जब दिल्ली का एक कारपेंटर बना था सद्दाम हुसैन का खास मेहमान, सोने के कप में मिली थी कॉफी
सद्दाम हुसैन को अमेरिका ने तानाशाह के रूप में पूरी दुनिया के सामने पेश करने में जरूर सफलता पाई लेकिन कुछ लोगों के दिलों में सद्दाम की छवि एक जिंदादिल और अच्छे दोस्त की बनी रही।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 31 Dec 2019 09:48 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। सद्दाम हुसैन को दुनिया एक तानाशाह के रूप में जानती है। वहीं ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है जिनके लिए वह एक अच्छा दोस्त और बेहतर मेजबान थे। सद्दाम हुसैन का ये रूप दुनिया के सामने ज्यादा नहीं आ सका। यह भी सच है कि दुनिया के सामने अमेरिका सद्दाम हुसैन को एक दरिंदे तानाशाह के रूप में पेश करने में पूरी तरह से सफल रहा। बहरहाल, सद्दाम हुसैन का नाम अब अतीत के पन्नों तक ही सीमित रह गया है। सद्दाम हुसैन के शासन के बाद इराक न सिर्फ बदहाली की तरफ बढ़ गया बल्कि राजनीतिक तौर पर काफी हद तक अस्थिर भी रहा। सद्दाम को अमेरिकी सैनिकों द्वारा एक बंकर से गिरफ्तार करने के बाद 30 दिसंबर 2006 को बगदाद में फांसी दे दी गई। उन पर आरोप था कि उन्होंने सैकड़ों की संख्या में शियाओं की हत्या करवाई और कुर्दों को भी नहीं बख्शा। आपको बता दें कि मार्च 1974 में सद्दाम भारत आए थे। उस वक्त वो इराक के उप राष्ट्रपति थे।
जब मुख्तियार बने सद्दाम के खास मेहमान
90 के दशक में कुवैत पर हमले के बाद सद्दाम अमेरिका की निगाह में आ गए थे। अमेरिका के आगे न झुककर वह अरब जगत में एक हीरो की तरह सामने आए थे। जब उन्हें फांसी दी गई तो जहां कुछ लोग खुश हुए वहीं कुछ ऐसे भी थे, जिन्हें इस खबर ने हिलाकर रख दिया था। इनमें से एक थे मुख्तियार सिंह। मुख्तियार सिंह सद्दाम की मौत की खबर सुनकर हिल गए थे। वो न तो कोई बहुत बड़े रईस थे और न ही सरकार या सत्ता से जुड़े कोई अहम इंसान। मुख्तियार सिंह का दिल्ली के कीर्ति नगर में फर्नीचर का काम है। खास बात ये है कि उन्होंने सद्दाम हुसैन को एक कुर्सी गिफ्ट की थी। यह कुर्सी उन्होंने खासतौर पर सद्दाम हुसैन के लिए ही डिजाइन की थी। सिंह उस दिन को कभी नहीं भूले जब उन्हें सद्दाम के खास मेहमान के तौर पर बगदाद इनवाइट किया गया था।
यू मिला था बगदाद का न्यौता सद्दाम की मौत के बाद एक अखबार से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया था कि 1976 में एक इराकी डिप्लोमेट उनकी शॉप पर आया था। वह मुख्तियार द्वारा बनाई गई कार्व चेयर को देखकर काफी खुश हुआ था। 1980 के दौरान उन्होंने अपने फर्नीचर को इराक में भेजना शुरू किया। इसके बाद सद्दाम हुसैन के भतीजे को भारत में डिप्लोमेट नियुक्त किया गया। यहां से मुख्तियार के बिजनेस को भी पंख लगे। 1990 में इसी डिप्लोमेट ने मुख्तियार को सद्दाम के खास मेहमान के तौर पर इराक आने का न्यौता दिया था।
कारपेंटर को एयरपोर्ट पर लेने पहुंची थीं छह मर्सडीज कार 23 जनवरी 1990 को वो दिना आया जब उनकी सद्दाम से मुलाकात होनी थी। यह मुलाकात महज 15 मिनट के लिए तय थी। मुख्तियार के मुताबिक बगदाद एयरपोर्ट पर उन्हें लेने के लिए छह मर्सडीज कारें लेने के लिए तैयार खड़ी थींं। मुख्तियार इस स्वागत को देखकर हैरान और परेशान थे। उनके मुताबिक वह एक मामूली कारपेंटर थे, लेकिन ऐसा स्वागत उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। पूरी सिक्योरिटी के बीच मुख्तियार को लेकर गाडि़यां एक विशाल और भव्य महल में दाखिल हुईं।
सोने के कप में दी गई कॉफी इस महल में मुख्तियार के लिए स्पेशल रूम नौकर-चाकर पहले से ही तैनात थे। महल पहुंचने पर उन्हें सोने के कप में कॉफी दी गई। मुख्तियार के जीवन का ये न भूल पाने वाला वक्त था। कुछ देर के बाद वह इराक के असली शेर से मिलने पहुंचे। एक विशाल और भव्य कमरे में पहुंचते ही उनकी आंखें फटी रह गईं। उनके सामने सद्दाम हुसैन थे। मुख्तियार को देखते ही सद्दाम ने उनके स्वागत में बांहें फैला दी और उन्हें गले लगा लिया। परफेक्ट सूट पहने एक लंबा चौड़ा इंसान करीब पांच मिनट तक उनसे हाथ मिलाता रहा और वह उन्हें गले लगा रहा था। सद्दाम के एक हाथ में सिगार था। सद्दाम ने मुख्तियार को हाथ पकड़कर अपने पास में बिठाया और हाल-चाल लिया। उन्होंने मुख्तियार से बातचीत के दौरान भारत की कई बार तारीफ की। इसी दौरान मुख्तियार ने सद्दाम को 250 किलो की एक कुर्सी भेंट की, जो खुद उन्होंने हाथ से तराशी थी। इस पर शेर बना हुआ था।
15 मिनट की मुलाकत चली एक घंटे से ज्यादा सद्दाम इस कुर्सी को देखकर बहुत खुश हुए। 15 मिनट की ये मुलाकात एक धंटे से भी ज्यादा देर तक चली। अंत में सद्दाम ने पूछा कि वो उनके लिए क्या कर सकते हैं। इसके जवाब में मुख्तियार ने इराक में बने बाबा नानक गुरुद्वारे को रेस्टोर करने की अपील की। मुख्तियार की इस मांग पर तुरंत कार्रवाई के आदेश दे दिए गए थे। सिखों के लिए यह गुरुद्वारा खास मायने इसलिए भी रखता है क्योंकि जब गुरु नानक देव जी इराक गए थे, उस वक्त गुरु नानक देव यहीं पर रुके थे। इतना नहीं सद्दाम ने मुख्तियार को इराक की फर्नीचर मार्किट का चार्ज लेने की भी अपील की। हालांकि उन्होंने सद्दाम की यह मांग तो ठुकरा दी लेकिन इतना जरूर कहा कि वो इस हुनर को इराकियों को जरूर सिखाएंगे। भारत आने के बाद उन्होंने 20 इराकियों को इस हुनर को सिखाया। इसके पांच वर्ष बाद एक बार फिर से मुख्तियार की मुलाकात सद्दाम से उनके जन्मदिन के मौके पर तिकरित में हुई थी।मुख्तियार का कहना था कि सद्दाम को पश्चिमी देशों ने तानाशाह बनाया। वह ऐसे नहीं थे। उनकी निगाह में सद्दाम एक जिंदादिल और एक अच्छे दोस्त थे।
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