चीन लगातार अंतरराष्ट्रीय बाजार में कर रहा गोल्ड की खरीद, ये है इसके पीछे का सच
चीन लगातार अपना स्वर्ण भंडार बढ़ा रहा है। इसके लिए वह लगातार बीते सात माह से गोल्ड खरीद रहा है। इसके पीछे का एक सच ये भी है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 09 Aug 2019 04:16 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चीन लगातार अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना खरीद रहा है। पिछले आठ माह या यूं कहें कि साल की शुरुआत से ही चीन अपने स्वर्ण भंडार को बढ़ाने में लगा है। ब्लूमबर्ग की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि बीते सात माह में चीन ने अपने स्वर्ण भंडार में करीब दस टन की बढ़ोतरी की है। इस रिपोर्ट के अलावा पिपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने भी कहा है कि देश का स्वर्ण भंडार करीब 1945 टन (62.26 मिलियन आउंस) पहुंच गया है। वर्तमान में इसकी कीमत की बात करें तो यह करीब 90 बिलियन डॉलर तक है।
बेवजह नहीं चीन की गोल्ड खरीद
चीन द्वारा गोल्ड की खरीद करना बेवजह नहीं है। इसके पीछे एक बड़ी वजह है। इस वजह पर जाने से पहले आपको ये बता दें कि गोल्ड की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही है। वर्तमान में यह अपने छह साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। चीन की इस खरीद को लेकर सोसिएट जनरल (Societe Generale) की मानें तो चीन यह सबकुछ अमेरिका से चल रहे ट्रेड वार की वजह से हो रहा है। दरअसल, ट्रेड वार के चलते चीन की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। इसके चलते चीन के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दर को भी कम कर दिया है। ट्रेड वार के खतरे से खुद को बचाने के लिए चीन बड़े पैमाने पर गोल्ड खरीद रहा है। फायदे का सौदा है गोल्ड खरीद
एसजी के मुताबिक करेंसी वार या ट्रेड वार के बढ़ने और चीन की तरफ से हो रही इस खरीददारी ने यह बात साबित कर दी है कि इस वक्त गोल्ड खरीदना सबसे फायदे का सौदा है। इस कदम की वजह से चीन भी रूस और पौलेंड की श्रेणी में आकर खड़ा हो गया है। आपको बता दें कि रूस के पास जनवरी 2019 से 1 जुलाई 2019 तक 96.4 टन का स्वर्ण भंडार था। यह सिर्फ रशियन सेंट्रल बैंक का स्टॉक है। वहीं यदि पूरे के स्वर्ण भंडार की बात की जाए तो यह 100.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। सेंट्रल बैंक ने इस वर्ष के पहले छह माह में 374 टन गोल्ड की खरीद की है। वर्ल्ड गोल्ड कांउसिल की रिपोर्ट के मुताबिक किसी पब्लिक इंस्टिट्यूशन द्वारा गोल्ड की यह सबसे बड़ी खरीद है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक दूसरी तिमाही में स्वर्ण की मांग में करीब आठ फीसद की बढ़ोतरी हुई है।
चीन द्वारा गोल्ड की खरीद करना बेवजह नहीं है। इसके पीछे एक बड़ी वजह है। इस वजह पर जाने से पहले आपको ये बता दें कि गोल्ड की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही है। वर्तमान में यह अपने छह साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। चीन की इस खरीद को लेकर सोसिएट जनरल (Societe Generale) की मानें तो चीन यह सबकुछ अमेरिका से चल रहे ट्रेड वार की वजह से हो रहा है। दरअसल, ट्रेड वार के चलते चीन की अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। इसके चलते चीन के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दर को भी कम कर दिया है। ट्रेड वार के खतरे से खुद को बचाने के लिए चीन बड़े पैमाने पर गोल्ड खरीद रहा है। फायदे का सौदा है गोल्ड खरीद
एसजी के मुताबिक करेंसी वार या ट्रेड वार के बढ़ने और चीन की तरफ से हो रही इस खरीददारी ने यह बात साबित कर दी है कि इस वक्त गोल्ड खरीदना सबसे फायदे का सौदा है। इस कदम की वजह से चीन भी रूस और पौलेंड की श्रेणी में आकर खड़ा हो गया है। आपको बता दें कि रूस के पास जनवरी 2019 से 1 जुलाई 2019 तक 96.4 टन का स्वर्ण भंडार था। यह सिर्फ रशियन सेंट्रल बैंक का स्टॉक है। वहीं यदि पूरे के स्वर्ण भंडार की बात की जाए तो यह 100.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। सेंट्रल बैंक ने इस वर्ष के पहले छह माह में 374 टन गोल्ड की खरीद की है। वर्ल्ड गोल्ड कांउसिल की रिपोर्ट के मुताबिक किसी पब्लिक इंस्टिट्यूशन द्वारा गोल्ड की यह सबसे बड़ी खरीद है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक दूसरी तिमाही में स्वर्ण की मांग में करीब आठ फीसद की बढ़ोतरी हुई है।
चीनी मुद्रा का अवमूल्यन
आपको यहां पर बता दें कि चीन लगातार अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर रहा है। इसकी वजह से अमेरिका लगातार उसको कटघरे में खड़ा कर रहा है। इससे अंतरराष्ट्रीय मार्केट में बाकी देशों के मुकाबले चीनी प्रोडक्ट की कीमत कम हो गई। चीन के इस फैसले का सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को हुआ है। ऐसे में अमेरिका ने चीन को सबक सिखाने के लिए चीनी करेंसी युआन को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया है।अमेरिका ने चीन की इस हरकत पर उसको सार्वजनिक तौर पर करेंसी मेन्युपुलेटर तक कह दिया है। चीन की मुद्रा की बात करें तो यह अपने 11 वर्ष में सबसे निचले स्तर पर आ गई है। इसकी वजह फाइनेंशियल मार्किट में आई गिरावट है। आपको यहांं पर ये भी बता दें कि चीन की अर्थव्यवस्था एफडीआई पर काफी हद तक टिकी हुई है। वर्तमान में अमेरिका के साथ जारी ट्रेड वार के चलते इसमें गिरावट के आसार दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन के 300 अरब डॉलर के सामानों पर अतिरिक्त 10 फीसदी शुल्क लगाने की घोषणा के कुछ ही दिन बाद आई।
आपको यहां पर बता दें कि चीन लगातार अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर रहा है। इसकी वजह से अमेरिका लगातार उसको कटघरे में खड़ा कर रहा है। इससे अंतरराष्ट्रीय मार्केट में बाकी देशों के मुकाबले चीनी प्रोडक्ट की कीमत कम हो गई। चीन के इस फैसले का सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को हुआ है। ऐसे में अमेरिका ने चीन को सबक सिखाने के लिए चीनी करेंसी युआन को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया है।अमेरिका ने चीन की इस हरकत पर उसको सार्वजनिक तौर पर करेंसी मेन्युपुलेटर तक कह दिया है। चीन की मुद्रा की बात करें तो यह अपने 11 वर्ष में सबसे निचले स्तर पर आ गई है। इसकी वजह फाइनेंशियल मार्किट में आई गिरावट है। आपको यहांं पर ये भी बता दें कि चीन की अर्थव्यवस्था एफडीआई पर काफी हद तक टिकी हुई है। वर्तमान में अमेरिका के साथ जारी ट्रेड वार के चलते इसमें गिरावट के आसार दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन के 300 अरब डॉलर के सामानों पर अतिरिक्त 10 फीसदी शुल्क लगाने की घोषणा के कुछ ही दिन बाद आई।
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