एस.के. सिंह, नई दिल्ली। वर्ष 2023 में तीन दशक की सबसे कम ग्रोथ (कोविड के तीन साल छोड़) दर्ज करने के बाद चीन की आर्थिक विकास दर 2024 में भी घटने की आशंका है। वैसे तो इस वर्ष भारत समेत पूरी ग्लोबल इकोनॉमी की रफ्तार कम होने के आसार हैं, लेकिन चीन की स्थिति औरों से अलग है। वहां प्रॉपर्टी मार्केट में कमजोरी बरकरार रहने, घरेलू और निर्यात मांग कमजोर होने, सरकार की तरफ से कम खर्च और कामकाजी उम्र वालों की संख्या घटने से स्थिति ज्यादा बिगड़ने का अंदेशा है। इन सबका नतीजा डिफ्लेशन है, जो नई चुनौती बनकर उभर रहा है। चीन की अर्थव्यवस्था पिछले साल अक्टूबर में डिफ्लेशन में चली गई थी। इससे वहां असंतुलन बढ़ने की आशंका है, जिसका कुछ असर विश्व अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है।

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डिफ्लेशन, इन्फ्लेशन (महंगाई) का उल्टा होता है। महंगाई के विपरीत इसमें वस्तुओं और सेवाओं के दाम घटते हैं। डिफ्लेशन में कर्ज की वास्तविक वैल्यू बढ़ जाती है तथा उसे लौटाना और मुश्किल हो जाता है। डिफ्लेशन यह भी बताता है कि अर्थव्यवस्था में या तो मांग कम है या सप्लाई ज्यादा है। चीन अधिक सप्लाई से जूझ रहा है।

जापान में 1990 के दशक के मध्य से डिफ्लेशन की समस्या है। वहां करीब 30 साल पहले एसेट बबल, अत्यधिक कर्ज और संस्थागत कमजोरी से ही इसकी शुरुआत हुई थी। टेक्नोलॉजी में तरक्की के बावजूद जापान की यह हालत हुई। लोगों की आमदनी और इकोनॉमी में स्थिरता आ गई। वर्ष 2023 की अंतिम दो तिमाही में विकास दर नेगेटिव रहने के कारण जापान एक बार फिर मंदी में आ गया है। यही नहीं अर्थव्यवस्था सिकुड़ने से उसने दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी का दर्जा भी खो दिया है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था अब जापान से बड़ी हो गई है।

डिफ्लेशन में दाम घटने से निर्यात भी सस्ता पड़ता है। इसलिए चीन का डिफ्लेशन बाकी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन सकता है। यूरोपियन यूनियन का कहना है कि चीन अपने अतिरिक्त उत्पादन को दूसरे देशों में कम कीमत पर डंप कर रहा है।

एसओएएस यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन में फाइनेंशियल इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर और लंबे समय से चीन की इकोनॉमी का अध्ययन करने वाली हांग बो जागरण प्राइम से कहती हैं, “दक्षिण-पूर्व एशिया या अन्य इलाकों के जो देश चीन से सामान आयात करते हैं, उन्हें इसका फायदा मिलेगा क्योंकि चीन में कीमतें कम होगी तो उनके लिए आयात भी सस्ता पड़ेगा। लेकिन अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने चीन से आयात पर कई तरह के अंकुश लगा रखे हैं। इसलिए मेरे विचार से बहुत ज्यादा असर नहीं होगा। जापान में भी लंबे समय तक डिफ्लेशन की स्थिति थी, लेकिन उसका दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था पर कोई खास असर नहीं दिखा।” हालांकि जापान और चीन में सबसे बड़ा फर्क यह है कि जापान की मैन्युफैक्चरिंग कभी चीन जितनी विशाल नहीं थी, वह कभी ‘दुनिया की फैक्टरी’ नहीं बना।

नए ट्रेड वॉर की आशंका, चीन पड़ा अकेला

आने वाले समय में चीन की अर्थव्यवस्था में असंतुलन बढ़ने की आशंका है। ऐसे में ट्रेड वॉर का नया दौर शुरू हो सकता है। इस वॉर में चीन फिलहाल अकेला पड़ता दिख रहा है। ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. गुंजन सिंह कहती हैं, “इस समय चीन का कोई दोस्त नहीं है। हर देश चीन से दूर होना चाहता है। इस समय कोई भी बात चीन के पक्ष में नहीं हो रही है।” चीन सबसे अधिक निर्यात अमेरिका को करता था, लेकिन 2023 में उसकी जगह मेक्सिको ने ले ली।

डेलॉय के चीफ ग्लोबल इकोनॉमिस्ट इरा कलिश ने ग्लोबल इकोनॉमिक अपडेट में लिखा है, “चीन से अमेरिका को निर्यात में तीन दशक में सबसे बड़ी गिरावट आई है। अमेरिका के आयात में चीन का हिस्सा 2004 के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिका के साथ व्यापार घटने के दो प्रमुख कारण हैं। पहला, अमेरिका में ज्यादा टैरिफ और कुछ वस्तुओं के आयात पर रोक। दूसरा, सीमा पार निवेश पर अंकुश।”

कलिश के अनुसार, भू-राजनीतिक जोखिम के चलते अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन में निवेश घटाया है और उनकी सप्लाई चेन भारत तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को शिफ्ट हुई है। रोचक बात यह है कि इन देशों से अमेरिका का आयात बढ़ा है तो इन देशों को चीन से इनपुट के निर्यात में भी वृद्धि हुई है। वैसे हाल के महीनों में जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपियन यूनियन के साथ दक्षिण-पूर्व एशिया को भी चीन का निर्यात कम हुआ है। दूसरी तरफ रूस और ब्राजील को चीन से निर्यात में तेज बढ़ोतरी हुई है।

हाल के वर्षों में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार को लेकर तनाव पहली बार 2018 में बढ़ा। तब व्यापार घाटा कम करने के लिए अमेरिका ने चीन से आयात पर अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया था। उसी साल दिसंबर में दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हुई लेकिन मई 2019 में टूट गई। आखिरकार जनवरी 2020 में दोनों के बीच डील हुई। उसके बाद भी अमेरिका ने चीन को कई तरह के निर्यात पर पाबंदियां लगाई हैं, खास कर टेक्नोलॉजी संबंधी। इससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है। चीन ने अमेरिकी ट्रेजरी बांड बेचने की धमकी दी है तो अमेरिका ने कई चाइनीज टेक्नोलॉजी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है। बढ़ता तनाव दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों को और कमजोर कर सकता है। इसका असर वैश्विक वित्तीय बाजार पर भी दिख सकता है।

नई टेक्नोलॉजी न मिलने से समस्या

चीन की उद्योग नीति सरकारी सब्सिडी तथा विदेशी टेक्नोलॉजी पर फलती-फूलती रही है, और खास कर अमेरिका ने नई टेक्नोलॉजी पर लगाम लगा दी है। डॉ. गुंजन कहती हैं, “चीन और अमेरिका के रिश्तों में तल्खी लगातार बढ़ रही है। चीन कह रहा है कि वह अमेरिका को कच्चा माल नहीं देगा, दूसरी तरफ अमेरिका चीन को चिप टेक्नोलॉजी नहीं देना चाहता है। अब तो पूरी दुनिया इस इंतजार में है कि चीन और अमेरिका के रिश्ते किस करवट बैठते हैं।”

गुंजन के मुताबिक, “शायद यही कारण है कि चीन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चिप मैन्युफैक्चरिंग पर जोर देना चाहता है। वह निर्यात पर निर्भरता घटा कर टेक्नोलॉजी इनोवेटर बनना चाहता है, लेकिन इसमें अमेरिका उसके लिए सबसे बड़ी अड़चन है। चिप इंडस्ट्री को अपने यहां लाने के लिए चीन अरबों डॉलर खर्च कर चुका है।”

“चीन-ताइवान रिश्ते बिगड़ने का यह एक प्रमुख कारण है। ताइवान सबसे बड़ा चिप निर्माता है। उसके पास टेक्नोलॉजी है, नॉलेज है। ताइवान के जरिए चीन चिप मैन्युफैक्चरिंग पर अपना नियंत्रण चाहता है। हमने कोविड के समय देखा कि चिप की कमी से कार से लेकर हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक सामान की मैन्युफैक्चरिंग प्रभावित हुई। चीन बड़े पैमाने पर चिप मैन्युफैक्चरिंग करके अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहता है।”

नवंबर 2023 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से मिले तो मुख्य एजेंडा आर्थिक ही था। जिनपिंग ने यूरोपियन कमीशन के अधिकारियों से भी मुलाकात की ताकि यूरोप के साथ व्यापार जारी रहे और टेक्नोलॉजी भी मिलती रहे। हालांकि अभी तक इसमें बड़ी सफलता मिलती नहीं दिख रही है।

चीन का ईवी निर्यात भी हो सकता है प्रभावित

डेलॉय के मुताबिक 2023 में चीन से वाहन निर्यात 58% बढ़ा है। वर्ष 2024 में उसके सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल निर्यातक बन जाने की उम्मीद है। संभवतः 2023 में ही उसने यह दर्जा हासिल कर लिया हो। चीन से वाहनों का ज्यादा निर्यात दक्षिण-पूर्व एशिया को हुआ है। इसमें 30% इलेक्ट्रिक वाहन हैं।

एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, चीन को पहले स्टील और रिन्यूएबल के क्षेत्र में अतिरिक्त उत्पादन क्षमता से जूझना पड़ा था, अब इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी के मामले में ऐसा हो रहा है। चाइनीज ऑटोमोबाइल कंपनियां 60% से भी कम क्षमता पर काम कर रही हैं। चीन इस समय 2.7 करोड़ यूनिट उत्पादन का 12% निर्यात करता है, जिसमें ईवी का हिस्सा तेजी से बढ़ रहा है।

अमेरिका ने चाइनीज कारों पर 27.5% ड्यूटी लगा दी है जिससे चीन के लिए वहां अपनी गाड़ियां बेचना मुश्किल हो गया है। इनफ्लेशन रिडक्शन एंड चिप्स एंड साइंस एक्ट के जरिए अमेरिका खुद ईवी, रिन्यूएबल और सेमीकंडक्टर उत्पादन की क्षमता बढ़ाना चाहता है। ट्रंप की वापसी होने पर चीन के खिलाफ ऐसे और कदम देखे जा सकते हैं। यूरोप में टैरिफ कम है और वहां चीन अपना ऑटो निर्यात बढ़ा सकता है। लेकिन यूरोपियन कमीशन ने भी चीन सरकार की तरफ से कंपनियों को सब्सिडी की जांच शुरू कर दी है। संभव है कि वह भी चाइनीज वाहनों पर टैरिफ बढ़ा दे।

एसएंडपी ग्लोबल के अनुसार, सोलर पैनल, कार और कुछ होम अप्लायंसेज के सेगमेंट में ओवरकैपेसिटी के संकेत हैं जिनकी वजह से इंडस्ट्री को दाम घटाने पड़ रहे हैं। इसका असर उनके प्रॉफिट पर हो रहा है। हालांकि दाम उपभोक्ताओं के लिए भी कम हुए हैं, लेकिन इससे मांग पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि लोग खर्च करने के बजाय बचत कर रहे हैं।

एसएंडपी ग्लोबल ने 29 जनवरी को जारी रिपोर्ट में 2024 में चीन में 4.6% ग्रोथ का अनुमान जताया है। इसके मुताबिक अनेक सेक्टर में कीमतों के साथ प्रॉफिट पर दबाव रहेगा। मौजूदा हालात और नीतिगत समर्थन के अभाव में खपत में वृद्धि कम रहेगी। उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में गिरावट डिफ्लेशन की समस्या को गंभीर कर सकती है। जीडीपी डिफ्लेटर कीमतों में उतार-चढ़ाव को दर्शाता है और नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स (एनबीएस) के आंकड़ों के अनुसार यह दिसंबर तिमाही में 1% गिरा है।

चीन के प्रॉपर्टी मार्केट का कमोडिटी पर प्रभाव

आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे-ओलिवियर गोरिंचस के अनुसार चीन में एवरग्रांडे और कंट्री गार्डन होल्डिंग्स जैसी बड़ी रियल्टी कंपनियों के डिफॉल्ट करने से चिंता बढ़ रही है, क्योंकि इसका प्रभाव दूसरे देशों पर भी पड़ेगा।

चीन का प्रॉपर्टी सेक्टर स्टील, एल्युमिनियम, गैस ऑयल, कॉपर, बिटुमिन और कई पेट्रोकेमिकल पदार्थों की मांग का बड़ा माध्यम रहा है। एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के अनुसार 2023 में चीन में 30.8% स्टील की खपत (28 करोड़ टन) प्रॉपर्टी सेक्टर में हुई, 2020 में यह 36.2% थी। 2024 में इसके घटकर 29.5% यानी 26.8 करोड़ टन रह जाने की संभावना है। चीन में एल्युमिनियम की भी सबसे ज्यादा, 30% खपत प्रॉपर्टी सेक्टर में होती है। कॉपर की 20% से अधिक मांग कंस्ट्रक्शन और होम अप्लायंसेज में है। ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होने वाले गैस ऑयल की 30% और रासायनिक उत्पादों की 35% खपत प्रॉपर्टी और इन्फ्रास्ट्रक्चर में होती है।

रियल एस्टेट में सुस्ती आने से इन कमोडिटी की मांग भी कम हुई है। घरेलू मांग कम होने से चीन ने 2023 में 36% ज्यादा, 902 लाख टन फिनिश्ड स्टील का निर्यात किया जबकि आयात में 276% कमी आई। यही स्थिति 2024 में भी रहने के आसार है। चीन ने 2023 में 15.4 लाख टन एल्युमिनियम का आयात किया, जो 2022 की तुलना में 130% ज्यादा है, लेकिन इसका कारण घरेलू उत्पादन प्रभावित होना है।

ग्रीन एनर्जी पर जोर दिए जाने से चीन में कॉपर की मांग काफी बढ़ी है, फिर भी पिछले साल रिफाइंड कॉपर का आयात 3.8% कम हुआ। प्रॉपर्टी मार्केट में कमजोरी के कारण पेट्रोकेमिकल प्रोडक्ट की मांग 2027 के बाद ही बढ़ने की उम्मीद की जा रही है।

ग्लोबल चेन में बदलाव का हिस्सा बन चुका है भारत

चीन की घरेलू तथा विदेश नीति से ग्लोबल सप्लाई चेन में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। अमेरिका-यूरोप की अनेक कंपनियां भारत समेत दूसरे देशों में निवेश कर रही हैं। नए ग्लोबल वैल्यू चेन में भारत की भूमिका के सवाल पर थिंक टैंक ब्रॉयगल (Bruegel) में सीनियर रिसर्च फेलो और पेरिस स्थित इन्वेस्टमेंट बैंक नेटिक्सिस में एशिया पेसिफिक की मुख्य अर्थशास्त्री एलिसिया गार्सिया हेरेरो कहती हैं, “भारत बदलाव का हिस्सा बन चुका है। आज यूरोपियन चीन के साथ अपने वैज्ञानिक सहयोग की समीक्षा कर रहे हैं। वहां हर व्यक्ति कह रहा है कि हमें किसी और के साथ हाथ मिलाना चाहिए। इसलिए अगर आप ज्यादा कुछ न भी करें, सिर्फ अपना बिजनेस कार्ड दें तो आप उनके साथ हो सकते हैं, क्योंकि हर कोई नया साझीदार तलाश रहा है।” वे यह भी कहती हैं, “निवेशक दूसरा बाजार तलाश रहे हैं जहां ग्रोथ हो। लेकिन चीन पूरी तरह अप्रासंगिक नहीं हुआ है, हालांकि उसकी प्रासंगिकता जोखिम के मामले में भी है।”