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जानें, आखिर ईरान को लेकर क्यों है इतना तनाव कायम, इसके पीछे कहीं ये तो नहीं मंशा

ईरान से हुए परमाणु समझौते को लेकर कई देश खुलकर US के खिलाफ आ गए हैं। रूस समेत कई देशों ने इस बात की आशंका जताई है कि इस समझौते के टूटने पर इस क्षेत्र में युद्ध भी छिड़ सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 22 Oct 2017 01:18 PM (IST)
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जानें, आखिर ईरान को लेकर क्यों है इतना तनाव कायम, इसके पीछे कहीं ये तो नहीं मंशा

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। ईरान से हुए परमाणु समझौते को लेकर अमेरिका के खिलाफ कई देश खुलकर सामने आ गए हैं। राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के इस समझौते से पीछे हटने को लेकर उनकी तीखी आलोचना भी हो रही है। रूस समेत कई देशों ने इस बात की आशंका जताई है कि इस समझौते के टूटने पर इस क्षेत्र में युद्ध भी छिड़ सकता है। भारत ने भी समझौते को लेकर अपनी स्थिति स्‍पष्‍ट कर दी है। भारत का मानना है कि ईरान में किसी भी तरह के युद्ध के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। भारत का यह भी कहना है कि अमेरिका में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के चलते भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य और ऊर्जा सुरक्षा नीति प्रभावित हुई है। भारतीय दूतावास के प्रवक्ता विरेंदर पॉल ने इस मुद्दे पर स्थिति स्‍पष्‍ट करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का जिम्मेदार सदस्य होने नाते भारत अपने दायित्वों को लेकर प्रतिबद्ध है और यह भी मानता है कि ईरान विवाद को युद्ध तक नहीं ले जाना चाहिए। दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि ईरान समझौते का पालन कर रहा है। 

ईरान से समझौते को लेकर अन्‍य देशों का रुख

रूस ने परमाणु करार पर अमेरिका के ताजा कदम पर अफसोस जताया है। रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि यह भी माना है कि ईरान परमाणु करार की शर्तों का कड़ाई से पालन कर रहा है। इतना ही नहीं सोवियत संघ के पूर्व राष्‍ट्रपति मिखाइल गोरबाचॉफ पहले ही ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु समझौता टूटने पर युद्ध तक छिड़ने की चिंता जता चुके हैं। जर्मनी के विदेश मंत्री सिगमर गैब्रियल ने ट्रंप के रवैये पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि अमेरिका लगातार यूरोप को ईरान के साथ युद्ध में झौंकने पर अमादा दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका ने परमाणु समझौते को रद कर फिर से ईरान पर प्रतिबंध लगाए तो ईरान परमाणु हथियार विकसित करने की ओर आगे बढ़ सकता है। इससे जंग का खतरा बढ़ जाएगा जो यूरोप के करीब तक आ सकता है। 

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फ्रांस व ब्रिटेन ने भी अमेरिकी रुख का विरोध किया है। वहीं, इजरायल और सऊदी अरब ने ट्रंप के कदम का स्वागत किया है। इस समझौते में शामिल चीन ने भी इस समझौते के टूटने की आशंका पर अपनी गहरी चिंता जाहिर की है। चीन का कहना है कि इस बाबत अमेरिका को अपनी वचनबद्धता पर कायम रहना चाहिए। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि चीन का मानना ​​है कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार व्यवस्था और क्षेत्रीय शांति की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए यह समझौता महत्वपूर्ण है। चीन की तरफ से भी यह उम्मीद जताई गई है कि सभी पार्टियां इस सौदे को संरक्षित और कार्यान्वित करेंगी। ट्रंप के कदम का ईरान ने भी तीखा विरोध किया है। 

हथियारों की बिक्री के लिए ट्रंप की सारी कवायद

ईरान समेत पूरे पश्चिम एशिया की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्‍ठ सीरियाई पत्रकार ने तीसरे विश्‍व युद्ध की आहट से तो इंकार किया है लेकिन उन्‍होंने यह जरूर माना कि इसको लेकर कई देश जरूर चिंतित हैं। Jagran.Com से विशेष बातचीत में उन्‍होंने यह भी कहा कि जब से अमेरिका में डोनाल्‍ड ट्रंप ने सत्‍ता संभाली है तब से कई क्षेत्रों में तनाव चरम पर पहुंच गया है। यही चीज हमें पिछले काफी समय से उत्‍तर कोरिया में दिखाई दे रही है। अब यही ईरान में दिखाई दे रही है। उनका कहना था कि इस तनाव को बढ़ाने के पीछे अमेरिका का एक मात्र मकसद अपने हथियारों की बिक्री बढ़ाना है। उत्‍तर कोरिया में तनाव बढ़ा तो वहां दक्षिण कोरिया ने अमेरिका से हथियारों की बिक्री की है। वहीं अब ईरान में तनाव बढ़ाकर अमेरिका यहां के दूसरे मुल्‍कों को अपने हथियार बेचना चाहता है। ट्रंप की सारी कवायद सिर्फ इसके ही लिए हो रही है।

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ईरान का रुख

परमाणु समझौते को लेकर ईरानी संसद के स्‍पीकर अली लारिजानी पहले ही इस बात की आशंका जता चुके हैं कि यदि अमेरिका इससे पीछे हटता है तो इस समझौते का अंत हो जाएगा। ऐसा होने पर वैश्विक अराजकता भी पैदा हो सकती है। उन्‍होंने इस विवाद को सुलझाने के लिए रूस की तरफ एक उम्‍मीद भी जताई है।

समझौते के पक्ष में टिलरसन तो हेली ट्रंप की साइड

अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन इस मुद्दे पर कहीं न कहीं राष्‍ट्रपति ट्रंप से अलग राय रखते दिखाई दे रहे हैं। उनका कहना है कि इस परमाणु समझौते में बने रहना अमेरिका के हित में हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भी उनकी इस बात से सहमत हैं। इसके उलट संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की राजदूत निक्की हेली ने कहा कि ईरान को आतंकवाद का समर्थन करने और परमाणु समझौते का उल्लंघन करने के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने की जरूरत है। हेली ने ट्रंप की नई ईरान नीति का बचाव किया है।

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हिलेरी का ट्रंप पर हमला

अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री और प्रथम महिला रह चुकीं हिलेरी ने इसको लेकर ट्रंप की तीखी आलोचना की है। उन्‍होंने संसद से अपील की है कि वह राष्ट्रपति के प्रस्ताव को सख्ती के साथ अस्वीकार करे। उन्‍होंने इस बाबत राष्ट्रपति ट्रंप की तीखी आलोचना करते हुए यहां तक कहा है कि उनके इस फैसले से पूरी दुनिया में यह संदेश गया है कि अमेरिका अपने वादे का पक्‍का नहीं है। उन्‍होंने इस समझौते को तोड़ने के फैसले को बेहद खतरनाक बताते हुए कहा है कि सबूत इस बात के संकेत दे रहे हैं कि ईरान समझौते का पालन कर रहा है। राष्‍ट्रपति ट्रंप ने दुनिया के सामने अमेरिका को मूर्ख और छोटा बना दिया है।

क्‍या है ईरान-अमेरिकी परमाणु समझौता

गौरतलब है कि 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ईरान के साथ समझौते में किया था। इस समझौते का उद्देश्य ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था। इस समझौते में अमेरिका के अलावा पांच अन्‍य देश जिसमें फ्रांस, रूस, चीन, जर्मनी और ब्रिटेन शामिल था। इस समझौते के तहत ईरान के परमाणु हथियारों के निर्माण पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी।

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समझौते पर क्‍यों हैं आशंका के बादल

दरअसल, परमाणु समझौता कार्यक्रम के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति को हर 90 दिनों पर यह प्रमाणित करना होता है कि ईरान समझौते का पालन कर रहा है। लेकिन ट्रंप ने समझौता तोड़ने की संस्तुति के साथ इस प्रस्ताव को संसद के पास भेज दिया है, जिसको लेकर न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया में हो-हल्‍ला मचा हुआ है। अब अमेरिकी संसद के पास 60 दिनों का समय है कि वह समझौते से हटने या बने रहने पर अंतिम निर्णय ले। वर्ष 2015 में ईरान व संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों के बीच परमाणु करार हस्ताक्षरित किया गया था।

ट्रंप का आरोप

डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस समझौते से पीछे हटने की घोषणा काफी पहले ही कर दी थी। उनका कहना था कि यह अमेरिका के लिए सबसे खराब समझौता है जो उनके देश के हित में नहीं है। इसके अलावा उन्‍होंने ईरान को 'धर्म आधारित शासक देश' बताते हुए वैश्विक स्तर पर आतंक और हिंसा फैलाने का दोषी करार दिया है। ट्रंप ने ओबामा प्रशासन पर हमला करते हुए यह भी कहा कि यह समझौता बहुत उदार था और इससे ईरान को नियत सीमा से अधिक हैवी वॉटर (परमाणु बम बनाने के लिए उपयुक्त प्लूटोनियम का स्रोत) प्राप्त करने और अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं को धमकाने की छूट दे दी गई थी। इतना ही नहीं उन्‍होंने यह भी कहा कि अमेरिका के पास इस समझौते को कभी भी छोड़ने का अधिकार है। व्‍हाइट हाउस की ओर से भी यह कहा गया है कि अमेरिका ईरान के परमाणु हथियार हासिल करने के सभी रास्ते रोक देगा। इसके अलावा एक बयान में यह भी कहा गया है कि ईरान 2015 के परमाणु समझौते का उल्‍लंघन कर रहा है। अमेरिका ने ईरान को उत्तर कोरिया के समक्ष रखकर यह भी कहा है कि उसको किम की राह पर चलने नहीं दिया जाएगा।

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जॉन कैरी का रुख

ईरान के साथ करार में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने ट्रंप के रुख की कड़ी निंदा की है। अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी का कहना है कि यदि इस समझौते को अमेरिकी सांसद मंजूरी नहीं देते हैं तो भारत, चीन और जापान जैसे देश अमेरिका के खिलाफ खड़े हो सकते हैं जो अमेरिका के लिहाज से सही नहीं होगा, क्‍योंकि क्योंकि वे ईरान के तेल के प्रमुख ग्राहक हैं। इतना ही नहीं उन्‍होंने दो टूक कहा है कि यदि किसी सूरत से ये देश अमेरिका का समर्थन करते भी हैं तो इसका दुष्‍प्रभाव इन्‍हीं देशों को झेलना होगा क्‍योंकि ऐसा करने से उन्‍हें हर वर्ष करोड़ों डॉलर के अतिरिक्‍त खर्च का सामना करना पड़ेगा। लिहाजा वह ऐसा नहीं करेंगे। उन्‍होंने यह भी कहा कि अमेरिका को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाबंदियों की वजह से जिस धन को रोक लिया गया है, वह अमेरिकी सरकार के नियंत्रण वाले अमेरिकी बैंकों में नहीं पड़ा हुआ है। यह धन ‘एस्क्रो’ में रोका गया है और उन देशों ने रोका है जिनके साथ ईरान के वाणिज्यिक लेन-देन हैं। 

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