लगातार पांचवीं बार ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाले शिंजो एबी रच सकते हैं इतिहास
जापान में सशक्त शासक वाली छवि की बदौलत शिंजो एबी ने लगातार पांचवीं बार जीत हासिल की है। जापान की जनता उनमें अपना रोनाल्ड रीगन देखती है।
राजीव नयन
जापान में हुए मध्यावधि चुनाव में शिंजो एबी के नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई है। गठबंधन ने जापानी संसद डाइट के निचले सदन की 465 में से 313 सीटों पर जीत दर्ज की है। मत फीसद के लिहाज देखा जाए तो 22 अक्टूबर को हुए चुनाव के नतीजे को शिंजो एबी के सियासी जीवन की सबसे बड़ी कामयाबी बताई जा सकती है। शिंजो एबी की अगुआई वाली लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की सहयोगी पार्टी कोमैटो दल ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की है। कोमैटो बौद्धों की पार्टी है। इस चुनाव में एक नए दल संवैधानिक डेमोक्रेटिक पार्टी का भी प्रवेश हुआ जिसने चुनाव में 55 सीटें हासिल की है। सबसे ज्यादा निराशा टोक्यो कीलोकप्रिय राज्यपाल यूरीको कोइके की हार से हुई। उनकी पार्टी ऑफ होप को मात्र 50 सीटें ही मिल पाईं। कभी शिंजो एबी की कैबिनेट में मंत्री रह चुकीं कोइके को जापान की हिलेरी क्लिंटन कहा जा रहा था।
शिंजो एबी की यह लगातार पांचवीं जीत है। एक नवंबर को जापानी संसद का निचला सदन उनका और उनके कैबिनेट सदस्यों का चुनाव करेगी। चार साल का अपना एक और कार्यकाल पूरा करने पर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वह जापान में सबसे लंबे समय तक रहने वाले प्रधानमंत्री बन जाएंगे। गौरतलब है कि सितंबर में ही शिंजो एबी ने समय पूर्व चुनाव की घोषणा की थी। जुलाई में उनकी राजनीतिक लोकप्रियता घटकर 30 प्रतिशत पर पहुंच गई थी और माना जाता है कि जिस राजनेता की लोकप्रियता 30 फीसद पर पहुंच जाए उसका राजनीतिक जीवन खत्म हो जाता है। मगर इस चुनाव परिणाम ने इस धारणा को खारिज कर दिया। शिंजो एबी की जीत का सबसे बड़ा कारण उनकी मजबूत शासक की छवि है।
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जापान की जनता उन्हें अमेरिका के रोनाल्ड रीगन की तरह देखती है। जापान की जनता को यह अटूट विश्वास है कि यह उनका रेम्बो उत्तर कोरिया और चीन दोनों के खिलाफ उन्हें सुरक्षा मुहैया करा सकता है। शिंजो एबी की वित्तीय समझ से लोगों में एक नई उम्मीद का संचार हुआ है। हालांकि कुछ जापानी विश्लेषकों ने विभाजित विपक्ष को भी शिंजो की जीत का कारण माना है जबकि कुछ अखबारों ने कम मतदान को अहम माना है। 1इस जीत के साथ शिंजो एबी की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की होगी। इस मोर्चे पर पिछले कुछ वर्षो में जापान चीन से पिछड़ रहा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में शिंजो एबी के लिए बहुत कुछ करने की गुंजाइश नहीं बची है। उनकी नीति से अर्थव्यवस्था में अभी तक सीमित बदलाव ही आ पाया था।
रिकॉर्ड कॉरपोरेट लाभ, बढ़ते स्टॉक और जमीन की बढ़ती कीमत उनके लिए चुनौती है। दूसरा अर्थव्यवस्था का लाभ जापान के निचले तबके तक नहीं पहुंच पा रहा है। चुनाव के दौरान अर्थव्यवस्था में सुधार का उन्होंने वादा किया था। प्रधानमंत्री एक 2 टिलियन येन पॉलिसी पैकेज तैयार करेंगे, जिसमें मुफ्त शिक्षा भी होगी। ऐसे में जापान की अर्थव्यवस्था के लिए प्राथमिक बजट अधिशेष या सरप्लस प्राप्त करना एक अहम मुद्दा होने जा रहा है। महिलाओं को कार्य क्षेत्र में हिस्सेदारी बढ़ाने की बात शिंजो एबी ने की है। माना जा रहा है कि महिलाओं की संख्या कार्यक्षेत्र में बढ़ने से अर्थव्यवस्था में बदलाव आएगा। यह भी हैरानी वाली बात है कि दूसरे विकसित देशों की तरह जापान में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी नहीं है।
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चुनाव पूर्व के जनमत सर्वेक्षण बताते हैं कि जापान का युवा स्थायित्व चाहता है। उन्हें स्थायी नौकरी ज्यादा पसंद है और उन्हें उत्तर कोरिया के मिसाइल प्रक्षेपणों से भी मुक्ति चाहिए। यह वर्ग शिंजो एबी का चुनाव में बड़ा समर्थक रहा था। उन्हें युवा वर्ग का भरोसा कायम रखना होगा। फुकुशिमा की घटना के करीब सात साल बाद, जापान के लिए फिर से परमाणु शक्ति हासिल करना एजेंडे में है। शिंजो एबी का मानना है कि परमाणु रियक्टर से महंगे ईंधन के निर्यात पर जापान की निर्भरता कम होगी और जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद मिलेगी। शिंजो एबी के लिए दूसरी बड़ी चुनौती संवैधानिक परिवर्तन की होगी। जापान में बहुत दिनों से शांति के लिए स्थापित संविधान की धारा 9 वहां के आम लोगों के आंखों की किरकिरी बनी हुई है। वह इसमें बदलाव लाकर जापान डिफेंस फोर्सेज को एक सेना का दर्जा देने की बात कह रहे हैं।
लगातार पांचवीं बार एतिहासिक जीत दर्ज करने वाले शिंजो अबे रच सकते हैं इतिहास
शिंजो एबी की अगुवाई वाले गठबंधन को मिली प्रचंड बहुमत ने इसका रास्ता साफ कर दिया है। अब देखना होगा कि जापान संविधान संशोधन कब करता है। धारा 9 के संशोधन से भी ज्यादा अहम जापानी नागरिकों की लिए उत्तर कोरिया की समस्या है। इसका समाधान कुछ हद तक धारा 9 के संशोधन से तो होगा ही, इससे उत्तर कोरिया और उसके मित्र राष्ट्रों को एक कड़ा संदेश भी मिलेगा। यह अलग बात है कि जापान की सैन्य क्षमता कोरिया या उसके मित्र राष्ट्रों से कहीं ज्यादा मजबूत है; पर संवैधानिक प्रावधान के चलते वह इन राष्ट्रों से लड़ नहीं सकता है। अब सवाल है कि क्या शिंजो एबी परमाणु अस्त्र का निर्माण करेंगे? निकट भविष्य में इसकी संभावना नहीं दिखती, लेकिन जैसे ही अमेरिका अपने नियमों में नरमी दिखाएगा वैसे ही एक नई स्थिति निर्मित होगी और शिंजो एबी हों या कोई और जापानी शासक उसे परमाणु विकल्प पर गंभीरता से विचार करना होगा।
शिंजो एबी अभी कूटनीति और सामरिक संबंधों के आधार पर ही कोरिया समस्या का निदान करने का प्रयास करेंगे। आने वाले समय में दक्षिण चीन सागर हो या उत्तर कोरिया की समस्या उन्हें अमेरिका तथा उसके मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर रणनीति तय करनी होगी। ऐसे में निश्चित ही शिंजो एबी के कार्यकाल में भारत और जापान का रिश्ता एक नई ऊंचाई को छुएगी।1शिंजो एबी जापान ही नहीं बल्कि एशिया और दुनिया के लिए एक आशा की किरण हैं। टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज में जबरदस्त उछाल 1990 के दशक के बाद नहीं देखा गया था जैसा कि इस चुनाव परिणाम के दिखा। शिंजो एबी का यह चुनाव जापान की दो दशकों की स्थिरता समाप्त करने शुरुआत हो सकती है। उनकी आर्थिक और सामरिक सफलता एक नई विश्व व्यवस्था का निर्माण करेगी।
(लेखक द इंस्टिट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं)
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