उत्तराखंड में चांद से भी 'दूर' है एक गांव, जानने के लिए क्लिक करें
बच्चों में अज्ञात बीमारी से जूझ रहा उत्तरकाशी जिले का लिवाड़ी गांव चांद से भी 'दूर' है। क्योंकि लिवाड़ी तक सड़क से 22 किलोमीटर पैदल नापने में 10 घंटे से ज्यादा वक्त लग रहा है।
By sunil negiEdited By: Updated: Tue, 23 Aug 2016 07:00 AM (IST)
उत्तरकाशी, [शैलेंद्र गोदियाल]: बच्चों में अज्ञात बीमारी से जूझ रहा उत्तरकाशी जिले का लिवाड़ी गांव चांद से भी 'दूर' है। विज्ञान की तरक्की की बदौलत आज धरती से चांद तक पहुंचने में महज आठ घंटे पैंतीस मिनट लगते हैं, लेकिन लिवाड़ी तक सड़क से 22 किलोमीटर पैदल नापने में 10 घंटे से ज्यादा वक्त लग रहा है।
हालांकि, वास्तविक दूरी 16 किलोमीटर है, लेकिन बरसाती नदी पर बनी पुलिया बहने से ग्रामीणों को आजकल पांच किलोमीटर अतिरिक्त चलना पड़ रहा है। नतीजतन, इन दिनों जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे 60 वर्षीय अतर सिंह को अस्पताल तक पहुंचाना चुनौती बना हुआ है। इस गांव की मजबूरी देखिए दो साल में चार लोगों की जान इसीलिए चली गई कि उन्हें वक्त पर इलाज नहीं मिल पाया। पढ़ें-ग्रामीणों ने प्रशासन को दिखाया आईना, खुद बनाया क्षतिग्रस्त पैदल मार्ग
हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटे मोरी ब्लॉक के नौ सौ की आबादी वाले लिवाड़ी गांव पर एक नजर डालते हैं। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 203 किलोमीटर दूर जखोल गांव तक सड़क से पहुंचा जा सकता है। इसके बाद शुरू होती है ऐवरेस्ट सी यात्रा। जखोल से करीब पांच किलोमीटर की पैदल दूरी पर है खेड़ा घाटी। वर्ष 2013 की आपदा में यहां बरसाती नदी पर बना झूला पुल बह गया था। इसके बाद वन विभाग ने लकड़ी का पुल बनाया। 15 दिन पहले यह पुल भी नदी के उफान की भेंट चढ़ गया। ऐसे में ग्रामीणों को गांव तक पहुंचने के लिए धारा गांव होते हुए जाना पड़ रहा है। ऐसे में छह किलोमीटर अतिरिक्त तय करने पड़ रहे हैं। पढ़ें-केदारनाथ मंदिर इतने सौ सालों तक दबा रहा बर्फ के अंदर, जानने के लिए पढ़ें.
लिवाड़ी की प्रधान सुस्तानी देवी बताती हैं कि गांव में आठवीं तक स्कूल है। इसीलिए ज्यादातर बच्चे आठवीं पास हैं। यहां ग्रेजुएट की संख्या मात्र 10 है तो इंटर पास 40। आगे की पढ़ाई के लिए ब्लाक मुख्यालय मोरी में ही सुविधा है। गांव में बिजली है नहीं तो टेलीविजन का सवाल ही नहीं उठता। अखबार से भी इनका कोई नाता नहीं है। यदि दुनिया से जुड़ने का कुछ साधन है तो एकमात्र रेडियो। गांव में अस्पताल है, लेकिन यहां 20 साल से डाक्टर तो छोड़िए स्टाफ तक नहीं है। परिणाम स्वरूप इलाज न मिलने के कारण पिछले पांच सालों में एक गर्भवती, दो नवजात, चार किशोरियां और दो पुरुषों की मौत हो चुकी है।
हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटे मोरी ब्लॉक के नौ सौ की आबादी वाले लिवाड़ी गांव पर एक नजर डालते हैं। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 203 किलोमीटर दूर जखोल गांव तक सड़क से पहुंचा जा सकता है। इसके बाद शुरू होती है ऐवरेस्ट सी यात्रा। जखोल से करीब पांच किलोमीटर की पैदल दूरी पर है खेड़ा घाटी। वर्ष 2013 की आपदा में यहां बरसाती नदी पर बना झूला पुल बह गया था। इसके बाद वन विभाग ने लकड़ी का पुल बनाया। 15 दिन पहले यह पुल भी नदी के उफान की भेंट चढ़ गया। ऐसे में ग्रामीणों को गांव तक पहुंचने के लिए धारा गांव होते हुए जाना पड़ रहा है। ऐसे में छह किलोमीटर अतिरिक्त तय करने पड़ रहे हैं। पढ़ें-केदारनाथ मंदिर इतने सौ सालों तक दबा रहा बर्फ के अंदर, जानने के लिए पढ़ें.
लिवाड़ी की प्रधान सुस्तानी देवी बताती हैं कि गांव में आठवीं तक स्कूल है। इसीलिए ज्यादातर बच्चे आठवीं पास हैं। यहां ग्रेजुएट की संख्या मात्र 10 है तो इंटर पास 40। आगे की पढ़ाई के लिए ब्लाक मुख्यालय मोरी में ही सुविधा है। गांव में बिजली है नहीं तो टेलीविजन का सवाल ही नहीं उठता। अखबार से भी इनका कोई नाता नहीं है। यदि दुनिया से जुड़ने का कुछ साधन है तो एकमात्र रेडियो। गांव में अस्पताल है, लेकिन यहां 20 साल से डाक्टर तो छोड़िए स्टाफ तक नहीं है। परिणाम स्वरूप इलाज न मिलने के कारण पिछले पांच सालों में एक गर्भवती, दो नवजात, चार किशोरियां और दो पुरुषों की मौत हो चुकी है।
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लिवाड़ी के लिए पीएमजीएसवाई में बन रही है सड़क
उत्तरकाशी के जिलाधिकारी दीपेन्द्र कुमार चौधरी बताते हैं कि रास्ता और पुल निर्माण के लिए गोविंद वन्यजीव विहार के उप निदेशक को शनिवार को ही बता दिया था। जहां तक सड़क की बात है तो लिवाड़ी के लिए पीएमजीएसवाई में सड़क बन रही है। साथ ही विद्युतीकरण का कार्य भी चल रहा है।
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उत्तरकाशी के जिलाधिकारी दीपेन्द्र कुमार चौधरी बताते हैं कि रास्ता और पुल निर्माण के लिए गोविंद वन्यजीव विहार के उप निदेशक को शनिवार को ही बता दिया था। जहां तक सड़क की बात है तो लिवाड़ी के लिए पीएमजीएसवाई में सड़क बन रही है। साथ ही विद्युतीकरण का कार्य भी चल रहा है।