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यमुनोत्री से नहीं, सप्तऋषि कुंड से निकलती है यमुना की जलधारा, पढ़ें खबर

यमुना का वास्तविक उद्गम यमुनोत्री मंदिर से 14 किलोमीटर की दूरी पर सप्तऋषि कुंड से है। जो कालिंदी पर्वत से कुछ दूरी पर है।

By sunil negiEdited By: Updated: Sat, 04 Jun 2016 06:41 PM (IST)
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ओंकार बहुगुणा, बड़कोट ( जेएनएन, उत्तरकाशी)। चारधाम यात्रा में यमुनोत्री को प्रथम धाम माना गया है। यहीं से सूर्यपुत्री एवं शनि व यमराज की बहन यमुना का उद्गम माना गया है। हालांकि, यमुना का वास्तविक उद्गम यमुनोत्री मंदिर से 14 किलोमीटर की दूरी पर सप्तऋषि कुंड से है। जो कालिंदी पर्वत से कुछ दूरी पर है। स्थानीय मान्यता है कि आंछरियों और मातृकाओं (परियों) का निवास भी यहीं है और यहीं पर विधिवत पूजा-अर्चना करने से मातृकाओं के दोष से मुक्ति मिलती है।

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यमुनोत्री धाम से पैदल 14 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर हिमालय की खूबसूरत वादियों का दीदार करते हुए सप्तऋषि कुंड पहुंचा जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर सात कुंड हैं, जिनका वर्णन 'स्कंद पुराण' के केदारखंड में भी मिलता है। इन्हीं सात कुंडों में से एक कुंड है अमृत कुंड, जो आदिकाल से ही दृश्यमान नहीं है। लेकिन, ग्लेशियर से पटा हुआ एक कुंड आज भी यहां दृश्यमान है, जिसे सप्तऋषि कुंड कहते हैं। इसी से यमुनाजी की जलधारा निकलकर कालिंदी पर्वत से होते हुए यमुनोत्री धाम पहुंचती है।
सप्तऋषि कुंड के रास्ते में बाली पास व बंदरपुंछ की मनोहारी पर्वत श्रृंखलाएं हृदय को आल्हादित कर देती हैं। सप्तऋषि कुंड के चारों ओर ब्रह्मकमल सहित उच्च हिमालयी क्षेत्र में उगने वाले कई प्रजाति के फूल देखने का मिलते हैं। यमुनोत्री मंदिर में पूजा-अर्चना और आरती करने से पहले पुजारी सप्तऋषि कुंड की सांकेतिक पूजा भी यमुनोत्री मंदिर में ही करते हैं।

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यमुनोत्री के तीर्थ पुरोहित यमुनाजी के शीतकालीन प्रवास स्थान खरसाली में प्रत्येक वर्ष आश्विन 21 गते होने वाले मेले में सप्तऋषि कुंड की इन मातृकाओं, जिन्हें स्थानीय भाषा में रिसिया समूह कहा जाता है, का भी आह्वान करते हैं। यह मेला मात्र मातृकाओं के नाम से ही आयोजित होता है। खरसाली के 86 वर्षीय बुजुर्ग रावल चंद्रमणी उनियाल बताते हैं कि सप्तऋषि कुंड के पास स्वर्ण महल होने की भी किवदंती लोक में प्रचलित है।

सप्तऋषि कुंड को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाना जरूरी है। यमुनोत्री धाम के साथ ही तीर्थयात्री इस क्षेत्र को भी देखना चाहता है। हालांकि, वन विभाग की अनुमति के बाद ही इस क्षेत्र में जाया जा सकता है।
-पुरुषोत्तम उनियाल, सचिव, यमुनोत्री मंदिर समिति

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