कोरियाई प्रायद्वीप में कुछ गलत हुआ तो उसका जिम्मेदार होगा यूएस
अमेरिकी न्यूिक्लियर सबमरीन के दक्षिण कोरिया पहुंचने के बाद कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव और बढ़ गया है। वहीं रूस-चीन लगातार इसको लेकर US का विरोध कर रहे हैं।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। अमेरिका लगातार कोरियाई प्रायद्वीप में अपने खतरनाक हथियारों का जखीरा बढ़ा रहा है। दक्षिण कोरिया में पहले से ही अमेरिका का मिसाइल डिफेंस सिस्टम 'थाड' वहां पर तैनात किया जा चुका है। वहीं शुक्रवार को अमेरिका ने अपनी एक न्यूक्लियर सबमरीन को भी दक्षिण कोरिया भेज दिया है। यह सबमरीन हाईटेक वैपन और मिसाइल से युक्त है। ओहियो क्लास की इस सबमरीन यूएसएस मिशिगन (SSGN-727) पर गाइडेड मिसाइल तैनात हैं। कल यह दक्षिण कोरिया के बुसान पहुंची तो जहां दक्षिण कोरिया को अपनी सुरक्षा का भरोसा मिला वहीं कुछ दूसरे देशों की अमेरिका के इस रवैये से भौंहें तन गई हैं। यहां पर यह बता देना भी जरूरी होगा कि इससे पहले अमेरिका के दो युद्धपोत कार्ल विल्सन और रोनाल्ड रेगन दक्षिण कोरिया में पहले से ही तैनात है। यूएसएस रोनाल्ड रेगन अगले सप्ताह दक्षिण कोरिया के साथ होने वाली ड्रिल में हिस्सा भी लेगा।
न्यूक्लियर सबमरीन पर तैनात टॉमहॉक मिसाइल
18000 टन की इस सबमरीन पर करीब 150 टॉमहॉक मिसाइल हैं जिनकी रेंज करीब दो हजार किमी तक है। यह दुनिया की सबसे बड़ी पनडुबि्बयों में से एक है। इसके अलावा यह सबमरीन उत्तर कोरिया पर हमले की सूरत में स्पेशल ऑपरेशन फोर्स को सपोर्ट करने को भी तैयार रहेगी। लेकिन इन सभी कवायदों के बाद भी उत्तर कोरिया के तेवरों में कोई कमी नहीं आई है। यहां पर यह इस बात को भी जरूर समझना होगा कि आखिर किम जोंग उन किस के कंधों पर इतना उछल रहा है।
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अमेरिकी कार्रवाई से खफा है चीन और रूस
दरअसल उत्तर कोरिया को लेकर अमेरिका की इतनी तैयारियों के बीच रूस और चीन उससे खास खफा हैं। यह दोनों ही देश दक्षिण कोरिया में थाड के तैनात होने का भी लगातार विरोध कर रहे हैं। इतना ही नहीं चीन ने पिछले दिनों अमेरिकी युद्धपोत के दक्षिण चीन सागर से निकलने पर गहरी नाराजगी जताई थी। दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन और अमेरिका पहले से ही आमने-सामने हैं। वहीं अब जब अमेरिका की न्यूक्लियर सबमरीन दक्षिण कोरिया पहुंची है तो भी चीन ने इसको लेकर खासा नाराजगी जताई है। रूस और चीन का कहना है कि अमेरिका की इन तैयारियों से कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव बढ़ेगा। यहां पर यह भी जानना जरूरी है कि अगले सप्ताह इस क्षेत्र में अमेरिका और दक्षिण कोरिया युद्ध अभ्यास करने वाले हैं। इससे पहले रूस और चीन इस तरह का अभ्यास कर चुके हैं। भले ही रूस और चीन फिलहाल खुलकर उत्तर कोरिया के साथ नहीं आ रहे हैं, लेकिन इस और दोनों देशों का झुकाव जरूर दिखाई दे रहा है।
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उत्तर कोरिया को हैंडल करने में नाकाम यूएस
इंस्टिट्यूट ऑफ अमेरिकन स्टडीज के शोधकर्ता किम क्वांग हक का मानना है कि अमेरिका पिछले 25 वर्षों से उत्तर कोरिया को हैंडल करने में पूरी तरह से विफल रहा है। उनका यह भी कहना है कि जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण प्रायद्वीप में अपनी न्यूक्लियर सबमरीन को भेजा है और जिस तरह से बार-बार ट्रंप किम को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं, उससे उनकी मंशा भी साफतौर पर जाहिर होती है। वह इस तरह की तीखी बयानबाजी करके और सैन्य कार्रवाई करने की धमकी या दबाव बनाकर इस क्षेत्र में तनाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
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कुछ गलत हुआ तो उसका जिम्मेदार होगा यूएस
हक का यह भी कहना है कि उत्तर कोरिया बार-बार इस बात को कह चुका है कि यदि अमेरिका इस बाबत कोई भी गलती करता है तो इसके उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। उत्तर कोरिया बार-बार इसको लेकर चेतावनी भी देता रहा है कि यदि उस पर आक्रमण किया गया तो उत्तर कोरिया भी अपनी मिसाइलों से गुआम को निशाना बनाने से पीछे नहीं हटेगा। उत्तर कोरिया गुआम पर मिसाइलों की झड़ी लगा देगा। उनका यह भी कहना है कि यदि इस क्षेत्र में कुछ भी गलत और चौंकाने वाला होता है तो इसके लिए अमेरिका खुद जिम्मेदार होगा। क्योंकि उसकी कार्रवाई लगातार इस क्षेत्र को विस्फोटक बनाने का काम कर रही है। अमेरिका को सीधेतौर चेतावनी देते हुए उन्होंने यह भी कहा है कि जिस आग को अमेरिका भड़काने का काम कर रहा है उसको यह भी याद रखना चाहिए कि उत्तर कोरिया के हाथों में ट्रिगर मौजूद है जो कभी भी दब सकता है। अमेरिका को यह समझना चाहिए कि वह आग से खेल रहा है।
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ओबामा के वक्त में भी था तनाव
अमेरिका में भारतीय राजदूत रह चुकी मीरा शंकर का भी मानना है कि कोरियाई प्रायद्वीप में तनाव लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने यह भी माना कि यह विवाद कोई नया नहीं है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय में भी यह तनाव कायम था। उस वक्त उन्होंने उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए थे, जिसे मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने और कड़ा किया है। उनके मुताबिक यही सही कदम भी है, क्योंकि लड़ाई से सभी का नुकसान होना तय है।
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