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जनित आपदा का शिकार है जामक

By Edited By: Updated: Fri, 05 Jul 2013 05:31 PM (IST)
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जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी: जामक गांव एक बार फिर आपदा के जख्मों से सिहर उठा है। 1991 के भूकंप में सबसे ज्यादा जनहानि झेलने वाला यह गांव लगातार कुदरत के कोप का शिकार होता रहा है। लोग इसे से सिर्फ कुदरत ही नहीं बल्कि मनेरी भाली परियोजना का भी नतीजा मान रहे हैं। जब से गांव के नीचे परियोजना की टनल बनी है तब से इस गांव का सुख चैन छिन गया है।

जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर भटवाड़ी ब्लॉक के जामक गांव के ग्रामीण क्षेत्र के अन्य गांवों की तरह चौदह जून को संग्रांद के दिन खेतों में रोपाई की तैयारी कर रहे थे। पंद्रह जून से बारिश ने इस काम में खलल डालना शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने सोचा भी नहीं था कि यह बारिश अपने साथ तबाही लेकर आएगी। अगले दिन भागीरथी और भजारा गाड़ के उफान ने खेतों को काटना शुरू कर दिया। 17 जून को गोविंद सिंह व सुरेश चौहान के खेत के किनारे बने मकान और पांच पक्की गोशालाएं बह गई। शाम तक ग्रामीणों के चार सौ नाली खेत पूरी तरह बाढ़ के भेंट चढ़ गए। साथ ही संपर्क मार्ग भी पानी के तेज बहाव से कटते चले गए।

गांव कर संपर्क पुल कभी भी ढहने की कगार पर हैं। लगातार आपदाएं झेल रहे इस गांव में वर्ष 1991 के विनाशकारी भूकंप से 73 लोगों की जान गई थी। बीते साल तीन अगस्त को आई बाढ़ से इस गांव की खेती की जमीन खतरे की जद में आ गई थी। गांव के ठीक नीचे से गुजर रही मनेरी भाली प्रथम चरण परियोजना की टनल बनने के बाद ही इस पर आपदा की छाया पड़नी शुरू हुई।

परियोजना को अपनी बेशकीमती खेती की जमीन कौड़ियों के भाव देने के साथ ही इसके नुकसान झेलने के बावजूद जल विद्युत निगम भी इस गांव की उपेक्षा कर रहा है। जामक गांव निवासी व क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य सुरेश चौहान बताते हैं कि जामक गांव पहले पूरी तरह सुरक्षित माना जाता था। लेकिन परियोजना निर्माण के बाद ही इस गांव पर चारों ओर से आपदाओं की मार पड़ रही है।

जामक गांव में खेती के साथ ही अन्य परिसंपत्तियों के नुकसान का आंकलन किया जा रहा है। उसके आधार पर ही ग्रामीणों को मदद दी जाएगी।

केके सिंह, एसडीएम भटवाड़ी।

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