इन तीन देशों ने बढ़ा रखी है US समेत यूरोप की भी धड़कनें, जानें क्या है वजह
अमेरिका और फ्रांस के कड़े रुख के चलते ईरान से हुई न्यूक्लियर डील पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसको लेकर रूस युद्ध के खतरे तक की आशंका जता चुका है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। दुनिया के तीन देशों ने मिलकर अमेरिका समेत यूरोप की चिंता बढ़ा रखी है। इन तीन देशों में पहले नंबर पर उत्तर कोरिया है तो दूसरे नंबर पर पाकिस्तान और तीसरे नंबर पर ईरान है। ऐसा भी नहीं है कि इन तीनों से अभी यूरोप और अमेरिका को खतरा पैदा हुआ है। उत्तर कोरिया से अमेरिका और समूचे यूरोप में व्याप्त तनाव किसी से अछूता नहीं रहा है। इसके अलावा पाकिस्तान को लेकर भी अमेरिका और यूरोप का रवैया जगजाहिर है। अमेरिका समेत यूरोप के कई देश पाकिस्तान पर प्रतिबंध तक लगाने की मांग कर चुके हैं। यह वर्षों से चल रहा है। इसमें लगातार उतार-चढ़ाव आता रहता है।
2015 में हुई थी डील
मिसाल के तौर पर यदि ईरान की ही बात करें तो वर्ष 2015 में जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा समेत यूरोप के अन्य देशों ने मिलकर ईरान से न्यूक्लियर डील पर हस्ताक्षर किए थे तब इसको लेकर काफी उम्मीदें भी जताई गई थीं। ओबामा प्रशासन ने ईरान को लेकर काफी कुछ झेला था जिसका पटाक्षेप इस संधि के जरिए हुआ था। लेकिन अब वहां सत्ता परिवर्तन होने के बाद अमेरिका और यूरोप की परेशानियां भी बढ़ती दिखाई दे रही है। डोनाल्ड ट्रंप इस बात को पहले ही कह चुके हैं कि 2015 में ईरान के साथ हुई न्यूक्लियर डील सही नहीं थी। वहीं यूरोप के बड़े देश फ्रांस ने भी अब ट्रंप के सुर में सुर मिला दिया है। फ्रांस का कहना है कि इस संधि पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। लिहाजा यहां पर ईरान समेत इन तीनों देशों की चिंता बढ़ गई है।
ईरान का खौफ दिखाकर यूएस की मंशा
हालांकि ईरान की राजनीति पर नजर रखने वाले सीरिया के वरिष्ठ पत्रकार वईल अवाद का कहना है कि अमेरिका सिर्फ दबाव बना रहा है। इसके पीछे उसकी मंशा अपने हथियारों की बिक्री तक जुड़ी है। वह ईरान का खौफ दिखाकर इसके पड़ोसी देशों में अपने हथियारों के बाजार को बड़ा करना चाहता है।
अधिक दूरी की मिसाइल बनाने को होंगे मजबूर
बहरहाल, फ्रांस के रवैये पर ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया देकर तनाव को और बढ़ाने का काम किया है। ईरान के शक्तिशाली रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने चेतावनी दी है कि यूरोप ने उनके देश को धमकाना बंद न किया तो वह अपनी मिसाइलों की क्षमता दो हजार किलोमीटर से ज्यादा करने को विवश होंगे। यहां पर ध्यान रखने वाली बात यह है कि रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ईरान की इलीट फोर्स है और यह सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के प्रति जवाबदेह है। फ्रांस की तरफ से डील पर दोबारा विचार करने के बयान के बाद रिवोल्यूशनरी गार्ड के उप प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल हुसैन सलामी की तरफ से यह चेतावनी दी गई है। दरअसल, फ्रांस की तरफ से कहा गया है कि 2015 में हुई न्यूक्लियर डील के तहत ईरान के मिसाइल विकास कार्यक्रम से समझौता नहीं किया जाएगा। फ्रांस इस समझौते में शामिल है। 2015 में हुई इस डील में अमेरिका और फ्रांस के अलावा रूस, चीन, ब्रिटेन और जर्मनी भी शामिल हैं। इस डील को उस वक्त ओबामा प्रशासन की सबसे बड़ी कामयाबी के तौर पर लिया गया था।
ये है रूस की चिंता
हालांकि इस डील को लेकर रूस का रुख पूरी तरह से स्पष्ट है। रूस की तरफ से पहले भी कई बार इस बात को कहा जा चुका है कि इस डील को खत्म करना या अमेरिका का इससे पीछे हटना इस पूरे इलाके में टकराव की बड़ी वजह बन सकता है। इतना ही नहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका को आड़े हाथों लेते हुए यहां तक कहा था कि अमेरिका संधियों को लेकर पूर्व में भी इतना गंभीर भी नहीं रहा है, जितना होना चाहिए। ऐसा इसलिए भी है कि परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने का प्रस्ताव वहां की संसद में लंबित है। रूस की तरफ से डील को खत्म करने की सूरत में परमाणु युद्ध छिड़ने तक की आशंका जताई जा चुकी है। ईरान की तरफ से रिवोल्यूशनरी गार्ड के बयान कहीं न कहीं इसकी पुष्टि करते हुए दिखाई भी दे रहे हैं।
रक्षात्मक है ईरान का परमाणु कार्यक्रम
रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के उप प्रमुख ब्रिगेडियर सलामी ने कहा कि हमारा मिसाइल कार्यक्रम पूरी तरह से रक्षात्मक है। इसलिए उस पर हम किसी से बात नहीं करेंगे। फिलहाल हम दो हजार किमी तक मार करने वाली मिसाइलें बना रहे हैं। उन्होंने अपने बयान में इस बात को साफ कर दिया है कि भले ही ईरान अभी लंबी दूरी की मिसाइल न बना रहा हो लेकिन यदि खतरा बढ़ा तो देा हजार किमी से ज्यादा दूरी तक मार करने वाली बैलेस्टिक मिसाइल भी बना सकता है और बनाएगा। फ्रांस के बयान से गुस्साए ब्रिगेडियर ने यह भी साफ कर दिया है कि फिलहाल ईरान को यूरोप से कोई खतरा नहीं है। सलामी ने यह बात एक साक्षात्कार में कही है। अभी तक ईरान अमेरिकी खतरे के मद्देनजर बैलेस्टिक मिसाइलों के विकास की बात कहता रहा है। अमेरिका के कई सैन्य ठिकाने और हित वाले स्थान दो हजार किलोमीटर की सीमा में आते हैं, इसलिए उसने उतनी ही क्षमता की मिसाइल विकसित की है।
क्यों बना है विवाद
दरअसल इसी वर्ष 18 जुलाई को अमेरिका ने ईरान पर संधि को नकारने का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाए थे। जिसके बाद ईरान ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए यहां तक कहा था कि यदि प्रतिबंध न हटे तो वह संधि से पीछे हट जाएगा। ईरान की तरफ से यहां तक कहा गया था कि यह प्रतिबंध अमेरिका और ईरान के मुश्किल रिश्तों को और खराब कर देगा। अमेरिका की तरफ से यह प्रतिबंध ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम जारी रखने के खिलाफ लगाए थे। ईरान ने अमेरिका के इस फैसले को उसके द्वारा अंतरराष्ट्रीय माहौल खराब करने की एक कोशिश बताया था। इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और यूएन में अमेरिकी राजदूत निकी हैली ने इस संधि को अमेरिका के हित में बताया था। इनका कहना था कि ईरान को भी इस संधि का उल्लंघन नहीं करने दिया जाएगा।
संधि का मकसद
जुलाई 2015 में हुई इस संधि का मकसद पश्चिमी देशों की यह चिंता दूर करना था कि ईरान परमाणु बम बना सकता है। बदले में पश्चिमी देश ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध उठा लेंगे। संधि के अनुसार आईएईए अगले दस से 25 साल तक इस बात की जांच करेगा कि ईरान संधि के प्रावधानों का पालन कर रहा है या नहीं. अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी 170 देशों में परमाणु ऊर्जा के नागरिक इस्तेमाल पर निगरानी रखती है।
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