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केंद्र-राज्य के झगड़े में फं सी सड़क परियोजना

By Edited By: Updated: Fri, 23 Aug 2013 06:10 PM (IST)
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आसनसोल : केन्द्र व राज्य सरकार के रिश्ते में आयी खटास का असर अब शिल्पांचल के विकास कार्यो पर भी दिखने लगा है। झारखंड की उपराजधानी दुमका से आसनसोल को सीधे जोड़ने के लिए केन्द्र सरकार के सहयोग से बन रही महत्वाकांक्षी सड़क परियोजना अधर में लटक गयी है। केन्द्र सरकार द्वारा सड़क मद में राशि दिए जाने में टालमटोल किए जाने से ठेकेदार का करोड़ों रुपये बकाया हो गया है। फलत: ठेकेदार ने हाथ खड़े कर दिए हैं। पिछले एक माह से सड़क निर्माण कार्य ठप पड़ा हुआ है। अब तो आधी-अधूरी बनायी गयी सड़क भी टूटने लगी है। सड़क मजबूती के लिए प्रारंभिक स्तर पर बिछाई गयी गिट्टी उखड़ने लगी है। जिससे लोगों को पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है। जिसे देखते हुए निर्माण कार्य की देखभाल कर रही पीडब्ल्यूडी रोड्स ने उच्चाधिकारियों को पत्र देकर तत्काल सड़क को चलने लायक बनाने का अनुरोध किया है। दरअसल इस योजना के तहत बंगाल में आसनसोल के जुबली मोड़ से पचगछिया, गौरांडी होते हुए अजय नदी के किनारे रुनाकूड़ाघाट तक करीब 20 किमी लंबी सड़क का चौड़ीकरण व मरम्मतीकरण किया जाना है। जिसके लिए केन्द्र सरकार ने 28 करोड़ रुपये से भी अधिक राशि देने की मंजूरी दी थी।

फरवरी 2012 में सड़क का निर्माण कार्य शुरु हुआ। उस समय केन्द्र व ममता बनर्जी की नेतृत्व वाली राज्य सरकार के रिश्ते मधुर थे। इसलिए कार्य काफी तेज गति से शुरू हुआ। पचगछिया, गौरांडी, लालगंज आदि कुछ कस्बों में अतिक्रमण के कारण भले ही चौड़ीकरण का कार्य शुरू नहीं हुआ। लेकिन बाकी जगहों पर सड़क को सात मीटर चौड़ा किए जाने का काम काफी हद तक पूरा भी हो गया। सड़क की मजबूती के लिए डब्ल्यूएमएम यानि गिट्टी बिछाने का कार्य भी जगह-जगह हुआ। लेकिन दोनों सरकारों के रिश्ते में खटास बढ़ते ही सड़क निर्माण के लिए राशि दिए जाने में लेकिन-परंतु लगने लगा। पीडब्ल्यूडी रोड्स के सहायक अभियंता गौतम चटर्जी ने कहा कि ठेकेदार का करीब 3 करोड़ से अधिक बकाया हो गया है। केन्द्र सरकार से राशि मिलने में हो रही देर से भुगतान नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण कार्य बाधित हो रहा है। हमलोग भुगतान के प्रयास में लगे हुए हैं। वहीं नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि पहले केन्द्र सरकार को अगले दो-तीन माह में होने वाले खर्च की संभावित राशि का ब्योरा दे देने पर आवंटन हो जाता था। बाद में खर्च हुई कुल राशि की जानकारी दे दी जाती थी। लेकिन अब नयी दिल्ली में कभी उपयोग की गयी राशि का पूरा ब्योरा तो कभी कुछ कागजात की मांग कर जानबूझकर देरी की जा रही है।

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