मसूद पर चीन का साथ पाने के लिए भारत को चुकानी होगी कीमत, नहीं तो अधूरा रहेगा सपना!
अमेरिका भले ही मसूद पर प्रतिबंध को लेकर संयुक्त राष्ट्र में नया प्रस्ताव लाया हो लेकिन इससे कुछ नहीं होने वाला है। मसूद पर ये है चीन के विशेषज्ञों की राय।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 30 Mar 2019 05:51 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पाकिस्तान में बैठे आतंकी मसूद अजहर पर पिछले एक माह से रार थमने का नाम नहीं ले रही है। इसके दो पहलू हैं। एक पहलू में भारत, अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन हैं तो दूसरे पहलू पर चीन और पाकिस्तान हैं। पाकिस्तान चीन के जरिए आज तक इस आतंकी को बचाता आया है। पिछले ही दिनों चीन ने फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल करते हुए इसको गिरा दिया था। वहीं अब अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद के खिलाफ सीधा प्रस्ताव पेश कर दिया है, जिससे चीन चिढ़ गया है। अमेरिका की बात करें तो उसका कहना है कि चीन अपने यहां के मुसलमानों को आतंकी बताकर जेल में ठूंस रहा है और मसूद को बचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है। चीन की वजह से ही मसूद 2007, 2016, 2017 और फिर 2019 में वैश्विक आतंकी घोषित नहीं हो सका है। लेकिन चीन के रुख से बार-बार एक सवाल जरूर खड़ा होता है कि आखिर यह आतंकी चीन का इतना चहेता क्यों है। इसको समझना बेहद जरूरी है।
चीन के रुख की एक बड़ी वजह
दरअसल चीन और पाकिस्तान के रिश्ते किसी से भी अछूते नहीं रहे हैं। चीन किसी भी सूरत में पाकिस्तान में किए गए खरबों डॉलर के निवेश पर प्रश्नचिंह नहीं लगा सकता है। भारतीय रक्षा और विदेश मामलों के जानकारों की राय में यदि चीन मसूद पर कड़ा रुख इख्तियार करता है तो पाकिस्तान का आर्थिक गलियारा मुसीबत में पड़ सकता है। इतना ही नहीं चीन के करीब 15-20 हजार लोग इस वक्त पाकिस्तान में हैं। इनमें से हजारों इसी सीपैक से जुड़े हैं। यदि चीन मसूद पर कार्रवाई करता है तो पाकिस्तान में मौजूद आतकियों की जमात यूनाइटेड जेहाद काउंसिल, जिसका मूल काम आतंकियों की ट्रेनिंग, फंडिंग और हमले करवाना है, वो चीनी नागरिकों के लिए खतरा बन जाएगी। ये भी पढ़ें- पुरानी है पाकिस्तान की ये बेशर्मी, अमेरिकी चेतावनी के बाद भी नहीं हुआ कोई असर
दरअसल चीन और पाकिस्तान के रिश्ते किसी से भी अछूते नहीं रहे हैं। चीन किसी भी सूरत में पाकिस्तान में किए गए खरबों डॉलर के निवेश पर प्रश्नचिंह नहीं लगा सकता है। भारतीय रक्षा और विदेश मामलों के जानकारों की राय में यदि चीन मसूद पर कड़ा रुख इख्तियार करता है तो पाकिस्तान का आर्थिक गलियारा मुसीबत में पड़ सकता है। इतना ही नहीं चीन के करीब 15-20 हजार लोग इस वक्त पाकिस्तान में हैं। इनमें से हजारों इसी सीपैक से जुड़े हैं। यदि चीन मसूद पर कार्रवाई करता है तो पाकिस्तान में मौजूद आतकियों की जमात यूनाइटेड जेहाद काउंसिल, जिसका मूल काम आतंकियों की ट्रेनिंग, फंडिंग और हमले करवाना है, वो चीनी नागरिकों के लिए खतरा बन जाएगी। ये भी पढ़ें- पुरानी है पाकिस्तान की ये बेशर्मी, अमेरिकी चेतावनी के बाद भी नहीं हुआ कोई असर
क्या कहता है चीन का सरकारी मीडिया
वहीं अमेरिका का नए प्रस्ताव से भले ही चीन चिढ़ा हुआ हो और उसने अमेरिका को ऐसा न करने की चेतावनी दी हो, लेकिन एक हकीकत ये भी है कि इस प्रस्ताव से भी ज्यादा कुछ होने वाला नहीं है। ऐसा हम नहीं बल्कि कुछ दिन पहले इस तरह की बात चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने विशेषज्ञों के हवाले से लिखी थी। इसमें शंघाई इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के सीनियर फैलो लियू जोंगई ने कहा था कि यदि मसूद पर प्रतिबंध लगाने में अन्य देश कामयाब हो जाते हैं तो वैश्विक मेंच पर पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देने वाले देश के रूप में देखा जाएगा। भारत की पूरी कोशिश यही है। मूसद पर कोई दबाव नहीं आएगा काम
उनके मुताबिक अमेरिका से पहले जो प्रस्ताव मसूद के खिलाफ पेश किया गया था उस पर चीन ने तकनीक के आधार पर अड़ंगा लगाया था। इसका मुख्य आधार संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद और आतंकी की परिभाषा को लेकर है। उन्होंने यहां तक कहा कि अलकायदा के खिलाफ जिस आधार पर प्रतिबंध लगाए गए थे, मौजूदा प्रस्ताव उस पर खरा नहीं उतरता है। इसके अलावा इसमें आम सहमति की भी कमी है। इतना ही नहीं लियू यह कहने से भी नहीं चूके कि संयुक्त राष्ट्र जैश ए मुहम्मद पर प्रतिबंध लगा चुका है। लेकिन यह संगठन आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाता है। इसके निशाने पर केवल भारतीय फौज और पुलिस के जवान होते हैं। उन्होंने साफ कर दिया था कि भारत समेत पूरा विश्व इस मुद्दे पर भले ही चीन पर दबाव बनाने की कोशिश करे, लेकिन यह दबाव काम नहीं आएगा।
वहीं अमेरिका का नए प्रस्ताव से भले ही चीन चिढ़ा हुआ हो और उसने अमेरिका को ऐसा न करने की चेतावनी दी हो, लेकिन एक हकीकत ये भी है कि इस प्रस्ताव से भी ज्यादा कुछ होने वाला नहीं है। ऐसा हम नहीं बल्कि कुछ दिन पहले इस तरह की बात चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अपने विशेषज्ञों के हवाले से लिखी थी। इसमें शंघाई इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के सीनियर फैलो लियू जोंगई ने कहा था कि यदि मसूद पर प्रतिबंध लगाने में अन्य देश कामयाब हो जाते हैं तो वैश्विक मेंच पर पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देने वाले देश के रूप में देखा जाएगा। भारत की पूरी कोशिश यही है। मूसद पर कोई दबाव नहीं आएगा काम
उनके मुताबिक अमेरिका से पहले जो प्रस्ताव मसूद के खिलाफ पेश किया गया था उस पर चीन ने तकनीक के आधार पर अड़ंगा लगाया था। इसका मुख्य आधार संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद और आतंकी की परिभाषा को लेकर है। उन्होंने यहां तक कहा कि अलकायदा के खिलाफ जिस आधार पर प्रतिबंध लगाए गए थे, मौजूदा प्रस्ताव उस पर खरा नहीं उतरता है। इसके अलावा इसमें आम सहमति की भी कमी है। इतना ही नहीं लियू यह कहने से भी नहीं चूके कि संयुक्त राष्ट्र जैश ए मुहम्मद पर प्रतिबंध लगा चुका है। लेकिन यह संगठन आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाता है। इसके निशाने पर केवल भारतीय फौज और पुलिस के जवान होते हैं। उन्होंने साफ कर दिया था कि भारत समेत पूरा विश्व इस मुद्दे पर भले ही चीन पर दबाव बनाने की कोशिश करे, लेकिन यह दबाव काम नहीं आएगा।
ये भी पढ़ें- चीन के लिए पाकिस्तान पोषित जैश सरगना मसूद अजहर को बचाना नामुमकिन
कौन क्या कहता है परवाह नहीं
चीन की सरकारी मीडिया ने जिस तरह से मसूद को पेश किया है वह वास्तव में शर्मिंदगी के ही काबिल है। लियू के मसूद को लेकर जो विचार हैं वह पूरी तरह से चीन की सरकार की मंशा की अभिव्यक्ति ही हैं। उनका मानना है कि भारत में होने वाले आम चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा है। चीन के अड़ंंगे से यह तय है कि भारतीय मीडिया में चीन को बुरा-भला कहा जाएगा, लेकिन इन सभी से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। उन्होंने मसूद को बेहद छोटा मसला बताया है। उनका कहना है कि भारत हमेशा से ही एक बड़े फलक पर छोटे से मुद्दे को उठाकर ध्यान भटकाने की कोशिश करता रहा है। इस दौरान उन्होंने एक बड़ी बात भी कही। उनका कहना है कि भारत मसूद पर बिना कुछ दिए ही बहुत कुछ पाना चाहता है। लियू के बयान से यह सवाल उठना बेहद जरूरी हो जाता है कि यहां पर आखिर वह किस तरह कीमत की बात कर रहे हैं। लियू का यह बयान इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि भारत और चीन के बीच भी कुछ विवादस्पद मुद्दे हैं। इनमें से दलाई लामा का भी एक मुद्दा है। नहीं बदलेगा चीन का रुख
रेनमिन यूनिवर्सिटी के नॉन रेसिडेंट फैलो लॉन्ग शिंगचुन की राय भी काफी कुछ लियू की ही तरह है। उनके मुताबिक पुलवामा हमले की चीन ने निंदा भी की थी और शांक संदेश भी दिया था। लेकिन इससे ऐसा नहीं है कि मसूद के प्रति चीन के रुख या रवैये में किसी भी तरह का कोई बदलाव हो जाएगा। उन्होंने चीन का रुख स्पष्ट करते हुए यह भी कहा कि जब तक भारत मसूद के खिलाफ कुछ और पुख्ता सुबूत नहीं सौंपता है तब तक उसकी मंशा पूरी होने वाली नहीं है। इतना ही नहीं बार-बार मसूद के खिलाफ प्रस्ताव लाकर चीन से रिश्तों को खराब कर सकता है। चीन ने हमेशा से ही इस बात को कहा है कि भारत मसूद के खिलाफ सुबूत पेश करे, इतना ही नहीं वह इस मुद्दे पर पाकिस्तान से बात भी नहीं करना चाहता है। लिहाजा जब तक भारत के रुख में बदलाव नहीं आता है तब तक चीन से मसूद के खिलाफ जाने की बात भी नहीं सोचनी चाहिए। उनका कहना है कि विश्व को आतंकवाद के प्रति दोहरा रवैया नहीं अपनाना चाहिए। एक राय बनाना सबसे मुश्किल काम
वहीं सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज के डायरेक्टर झांग जियाडोंग का कहना है कि अधिकतर आतंकवादी संगठन किसी देश या कुछ खास लोगों पर हमले करते हैं। ऐसे में उनपर विश्व मंच पर एक राय बन पाना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने ये भी कहा कि चीन में कई आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले आतंकी कई दूसरे मुल्कों में बैठे हैं, वो वहां की ऑपरेट करते हैं। लेकिन वो देश उन्हें एक नागरिक या मेहमान के तौर पर देखता है। पाकिस्तान ही नहीं अमेरिका और चीन की भी है भारत के लोकसभा चुनाव पर नजर, ये है वजह!
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चीन की सरकारी मीडिया ने जिस तरह से मसूद को पेश किया है वह वास्तव में शर्मिंदगी के ही काबिल है। लियू के मसूद को लेकर जो विचार हैं वह पूरी तरह से चीन की सरकार की मंशा की अभिव्यक्ति ही हैं। उनका मानना है कि भारत में होने वाले आम चुनावों में यह एक बड़ा मुद्दा है। चीन के अड़ंंगे से यह तय है कि भारतीय मीडिया में चीन को बुरा-भला कहा जाएगा, लेकिन इन सभी से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। उन्होंने मसूद को बेहद छोटा मसला बताया है। उनका कहना है कि भारत हमेशा से ही एक बड़े फलक पर छोटे से मुद्दे को उठाकर ध्यान भटकाने की कोशिश करता रहा है। इस दौरान उन्होंने एक बड़ी बात भी कही। उनका कहना है कि भारत मसूद पर बिना कुछ दिए ही बहुत कुछ पाना चाहता है। लियू के बयान से यह सवाल उठना बेहद जरूरी हो जाता है कि यहां पर आखिर वह किस तरह कीमत की बात कर रहे हैं। लियू का यह बयान इस लिहाज से भी बेहद खास है क्योंकि भारत और चीन के बीच भी कुछ विवादस्पद मुद्दे हैं। इनमें से दलाई लामा का भी एक मुद्दा है। नहीं बदलेगा चीन का रुख
रेनमिन यूनिवर्सिटी के नॉन रेसिडेंट फैलो लॉन्ग शिंगचुन की राय भी काफी कुछ लियू की ही तरह है। उनके मुताबिक पुलवामा हमले की चीन ने निंदा भी की थी और शांक संदेश भी दिया था। लेकिन इससे ऐसा नहीं है कि मसूद के प्रति चीन के रुख या रवैये में किसी भी तरह का कोई बदलाव हो जाएगा। उन्होंने चीन का रुख स्पष्ट करते हुए यह भी कहा कि जब तक भारत मसूद के खिलाफ कुछ और पुख्ता सुबूत नहीं सौंपता है तब तक उसकी मंशा पूरी होने वाली नहीं है। इतना ही नहीं बार-बार मसूद के खिलाफ प्रस्ताव लाकर चीन से रिश्तों को खराब कर सकता है। चीन ने हमेशा से ही इस बात को कहा है कि भारत मसूद के खिलाफ सुबूत पेश करे, इतना ही नहीं वह इस मुद्दे पर पाकिस्तान से बात भी नहीं करना चाहता है। लिहाजा जब तक भारत के रुख में बदलाव नहीं आता है तब तक चीन से मसूद के खिलाफ जाने की बात भी नहीं सोचनी चाहिए। उनका कहना है कि विश्व को आतंकवाद के प्रति दोहरा रवैया नहीं अपनाना चाहिए। एक राय बनाना सबसे मुश्किल काम
वहीं सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज के डायरेक्टर झांग जियाडोंग का कहना है कि अधिकतर आतंकवादी संगठन किसी देश या कुछ खास लोगों पर हमले करते हैं। ऐसे में उनपर विश्व मंच पर एक राय बन पाना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने ये भी कहा कि चीन में कई आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले आतंकी कई दूसरे मुल्कों में बैठे हैं, वो वहां की ऑपरेट करते हैं। लेकिन वो देश उन्हें एक नागरिक या मेहमान के तौर पर देखता है। पाकिस्तान ही नहीं अमेरिका और चीन की भी है भारत के लोकसभा चुनाव पर नजर, ये है वजह!
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