किम को रोक पाने में नाकाम रहे थे ओबामा, काम कर रही ट्रंप की ‘रणनीति’
ट्रंप और ओबामा दोनों ने ही किम पर नकेल कसने की कोशिशें की थीं, लेकिन जानकार मानते हैं कि इसमें ओबामा नाकाम साबित हुए
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन को लेकर पूरी दुनिया में जो हो-हल्ला मचा हुआ है उसको देखते हुए यह कह पाना काफी मुश्किल हो गया है कि यह शोर और तनाव कब खत्म होगा। लेकिन इस बीच एक सवाल यह भी है कि क्या अमेरिका किम को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है। इसके साथ ही एक बड़ा सवाल यह भी है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप में किसकी नीतियां इस बाबत ज्यादा सफल मानी जा सकती हैं। जब इस बारे में दक्षिण कोरिया में तैनात रहे पूर्व भारतीय राजदूत स्कंद एस तायल से दैनिक जागरण ने बात की तो उन्होंने सीधे तौर पर ओबामा की नीतियों को खारिज करते हुए उन्हें इस बाबत नाकाम बताया।
ओबामा की नीतियों के विफल होने की चार बड़ी वजहें
तायल का कहना था कि ओबामा की नीतियां किम को रोक पाने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुईं। वह इसके लिए चार बड़ी वजहों को मानते हैं। उनका कहना है कि ओबामा ने उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण या मिसाइल प्रोग्राम के बाद जो प्रतिबंध लगाए वह काफी लचीले थे। इसके अलावा वह ठीक तरह से लागू भी नहीं किए जा सके। उनकी नीतियों के विफल होने की एक बड़ी वजह यह भी थी कि वह मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अपेक्षा ज्यादा धैर्यवान थे। यही वजह थी कि प्रतिबंधों के बाद भी उत्तर कोरिया लगातार अपने न्यूक्लियर मिशन में आगे बढ़ता चला गया। इन नीतियों के विफल होने की चौथी सबसे बड़ी वजह बनी इस बाबत चीन का नकारात्मक रुख।
जब भारत से ‘बुद्धा इज स्माइलिंग’ को सुनकर बौखला गया था अमेरिका और …यहां पर यह बात ध्यान में रखने वाली है कि चीन उत्तर कोरिया के सबसे करीब है और वहां के लिए व्यापारिक दृष्टि से भी काफी अहम है। उत्तर कोरिया का 80 फीसद व्यापार चीन से ही होता है। लिहाजा अमेरिकी प्रतिबंधों को सही तरह से लागू करने की जिम्मेदारी सबसे पहले उसकी ही बनती है। लेकिन ओबामा प्रशासन में चीन ने अपने व्यापार को पहले की तरह की सामान्य रखा, जिसके चलते ओबामा की नीतियां किम को रोक पाने में नाकाफी साबित हुईं।
ओबामा से काफी एग्रेसिव हैं ‘ट्रंप’
वहीं दूसरी तरफ मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बात की जाए तो वह उत्तर कोरिया को लेकर न सिर्फ काफी एग्रेसिव हैं बल्कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को लागू करवाने के लिए भी काफी कुछ कर रहे हैं। ट्रंप ने यह प्रतिबंध ठीक से लागू हों, ऐसा सुनिश्चित करने के लिए चीन पर दबाव भी बनाया है, जिसका परिणाम भी सामने आया है। दबाव के चलते चीन ने उत्तर कोरिया से होने वाले व्यापार में काफी कमी की है। चीन ने अपने यहां से उत्तर कोरिया को होने वाली तेल की सप्लाई को पूरी तरह से रोक दिया है। इतना ही नहीं चीन ने उत्तर कोरिया की सभी कंपनियों को जनवरी तक देश छोड़ने का अल्टीमेटम तक दे रखा है। वहीं इसी माह डोनाल्ड ट्रंप अपने एशियाई दौरे के दौरान चीन भी जाने वाले हैं, जिसके काफी मायने हैं।
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काम कर रही है ट्रंप की दबाव की रणनीतिकिम को रोकने के लिए यहां पर ट्रंप की दबाव की रणनीति कुछ काम कर रही है। दूसरी तरफ ट्रंप प्रशासन के अन्य लोग बातचीत के जरिए इस विवाद का हल निकालने की भी कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ जिम मैटिस और दूसरी तरफ रेक्स टिलरसन इस काम को पिछले काफी समय से अंजाम दे रहे हैं। वहीं बीते कुछ वर्षों में यह पहली बार देखने को मिला है कि कुछ देशों ने इस तनाव को कम करने के लिए मध्यस्थता करने की बात की है। यहां तक कि टिलरसन ने भारत दौरे के समय इस बात की भी उम्मीद जताई थी कि भारत इस तनाव को कम करने में अमेरिका की मदद कर सकता है। हालांकि तायल का मानना है कि इसमें भारत की भूमिका कुछ सीमित दायरे में हो सकती है। उनके मुताबिक भारत इस बात पर तभी तवज्जो देना चाहेगा, जबकि इस तरह की अपील उत्तर कोरिया की तरफ से की जाएगी।
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चीन पर काफी दारोमदार
वहीं इस बाबत दैनिक जागरण से बात करते हुए अमेरिका में तैनात रहीं पूर्व भारतीय राजूदत मीरा शंकर का कहना था कि उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम रोकने के लिए बराक ओबामा ने भी प्रतिबंधों का ही सहारा लिया था। इन्ही प्रतिबंधों को मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आगे बढ़ाते हुए और कड़ा किया है। मीरा भी मानती हैं कि इस बाबत ट्रंप की दबाव की रणनीति कुछ रंग लाती दिखाई दे रही है। उनका यह भी कहना है कि किम को काबू करने के लिए यह बेहद जरूरी है कि चीन संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को लागू करने में सहयोग करे। उनके मुताबिक जिस तरह का उत्तर कोरिया और चीन में व्यापारिक गठजोड़ है उसको देखते हुए चीन की भूमिका इस तनाव को कम करने में काफी अहम हो जाती है। पूर्व राजदूत ने बातचीत के दौरान यह भी कहा कि यदि इस बाबत चीन सही मायने में काम करेगा तो मुमकिन है कि इस तनाव का बातचीत से भी हल निकल जाए। उत्तर कोरिया के मुद्दे पर दोनों राजदूत एकमत हैं कि इस विवाद का हल युद्ध से नहीं हो सकता है। युद्ध न सिर्फ दोनों देशों के लिए बल्कि चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के लिए भी विध्वंसकारी साबित हो सकता है।
कोरियाई युद्ध से जारी है दोनों देशों में तनातनी
यहां पर यह बात ध्यान में रखनी जरूरी है कि अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच तनातनी भी कोई नई नहीं है। यह तनातनी कोरियाई युद्ध के बाद से लगातार बनी रही है। किम के सत्ता संभालने के बाद इसमें कुछ बढ़ोतरी इसलिए भी हुई है क्योंकि उन्होंने देश को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने की कवायद शुरू की। इस मिशन पर चलते हुए वह बीते दस वर्षों में कई परमाणु हथियार ले जाने वाली मिसाइलों का परीक्षण करने के साथ-साथ हाइड्रोजन बम तक का परीक्षण भी कर चुके हैं। यही वजह है कि पूरी दुनिया में किम को लेकर शोर है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के प्रतिबंध हैं जो किम के हाइड्रोजन बम के परीक्षण के बाद लगाए गए हैं। इसके बाद भी किम अपनी राह पर आगे हैं।
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