RCEP में भारत के इनकार से चिढ़ गया चीन, जानें- क्या कह रही है वहां की मीडिया
आरसेप में शामिल होने से भारत के इनकार के बाद चीन की झुंंझलाहट साफतौर पर दिखाई दे रही है। चीन का सरकारी अखबार इसको लेकर भारत पर सवाल उठाने से भी नहीं चूका है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 08 Nov 2019 05:06 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। चीन के नेतृत्व वाले रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership) में भारत के इनकार के बाद चीन बुरी तरह से चिढ़ गया है। उसकी यह झुंझलाहट वहां के सरकारी मीडिया में साफ झलक रही है। दरअसल, इस इनकार के बाद चीन ने भारतीय नेतृत्व और भारत की राजनीतिक व्यवस्था (Indian political system) पर ही सवाल उठा दिया है। चीन की सरकारी मीडिया का कहना है भारत सरकार ने राजनीतिक दबाव में आकर इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया।
सकारात्मक संकेत चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, सितंबर में भारत को इस मेगाट्रेड डील को लेकर विचार-विमर्श के लिए आमंत्रित किया था। अखबार का कहना है कि RCEP से भारत के बाहर जाने के बाद देश के कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर पीयूष गोयल (Commerce and Industry Minister Piyush Goyal) ने इस बात के संकेत दिए हैं कि इस संबंध में भारत ने वार्ता के दरवाजे खुले रखें हैं। अखबार की मानें तो यह संकेत भारत की उस मंशा को दर्शाने के लिए काफी हैं, जिसके तहत भारत इससे जुड़ना चाहता है।
विपक्ष के तेवर ग्लोबल टाइम्स के वेब एडिशन में छपे एक लेख में लिखा है कि कांग्रेस समेत दूसरे विपक्षी दलों के जबरदस्त विरोध के बाद यह तय हो गया था कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ेगी। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला (Congress chief spokesperson Randeep Surjewala) ने कहा था कि आरसेप के खिलाफ कांग्रेस समेत दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने और सोशल मीडिया ग्रुप ने हाल के कुछ माह में विरोध की शुरुआत की थी। अखबार ने अपने लेख में लिखा है कि इस ट्रेड एग्रीमेंट (Trade Agreement) को भारत में राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया। इससे होने वाली दीर्घकालीन फायदे को नजरअंदाज किया गया। पीएम मोदी के पास इस विरोध के बाद दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था कि वह इससे बाहर हो जाएं या उनकी बात को मान लिया जाए।
फ्री ट्रेड एग्रीमेंटअखबार के लेख के मुताबिक, भारत ने बीते कुछ वर्षों में पड़ोसी देशों के साथ कई फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (Free Trade Agreement) किए हैं। इनकी वजह से भारत को व्यापार घाटा (Trade Deficit) बढ़ा है। इसका सबूत है कि भारत को प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के लिए सुधार की जरूरत महसूस हुई। आरसेप की जहां तक बात है तो इससे भारत को क्षेत्र और दुनिया में एक इंडस्ट्रियल चेन बनाने में मदद मिलती। भारत की विशाल आबादी और बढ़ती मार्केट को भी इससे फायदा होता। इतना ही नहीं, यह भारत में आर्थिक सुधारों की भी राह आसान करता। भारत की क्षमता इसके सिस्टम में फंसकर रह गई। अखबार ने भारत के बारे में यहां तक कहा है कि पश्चिमी देश भारत और चीन की राजनीतिक व्यवस्था का आकलन कर रहे हैं। इनका मानना है कि जहां लोकतांत्रिक भारत पूरी तरह से जोश से भरा है। वहीं, चीन का भविष्य धूमिल है। हालांकि, उनकी यह सोच हकीकत से उलट है।
हाई-स्पीड रेल नेटवर्क पर सवाल बार का कहना है कि भारत में हाईस्पीड रेल (High Speed Rail Network) के प्रपोजल की शुरुआत मुंबई और अहमदाबाद से हुई। इसको 2015 में अप्रूवल मिला, लेकिन इसका काम 2020 तक शुरू हो सकता है। इसकी वजह भारत में जमीन का अधिग्रहण और इसकी प्रक्रिया का बेहद धीमा होना है। वहीं, दूसरी तरफ चीन में कई हाईस्पीड रेल लाइंस है। इसमें बीजिंग शंघाई के बीच स्थित हाईस्पीड रेल लाइन (Beijing-Shanghai high-speed railway) को तैयार करने में महज 39 माह का समय लगा। इस दौरान इस प्रोजेक्ट का प्रस्ताव, डिजाइन बनाने के अलावा काम की शुरुआत और इसकी समाप्ति शामिल है। यही चीन की ताकत और उसकी दक्षता भी है।
राजनीतिक सिस्टम पर सवालअखबार के इस लेख में भारत के राजनीतिक सिस्टम (Indian Political System) तक पर सवाल उठाया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन यहां पर राजनीतिक घुसपैठ बेहद भयंकर है। वहीं, यदि भारत की तुलना चीन से करें तो यहां राष्ट्रीय सहमति जबरदस्त है। इतना ही नहीं, हर क्षेत्र के विकास के साथ-साथ यहां के लोगों का विकास चीन की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। लिहाजा चीन को लेकर पश्चिम ने कई तरह की गलतफहमी पाली हुई हैं। पश्चिम मानता है कि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की नीतियां वहां के लोगों के लिए सही नहीं हैं। अखबार का कहना है कि पश्चिमी देश यहां पर होने वाले सुधारों का अहसास तक नहीं कर सकते हैं।
नेतृत्व पर सवाल अखबार ने अंत में लिखा है कि चीन के राष्ट्रपति ने एक बार कहा था कि वह देश के विकास के लिए कड़े कदम उठाने से नहीं हिचकिचाएंगे। उन्होंने यह न सिर्फ कहा, बल्कि करके भी दिखाया है। वहीं, दूसरी तरफ पीएम मोदी राजनीतिक खतरे के तहत कड़े कदम नहीं ले सकते। यह न सिर्फ उनके लि, बल्कि भारत के किसी भी नेता के लिए मुश्किल काम है। अखबार ने लिखा है कि भारत इन दिनों स्मॉग की चपेट में है और वहां की जनता सवाल कर रही है कि सरकार चीन की तरह से इस पर काम क्यों नहीं कर रही है। यह समय है जब भारत को अपने अंदर झांक कर अपनी राजनीतिक व्यवस्था पर विचार करना चाहिए।
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