मसूद अजहर के कारण भारत-चीन संबंधों को नुकसान : विशेषज्ञ
अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की इन कोशिशों से भारत और चीन के संबंधों को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है।
By Gunateet OjhaEdited By: Updated: Tue, 07 Nov 2017 07:11 PM (IST)
वाशिंगटन, प्रेट्र : पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय आतंकियों की सूची में शामिल कराने की कोशिशों पर चीन हर बार रोक लगता रहा है। पर अब अमेरिकी विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की इन कोशिशों से भारत और चीन के संबंधों को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है।
पिछले हफ्ते चीन ने चौथी बार संयुक्त राष्ट्र में अजहर को वैश्विक आतंकी सूची में डालने की अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन की कोशिश में रुकावट पैदा की थी। इसके लिए उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों के बीच आम राय न होने का हवाला दिया था। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो का अधिकार रखने वाले स्थायी सदस्य चीन ने परिषद की अल-कायदा प्रतिबंध समिति के तहत अजहर को आतंकी घोषित करने के भारत के प्रयासों में बार-बार अड़ंगा डाला है।हेरिटेज फाउंडेशन के जेफ स्मिथ ने कहा कि यह चीन की तरफ से उठाया गया दुर्भाग्यपूर्ण कदम है। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के जाने पहचाने आतंकी पर प्रतिबंधों को लगातार बाधित करने के लिए दिए गए तर्क सवालों के घेरे में है। स्मिथ ने कहा कि चीन अपने इस कदम को स्पष्ट तौर पर अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान को लाभ पहुंचाने के तौर पर देख रहा है।
संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्य अमेरिका ने कहा कि किसी व्यक्ति या संस्था को 1267 प्रतिबंध सूची में शामिल करने पर समिति की चर्चा गोपनीय है। न्यूयार्क में अमेरिकी मिशन के प्रवक्ता ने कहा, 'बहरहाल, हम जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक और नेता अजहर को 1267 प्रतिबंधों की सूची में शामिल करने की कोशिशों का समर्थन करेंगे और दूसरे सदस्यों को भी इसका समर्थन करने के लिए प्रेरित करेंगे।'अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) के रिक रासोव ने कहा कि चीन का हालिया कदम चीन-पाकिस्तान के बीच मिलीभगत होने के भारतीय अनुमान की पुष्टि करता है।
रासोव ने कहा, 'इस फैसले का समर्थन कर चीन, भारत के साथ अपने संबंधों को फिर से शुरू करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकता था लेकिन उसने अलग रास्ता चुना।' उन्होंने कहा, 'इसका समय महत्वपूर्ण है, यह ऐसे समय पर उठाया गया कदम है जब अमेरिका ने आतंकवाद का समर्थन करने को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया हुआ है।'गौरतलब है कि गत वर्ष मार्च में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य देशों में से केवल चीन ही इकलौता देश था जिसने भारत की अर्जी पर बाधा उत्पन्न की थी।यह भी पढ़ेंः भारत के बढ़ते वर्चस्व को दर्शाता है ट्रंप सरकार की रणनीतिक शब्दावली का बदलावयह भी पढ़ेंः उत्तर कोरिया की घेराबंदी के लिए अहम होगा ट्रंप का एशियाई दौरा