गंगोत्री में घाटों से रूठी गंगा, पर्यावरण विशेषज्ञ भी काफी चिंतित
शीतकाल में कम बर्फबारी होने का असर गंगा (भागीरथी) पर साफ दिखाई दे रहा है। खासकर गंगोत्री में इन दिनों भागीरथी का जल स्तर काफी घट गया है, जिससे नदी का बहाव स्नान घाटों से काफी दूर जा चुका है।
शैलेंद्र गोदियाल, [उत्तरकाशी]: शीतकाल में कम बर्फबारी होने का असर गंगा (भागीरथी) पर साफ दिखाई दे रहा है। खासकर गंगोत्री में इन दिनों भागीरथी का जल स्तर काफी घट गया है, जिससे नदी का बहाव स्नान घाटों से काफी दूर जा चुका है। इसे लेकर पर्यावरण विशेषज्ञ भी काफी चिंतित नजर आ रहे हैं।
पं.गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान अल्मोड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक कीर्ति कुमार कहते हैं कि बीते शीतकाल में बारिश व बर्फबारी का औसत काफी कम रहा। ऐसे में नदी का जल स्तर घटना लाजिमी था। बर्फबारी अच्छी हुई होती तो गंगा के जल स्तर भी बरकरार रहता। कीर्ति कुमार ने बताया कि गंगोत्री ग्लेशियर के अध्ययन के लिए उनकी टीम 16 मई को गोमुख जाएगी। वहां बर्फबारी व ग्लेशियर के पिघलने का भी अध्ययन किया जाएगा।
गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित राजेश सेमवाल बताते हैं कि 2015 में गंगोत्री के कपाट 22 अप्रैल को खुल गए थे। तब भागीरथी स्नान घाटों के पास से बह रही थी। लेकिन, इस बार भागीरथी का जल स्तर बीते वर्ष से काफी कम है। कहते हैं पिछले वर्षों में मई के दौरान भी श्रद्धालुओं को स्नान के लिए घाटों तक पानी मिल जाता था। साथ ही मंदिर के आसपास बर्फ भी रहती थी। पर, इस बार बर्फ ऊंची चोटियों पर ही नजर आ रही है।
जल स्तर घटने से स्नान करना चुनौती
प्रसिद्ध धाम गंगोत्री में इस बार यात्रियों की आमद काफी हो रही है। जिससे भागीरथी में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ रही है। लेकिन, नदी का बहाव पहले से बने घाटों से काफी दूर होने के कारण श्रद्धालुओं के लिए स्नान करना चुनौती बना हुआ है। कारण, बीच में बहाव काफी तेज है, जो अनहोनी का सबब बन सकता है।
इस बार छूने को भी नहीं मिली बर्फ
शीतकाल में बर्फबारी काफी कम होने के कारण गंगोत्री जाने वाले यात्रियों को बर्फ छूने तक को नहीं मिल पाई है। जबकि, पिछले वर्षों में ऐसा नहीं था। गंगोत्री जाने वाले यात्रियों को धराली के पास चांगथांग में आसानी से बर्फ छूने को मिल जाया करती थी। साथ ही गंगोत्री के आसपास भी बर्फ रहती थी।
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