छोटी नहीं रही ये बच्ची, अब है दुनिया की सबसे ताकतवर महिला
कभी जिसे छोटी बच्ची कहा जाता है आज वही लगातार चौथी बार जर्मनी की कमान संभालने को तैयार हैं। वह आज दुनिया की सबसे ताकतवर महिला हैं।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। एंजेला मर्केल लगातार चौथी बार जर्मनी की कमान संभालने वाली हैं। उनकी इस कामयाबी पर भले ही आज कोई शक न करे, लेकिन एक समय वह भी था जब मर्केल को एक शर्मिली और छोटी बच्ची कहकर नजरअंदाज कर दिया जाता था। लेकिन आज जर्मनी की राजनीति में उनका कद सबसे ऊंचा है। न सिर्फ जर्मनी को उन्होंने अपना लोहा मनवाया है, बल्कि पूरी दुनिया ने भी उनका लोहा माना है। यही वजह है कि उन्हें दुनिया ने ‘आयरन लेडी’ का नाम दिया।
छोटे से गांव में पली बढ़ी मर्केल
बर्लिन के पास छोटे से गांव में पली-बढ़ी मर्केल आज दुनिया की शक्तिशाली महिलाओं में से एक हैं। उनका जन्म 17 जुलाई, 1954 हैम्बर्ग में हुआ था। उनके पिता पादरी थे। वह दो महीने की अपनी बेटी मर्केल को लेकर पूर्वी जर्मनी में जा बसे थे। मर्केल ने भौतिकी में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। एंजेला मर्केल ने पहली शादी 1977 में और दूसरी 1998 में की।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत उस वक्त हुई जब बर्लिन की दीवार को ढहाने की मुहिम चली थी। इस दीवार को ढहाने वालों और इसकी वकालत करने वालों में मर्केल सबसे आगे थीं। राजनीति में उनकी कामयाबी की यह पहली सीढ़ी थी। समय बीतता गया और राजनीति में उठापटक के बीच उनका कद बढ़ता गया है। कभी जिसे ‘छोटी लड़की’ कहकर नजरअंदाज किया गया, आज वह दुनिया की सबसे ताकतवर महिला मानी जाती हैं।
टाइम मैगजीन ने ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ चुना
शुरू में मर्केल को एक साधारण नेता के रूप में देखा जाता था। मर्केल रंग-बिरंगे कपड़े, नए-नए हेयरस्टाइल से जनता को प्रभावित करने की कोशिश करती थीं। उन्होंने घोटाले में फंसे अपनी ही पार्टी के चांसलर हेलमट कोहल से इस्तीफा मांगकर मीडिया की सुर्खियां बटोरी थीं। इससे पहले तक मर्केल को चुपचाप रहने वाली ‘छोटी लड़की’ की तरह माना जाता था।
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ऐसे बनीं आयरन लेडीउन्होंने मंदी के दौर में खर्च कम कर जर्मनी को बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया। यूरो को मजबूत करके मंदी के समय भी देश को संभाला। उनके कार्यकाल में बेरोजगारी घटी और निर्यात बढ़ा। 2015 में 10 लाख शरणार्थियों की मदद को उन्होंने हाथ आगे बढ़ाया। इसके अलावा उन्हें ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के फैसले पर कड़ा रुख अपनाने के लिए भी जाना गया।
शरणार्थियों के लिए खोले द्वार
मर्केल ने शरणार्थियों के लिए जर्मनी के द्वारा पूरी तरह से खोल दिए। सीरिया ही नहीं विभिन्न देशों से परेशान लोगों ने जर्मनी का रुख किया। हालांकि इसके लिए उनकी आलोचना भी की गई, लेकिन इसके बाद भी वह अपने काम को अंजाम देती रहीं। जुलाई में उन्होंने अपने आलोचकों का मुंह बंद करते हुए यह साफ कर दिया था कि जर्मनी के द्वार परेशान लोगों के लिए बंद नहीं किए जाएंगे। इतना ही नहीं मर्केल ने ऐसे लोगों के रोजगार तक का भी प्रबंध करवाया।
शरणार्थियों के लिए उन्होंने ‘वन यूरो जॉब’ की योजना भी शुरू की। एक सर्वे के मुताबिक अफगानिस्तान, एरिट्रिया, इराक, ईरान, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सोमालिया और सीरिया के शरणार्थियों की संख्या 2015 से 2016 के बीच करीब 80,000 बढ़ी है।