेंट कॉपर और मैगनीज भी पाए जाते हैं। यह फल कब्ज दूर भगाने के साथ ही कोलेस्ट्रोल व शुगर को भी नियंत्रित करता है। हार्ट अटैक को रोकने व आंखों की रोशनी बढ़ाने में भी यह कारगर सिद्ध होगा।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1400 रुपये दाम
देश के बड़े शहरों में आयात कर फिलहाल यह तीन सौ से चार सौ रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत चौदह सौ रुपये प्रति किलो है। यह फल अंडाकार गाढ़ा पीला व लाल रंग का होता है।
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इसका गूदा चटनी, सॉस, प्यूरी, जूस आदि बनाने के लिए देश में अब तक उपलब्ध प्रजातियों से कहीं ज्यादा बेहतर है। इसको नौ सप्ताह तक 37 डिग्री तापमान में भी संरक्षित किया जा सकता है।
काश्तकारों के लिए मुनाफे का सौदा
टमाटर की खेती अभी तक भावर व तराई के खेतों में की जाती है। यह दो से तीन माह की खेती है। इसके लिए काश्तकार हाड़तोड़ मेहनत करता है, पर उसे मेहनत के अनुरूप मुनाफा नहीं मिलता। टमरैलो की खेती से एक पेड़ से 15 वर्ष तक फसल ली जा सकती है। इसकी खेती पर्वतीय क्षेत्रों में भी की जा सकेगी।
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जल्द तैयार हो जाएगी नर्सरी
जैव प्रौद्योगिकी परिषद हल्दी के निदेशक डॉ. एमके नौटियाल के मुताबिक टमरैलो टमाटर की ही प्रजाति है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन और फाइबर पाए जाते हैं। यह सब्जी के रूप मे काश्तकारों को मुनाफा देगा। साथ ही मनुष्य के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाएगा। इसकी खेती के लिए विभाग ने कमर कस ली है। जल्द बड़े पैमाने पर राज्य में नर्सरी तैयार की जाएगी।
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