जो उसने कर दिखाया वह कोई और नहीं कर सका, साबित हुआ ‘मील का पत्थर’
कासिनी ने जो कर दिखाया वह दूसरा कोई नहीं यान नहीं कर सका। बीस वर्षों के कामयाब मिशन के बाद यह यान शनि की आगोश में समा गया।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। 20 साल तक अंतरिक्ष में रहने के बाद नासा का 'कासिनी' अंतरिक्षयान आखिरकार शनि ग्रह के आगोश में समा गया। शनि के ऊपर से गुजरते हुए यह यान उसके वायुंडल में जलकर खाक हो गया। उसकी बीस वर्षों की अंतरिक्ष यात्रा धरती पर बैठे और इस मिशन में सहयोगी रहे सभी लोगों के लिए यादगार रही। कासिनी उस कामयाब स्पेस मिशन का हिस्सा था जिसने अंतरिक्ष शोध के इतिहास में शनि के बारे में सबसे अधिक जानकारी धरती तक पहुंचाई। इस अंतरिक्ष यान का नाम फ्रेंच इतालवी अंतरिक्ष विज्ञानी जोवानी डोमेनिको कासिनी के नाम पर रखा गया था। कासिनी से पहले इस मिशन पर तीन यान भेजे गए थे, इनमें पायोनियर-11 1979 में गया था जबकि वॉयजर-1 और 2 1980 के दशक में गए थे। हालांकि इन तीनों में से कोई भी उतनी जानकारी शनि के बारे में नहीं जुटा सका जितनी कासिनी ने जुटाई थी। गौरतलब है कि शनि ग्रह पृथ्वी से नंगी आंखों देखा जाने वाला सबसे दूर का ग्रह है। तकरीबन 7.9 अरब किलोमीटर का सफर तय करने के बाद इस यान के रॉकेट का ईंधन खत्म हो गया था।
कासिनी से जुड़े थे 27 देशों के वैज्ञानिक
कासिनी के इस मिशन से 27 देशों के सैकड़ों वैज्ञानिक जुड़े थे। इस मिशन की लागत करीब 3.9 अरब डॉलर की थी। इस मिशन ने पृथ्वी के बाहर जीवन की परिकल्पना को भी नया आयाम दिया। शुक्रवार को कासिनी की इस अंतिम यात्रा पर सभी वैज्ञानिकों की निगाह थी। यह यान शनिग्रह के वायुमंडल में खाक हो जाने के लिए करीब 1,20,700 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से बढ़ रहा था। इसी दौरान इसके प्रोग्राम मैनेजर अर्ल माइज ने नासा की लैब में इस बात की घोषणा की कि कासिनी से सिग्नल मिलने बंद हो गए हैं। इसके साथ ही यह तय हो गया कि कासिनी अब अपने आखिरी सफर की तरफ बढ़ गया है।
कासिनी मिशन को बताया लाजवाब
माइज ने कासिनी मिशन को लाजवाब बताया। इस मौके पर कासिनी से जुड़े वैज्ञानिक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सके और कंट्रोल रूम में ही उनकी आंखे छलक आईं। मिशन कंट्रोल रूम में कासिनी की इस यात्रा के बाद वैज्ञानिक एक दूसरे को मिशन की कामयाबी की बधाई के साथ-साथ सांत्वजना भी देते दिखाई दिए। इन सभी वैज्ञानिकों के लिए यह काफी भावुक पल था।
धरती तक सिग्नलों को पहुंचने में लगी देर
कासिनी का पृथ्वी के साथ आखिरी संपर्क जीएमटी के मुताबिक सुबह 11 बजकर 55 मिनट पर हुआ था। हालांकि वहां से धरती तक इन सिग्नलों को पहुंचने में कुछ देर लगी, लिहाजा वह इस वक्त से पहले ही इन सिग्नलों को भेज चुका था। इसके बाद कासिनी शनि के गैसों वाले वलय में खो गया।
मील का पत्थर साबित हुआ कासिनी
कासिनी को फ्लोरिडा के केप कैनेवेरल से 1997 में छोड़ा गया था। इसके बाद इसे सात साल शनि ग्रह तक पहुंचने में लग। 13 सालों तक इसने शनि ग्रह की परिक्रमा की। कासिनी ने यह पता लगाया था कि शनि के इर्द गिर्द कई चंद्रमाएं हैं। साथ ही ये भी पता लगा कि शनि और उसके वलय के बीच में खाली जगह है। इसने शनि के इर्द गिर्द छह चंद्रमाओं का पता लगाया और एक विकराल आंधी के बारे में जानकारी दी जिसने शनि ग्रह पर काफी हलचल मचाई थी।
बर्फीले झरनों की खोज
22 फीट लंबे और 13 फीट चौड़े इस अंतरिक्ष यान ने एनसेलेडाउस से निकलने वाली बर्फीले झरनों की भी खोज की थी और साथ ही इस बात का भी पता किया कि इथेन और मीथेन गैस के हाइड्रोकार्बन से बनी झीलों वाला टाइटन शनि का सबसे विशाल चंद्रमा है। 2005 में कासिनी ने टाइटन पर ह्यजेन्स नाम के एक छोटे यान को उतारा था। यह बाहरी सौरमंडल में पहली और अकेली लैंडिग थी। ह्यजेन्स यूरोपीय स्पेस एजेंसी, इटैलियन स्पेस एजेंसी और नासा का संयुक्त उपक्रम था।
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