ट्रंप की एशिया यात्रा में छिपा है किम समेत चीन के लिए भी साफ मैसेज! जानें कैसे
डोनाल्ड ट्रंप का एशिया का दौरा चीन समेत उत्तर कोरिया के लिए एक साफ संदेश होने वाला है। उनके इस दौरे से जापान और दक्षिण कोरिया को भी काफी उम्मीदें हैं।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। अगले माह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एशिया के पांच देशों के दौरे पर होंगे। इस दौरान वह चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और फिलीपींस जाएंगे। ट्रंप के इस ग्यारह दिवसीय दौरे (3-14 नवंबर) के बेहद खास मायने हैं। खास इसलिए क्योंकि उनका यह दौरा जहां एक तरफ उत्तर कोरिया को शांत बने रहने के लिए साफ संकेत होगा, वहीं दूसरी तरफ चीन के लिए भी इसमें एक मैसेज जरूर होगा। यहां एक खास बात और है। वह ये है कि ट्रंप इस दौरान वियतनाम और फिलीपींस भी जा रहे हैं। ये दोनों ही देश चीन के विरोधी उन गुटों में शामिल हैं जो दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करते आए हैं।
बेहद अहम है ट्रंप का एशियाई दौरा
ट्रंप की यात्रा में आने वाले सभी देशों पर गौर करें तो चीन, जापान और दक्षिण कोरिया का दौरा बेहद खास होने वाला है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जहां चीन और दक्षिण कोरिया की सीमा उत्तर कोरिया से लगती है वहीं जापान से उसकी समुद्री सीमा लगती है। पिछले कुछ वर्षों से जारी तनाव के बाद उत्तर कोरिया से सबसे बड़ा खतरा भी जापान और दक्षिण कोरिया को ही है। लिहाजा इन तीन देशों की यात्रा के दौरान ट्रंप जहां उत्तर कोरिया काे सीधे तौर पर चेतावनी देंगे, वहीं इन देशों को उनकी सुरक्षा के लिए आश्वस्त भी कर सकते हैं। मुमकिन है कि भविष्य में उत्तर कोरिया की तरफ से होने वाले मिसाइल परीक्षणों को लेकर भी ट्रंप की जापान और दक्षिण कोरिया के नेताओं से कुछ विशेष बातचीत हो। यह बातचीत यहां पर और मिसाइलों की तैनाती की भी हो सकती है और साथ ही साथ उत्तर कोरिया के परीक्षणों को रोकने के लिए भी हो सकती है।
उत्तर कोरिया को मनाने के रास्ते बंद
यहां पर यह बात याद दिलाना जरूरी होगा कि डोनाल्ड ट्रंप साफ कर चुके हैं कि उत्तर कोरिया से शांति के लिए अब कोई वार्ता नहीं होगी। उन्होंने अपने विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन को स्पष्ट शब्दों में कहा कि वार्ता के लिए अब वक्त बबार्द करना बंद कर दें। इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि वह उत्तर कोरिया को उसकी ही भाषा में जवाब देने के लिए तैयार हो रहे हों और इसके ही लिए वह चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की यात्रा कर रहे हों। मुमकिन है कि उनकी यह यात्रा दक्षिण कोरिया और जापान में अपनी तैयारियों के बीच चीन को इसके लिए मनाने की वजह से ही की जा रही हो। राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद ट्रंप की इन देशों में यह पहली यात्रा है।
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चीन को मनाने की कोशिश
ट्रंप की इस यात्रा और चीन के उत्तर कोरिया से संबंधों पर नजर डालेंगे तो पता चल जाता है कि यह संबंध कितने मजबूत हैं। हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि चीन के लिए भी अब उत्तर कोरिया किसी परेशानी से कम नहीं रह गया है। शायद यही वजह है कि उसने अपने यहां से सभी उत्तर कोरियाई कंपनियों को देश छोड़ने के लिए चार महीने का अल्टीमेटम भी दिया है। इसके अलावा चीन ने उत्तर कोरिया को होने वाली गैस और तेल सप्लाई को भी रोक दिया है। लेकिन इन सभी के बावजूद चीन बार-बार यह कहता रहा है कि वह इस क्षेत्र में किसी भी सूरत से युद्ध के हक में नहीं है। दूसरी तरफ अमेरिका का रुख भी इस संबंध में बेहद स्पष्ट है। ट्रंप इस बात को कह चुके हैं कि यदि चीन उत्तर कोरिया को शांत रखने में सफल नहीं हुआ तो उसके पास सभी विकल्प खुले हैं।
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अपनी इस यात्रा के दौरान ट्रंप कई द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होंगे। व्हाइट हाउस के मुताबिक ट्रंप वियतनाम में होने वाले एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग सम्मेलन (Asia-Pacific Economic Cooperation forum में हिस्सा लेंगे। माना यह भी जा रहा है कि वह मनीला में होने वाले एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस कॉन्क्लेव (Association of Southeast Asian Nations conclave) में हिस्सा ले सकते हैं। इस कॉन्क्लेव में शामिल होने पर फिलहाल अभी प्रश्नचिंह इसलिए भी है क्योंकि फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डूटार्टे उनके खिलाफ पूर्व में अपशब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं।
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इन पर होगी चर्चा
बहरहाल, इस दौरान जिन विषयों पर चर्चा होनी है उनमें अमेरिका की समृद्धि एवं सुरक्षा के लिए एक मुक्त एवं खुला हिंद-प्रशांत क्षेत्र भी शामिल है। यहां पर यह बात बतानी जरूरी हो जाती है कि भारत ने साफतौर पर कहा है कि वह हिंद महासागर में विदेशी जहाजों की बेरोकटोक आवाजाही का पक्षधर है। भारत के इस बयान को दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा ठोकने वाले चीन को एक चुनौती के तौर पर देखा गया था। दक्षिण चीन सागर को लेकर अमेरिका और चीन में भी तनाव है। इस मामले में चीन अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के फैसले को भी ठुकरा चुका है। यह फैसला चीन के खिलाफ आया था।
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दक्षिण चीन सागर विवाद
दक्षिण चीन सागर चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है। यह प्रशांत महासागर का एक भाग है, जो सिंगापुर से लेकर ताईवान की खाड़ी तक लगभग 3500000 वर्ग किमी में फैला हुआ है। पांच महासागरों के बाद यह विश्व के सबसे बड़े जलक्षेत्रों में से एक है। इस सागर में बहुत से छोटे-छोटे द्वीप हैं, जिन्हें संयुक्त रूप से द्वीपसमूह कहा जाता है। सागर और इसके इन द्वीपों पर, इसके तट से लगते विभिन्न देशों की दावेदारी है। माना जाता है कि यहां से समुद्र के रास्ते प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख करोड़ डॉलर का व्यापार होता है और दुनिया के एक तिहाई व्यापारिक जहाज हर वर्ष यहीं से गुजरते हैं। यह दुनिया में व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण रास्तों में से है। यहां 11 अरब बैरल तेल और 190 लाख करोड़ घन फुट प्राकृतिक गैस का भंडार होने का अनुमान है। चीन की साम्यवादी सरकार 1947 के एक पुराने नक्शे के सहारे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा ठोकती है।
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