जब थियानमेन स्क्वायर पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को कुचलने के लिए चीन ने उतारे थे टैंक
हांगकांग में हालात लगातार खराब हो रहे हैं। वहीं चीन जिस तरह से आक्रामक हो रहा है उसको देखकर ये भी डर है कि कहीं फिर थियानमेन स्क्वायर की कहानी तो नहीं दोहराई जाएगी।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 21 Aug 2019 10:06 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जम्मू कश्मीर के मसले को हवा देने वाला चीन हांगकांग की आवाज को दबाने के लिए क्या कर रहा है इसको पूरी दुनिया देख रही है। एक तरफ जहां वह जम्मू कश्मीर पर भारत सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है वहीं दूसरी तरफ पूरी दुनिया हांगकांग के मुद्दे पर उसको ही सवालों के कटघरे में खड़ा कर रही है। हालांकि आपको बता दें कि हांगकांग पहला नहीं है जिसकी आवाज को चीन दल-बल से दबाने की कवायद कर रहा हो। इससे पहले उइगर मुस्लिमों की आवाज को दबाने के लिए भी वह इसी तरह की कारवाई करता रहा है। उइगरों को जेल में डालने से लेकर, मस्जिदों को तोड़ना, आतंकी बताकर उनकी हत्या करवाना और उनके विशेष पहचान यह सभी वो कार्रवाई हैं जो चीन ने अब तक उइगरों के खिलाफ की हैं। इसकी अगली कड़ी हांगकांग भी बन सकता है। दरअसल, पूरी दुनिया हांगकांग की खराब होती स्थिति से तो चिंतित है ही लेकिन वह इस बात से भी चिंतित है कि कहीं हांगकांग में भी थियानमेन नरसंहार कांड की तर्ज पर चीन कार्रवाई न कर बैठे। इसको लेकर अमेरिका ने अपनी आशंका भी व्यक्त की है।
चीन छीन रहा है आजादी
इस आशंका के पीछे जो वजह है वह भी इस ओर इशारा कर रही है। दरअसल, चीन ने हांगकांग की सीमा पर काफी संख्या में जवानों की तैनाती की है। इसके अलावा हांगकांग में ही प्रदर्शनकारियों की आवाज को दबाने के लिए सुरक्षाबलों की सख्ती बढ़ती जा रही है। हांगकांग के प्रदर्शनकारियों की बात करें तो पिछले सप्ताह उन्होंने हार्बर पर लगे चीन के राष्ट्रीय झंडे तक को नुकसान पहुंचाया था, जिसके बाद वहां पर सुरक्षाबल तैनात किए गए थे। यहां पर कई बार प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच तीखी झड़पें भी हो चुकी हैं। खराब होते हालातों के मद्देनजर यहां की उड़ानें भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इतना ही नहीं हवाई अड्डे तक को बंद तक कर देना पड़ा है। आपको बता दें कि 1997 में ब्रिटिश और चीन के बीच हुए समझौते के मुताबिक काम कर रहे हांगकांग में न्यायालय चीन से अलग स्वतंत्र रूप से काम करता है। इसके अलावा अभिव्यक्ति की आजादी भी है, जिसे चीन लगातार दबाने की कोशिश कर रहा है। आपको यहां पर बता दें कि चीन हांगकांग में अपने नियमों-कानूनों को लागू कर रहा है, जिसको लेकर लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इसके साथ ही हांगकांग को चीन से अलग करने की मांग इन प्रदर्शनकारियों के बीच उठती दिखाई दे रही है।
इस आशंका के पीछे जो वजह है वह भी इस ओर इशारा कर रही है। दरअसल, चीन ने हांगकांग की सीमा पर काफी संख्या में जवानों की तैनाती की है। इसके अलावा हांगकांग में ही प्रदर्शनकारियों की आवाज को दबाने के लिए सुरक्षाबलों की सख्ती बढ़ती जा रही है। हांगकांग के प्रदर्शनकारियों की बात करें तो पिछले सप्ताह उन्होंने हार्बर पर लगे चीन के राष्ट्रीय झंडे तक को नुकसान पहुंचाया था, जिसके बाद वहां पर सुरक्षाबल तैनात किए गए थे। यहां पर कई बार प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच तीखी झड़पें भी हो चुकी हैं। खराब होते हालातों के मद्देनजर यहां की उड़ानें भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। इतना ही नहीं हवाई अड्डे तक को बंद तक कर देना पड़ा है। आपको बता दें कि 1997 में ब्रिटिश और चीन के बीच हुए समझौते के मुताबिक काम कर रहे हांगकांग में न्यायालय चीन से अलग स्वतंत्र रूप से काम करता है। इसके अलावा अभिव्यक्ति की आजादी भी है, जिसे चीन लगातार दबाने की कोशिश कर रहा है। आपको यहां पर बता दें कि चीन हांगकांग में अपने नियमों-कानूनों को लागू कर रहा है, जिसको लेकर लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इसके साथ ही हांगकांग को चीन से अलग करने की मांग इन प्रदर्शनकारियों के बीच उठती दिखाई दे रही है।
प्रदर्शनों को दबाने की तैयारी
हांगकांग में प्रदर्शन कर रहे लोगों का मानना है कि चीन लगातार उनके अधिकारों का या तो हनन कर रहा है या फिर उन्हें खत्म कर रहा है। इन लोगों का मानना है कि चीन उनसे उनकी आजादी छिनने की कोशिश कर रहा है और इसके खिलाफ उठने वाली आवाज को बलपूवर्क दबाने पर तुला है। वहीं चीन हांगकांग पर प्रदर्शनकारियों की आवाज बने दूसरे मुल्कों को भी चुप रहने की हिदायत दे चुका है। इतना ही नहीं चीन साफ कर चुका है कि इस तरह के प्रदर्शनों को शांत करने के लिए कुछ भी करने से गुरेज नहीं करेगा। चीन सिर्फ यह बातें कह ही नहीं रहा है बल्कि इसके लिए खुद को तैयार भी कर रहा है।
हांगकांग में प्रदर्शन कर रहे लोगों का मानना है कि चीन लगातार उनके अधिकारों का या तो हनन कर रहा है या फिर उन्हें खत्म कर रहा है। इन लोगों का मानना है कि चीन उनसे उनकी आजादी छिनने की कोशिश कर रहा है और इसके खिलाफ उठने वाली आवाज को बलपूवर्क दबाने पर तुला है। वहीं चीन हांगकांग पर प्रदर्शनकारियों की आवाज बने दूसरे मुल्कों को भी चुप रहने की हिदायत दे चुका है। इतना ही नहीं चीन साफ कर चुका है कि इस तरह के प्रदर्शनों को शांत करने के लिए कुछ भी करने से गुरेज नहीं करेगा। चीन सिर्फ यह बातें कह ही नहीं रहा है बल्कि इसके लिए खुद को तैयार भी कर रहा है।
थियानमेन नरसंहार पर खामोश रहता है चीन
अब हम आपको बता दें कि जिस आशंका से पूरा विश्व डरा हुआ है आखिर वह है क्या। आपको बता दें कि 4 जून 1989 को थियानमेन चौक पर लोकतंत्र समर्थकों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को वहां की सरकार ने फौजी बूटों के नीचे रौंद डाला था। चीनी सेना की इस कार्रवाई में करीब 10,000 आम लोग मारे गए थे। वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस दौरान 200 लोग मारे गए और लगभग 7 हजार घायल हुए थे। चीन की सरकार इसको लेकर हमेशा खामोश रही लेकिन ब्रिटेन की एक रिपोर्ट में यहां मारे गए लोगों के बारे में खुलासा किया था। इस रिपोर्ट में चीन में उस वक्त मौजूद ब्रिटिश राजदूत एलन डोनाल्ड के उस टेलीग्राम का जिक्र है जिसमें उन्होंने इसकी जानकारी दी थी। यह दस्तावेज ब्रिटेन के नेशनल आर्काइव में मौजूद है। इस रिपोर्ट पर अमेरिका और फ्रांस के विशेषज्ञों ने भी सहमति जताई थी। आलम ये है कि तीन दशक बाद भी चीन की सरकार थियानमेन चौक पर हुए नरसंहार को लेकर पूरी तरह से खामोश रहती है। इस पर किसी को बहस करने की भी अनुमति नहीं है। इतना ही नहीं इसको लेकर चीन में इंटरनेट पर बंदिशें लागू हैं। सरकार की नीतियों के विरोधी थे हू
चीन में ये विरोध प्रदर्शन अप्रैल 1989 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव और उदार सुधारवादी हू याओबांग की मौत के बाद शुरू हुए थे। हू क्योंकि चीन के रुढ़िवादियों और सरकार की आर्थिक और राजनीतिक नीति के विरोधी थे, लिहाजा उन्हें सरकार से हटा दिया गया था। हू कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के चेयरमेन भी रह चुके थे। इसके अलावा वह पार्टी के टॉप अधिकारियों में से एक थे। आठ अप्रैल 1989 को हू को दिल का दौरा पड़ा था, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उस वक्त उनकी पत्नी उनके साथ थी। 15 अप्रैल को उनका निधन हो गया। हालांकि बाद उनकी पत्नी की तरफ से हू के इलाज में कौताही बरतने की बात सामने आई। धीरे-धीरे यही सोच लोगों पर हावी हो गई। इस घटना के बाद 1 जून को तत्कालीन राष्ट्रपति ली पेंग को एक ज्ञापन देने की मंशा से थियानमेन चौक पर करीब 50 हजार लोग एकत्रित हुए थे। छात्रों ने उन्हीं की याद में एक मार्च आयोजित किया था। 3-4 जून 1989 को इन प्रदर्शनों ने जोर पकड़ा। इसके खिलाफ चीन ने अपनी फौज को इसका बल दमन करने के लिए सड़कों पर खुली छूट दी गई थी। पीएलए ने विरोध को दबाने के लिए बंदूकों का ही नहीं बल्कि टैंकों का भी इस्तेमाल करने से परहेज नहीं किया था।जानें क्यों अहम है पीएम मोदी की फ्रांस, बहरीन और यूएई की यात्रा
जम्मू-कश्मीर पर आखिर पाकिस्तान के विदेश मंत्री का डर आ ही गया सामने, जानें क्या कहा
अब हम आपको बता दें कि जिस आशंका से पूरा विश्व डरा हुआ है आखिर वह है क्या। आपको बता दें कि 4 जून 1989 को थियानमेन चौक पर लोकतंत्र समर्थकों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को वहां की सरकार ने फौजी बूटों के नीचे रौंद डाला था। चीनी सेना की इस कार्रवाई में करीब 10,000 आम लोग मारे गए थे। वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस दौरान 200 लोग मारे गए और लगभग 7 हजार घायल हुए थे। चीन की सरकार इसको लेकर हमेशा खामोश रही लेकिन ब्रिटेन की एक रिपोर्ट में यहां मारे गए लोगों के बारे में खुलासा किया था। इस रिपोर्ट में चीन में उस वक्त मौजूद ब्रिटिश राजदूत एलन डोनाल्ड के उस टेलीग्राम का जिक्र है जिसमें उन्होंने इसकी जानकारी दी थी। यह दस्तावेज ब्रिटेन के नेशनल आर्काइव में मौजूद है। इस रिपोर्ट पर अमेरिका और फ्रांस के विशेषज्ञों ने भी सहमति जताई थी। आलम ये है कि तीन दशक बाद भी चीन की सरकार थियानमेन चौक पर हुए नरसंहार को लेकर पूरी तरह से खामोश रहती है। इस पर किसी को बहस करने की भी अनुमति नहीं है। इतना ही नहीं इसको लेकर चीन में इंटरनेट पर बंदिशें लागू हैं। सरकार की नीतियों के विरोधी थे हू
चीन में ये विरोध प्रदर्शन अप्रैल 1989 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव और उदार सुधारवादी हू याओबांग की मौत के बाद शुरू हुए थे। हू क्योंकि चीन के रुढ़िवादियों और सरकार की आर्थिक और राजनीतिक नीति के विरोधी थे, लिहाजा उन्हें सरकार से हटा दिया गया था। हू कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के चेयरमेन भी रह चुके थे। इसके अलावा वह पार्टी के टॉप अधिकारियों में से एक थे। आठ अप्रैल 1989 को हू को दिल का दौरा पड़ा था, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उस वक्त उनकी पत्नी उनके साथ थी। 15 अप्रैल को उनका निधन हो गया। हालांकि बाद उनकी पत्नी की तरफ से हू के इलाज में कौताही बरतने की बात सामने आई। धीरे-धीरे यही सोच लोगों पर हावी हो गई। इस घटना के बाद 1 जून को तत्कालीन राष्ट्रपति ली पेंग को एक ज्ञापन देने की मंशा से थियानमेन चौक पर करीब 50 हजार लोग एकत्रित हुए थे। छात्रों ने उन्हीं की याद में एक मार्च आयोजित किया था। 3-4 जून 1989 को इन प्रदर्शनों ने जोर पकड़ा। इसके खिलाफ चीन ने अपनी फौज को इसका बल दमन करने के लिए सड़कों पर खुली छूट दी गई थी। पीएलए ने विरोध को दबाने के लिए बंदूकों का ही नहीं बल्कि टैंकों का भी इस्तेमाल करने से परहेज नहीं किया था।जानें क्यों अहम है पीएम मोदी की फ्रांस, बहरीन और यूएई की यात्रा
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