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जानें आखिर क्यों परमाणु युद्ध की आशंका के साये में जीने को मजबूर है दुनिया

1945 में जापान पर परमाणु बम हमले के 72 वर्ष बाद दुनिया फिर परमाणु बम के संकट से बुरी तरह घिरी हुई है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 30 Oct 2017 04:17 PM (IST)
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जानें आखिर क्यों परमाणु युद्ध की आशंका के साये में जीने को मजबूर है दुनिया

राहुल लाल

महाशक्तियों के स्वार्थ, अंतर्द्वद्व, उनके विरोधाभासी रुख और शक्ति प्रदर्शन के कारण दुनिया परमाणु युद्ध की आशंका के साये में जीने को अभिशप्त है। 1945 में जापान पर परमाणु बम हमले के 72 वर्ष बाद दुनिया फिर परमाणु बम के संकट से बुरी तरह घिरी हुई है। परमाणु हथियारों के रूप में आज पहली बार ऐसा सर्वव्यापी संकट उत्पन्न हो गया है जिसने समूची मानव जाति को महाविनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।1ऐसे में दुनिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने की पहल को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाना एक प्रशंसनीय कदम है। दुनिया से परमाणु हथियार खत्म करने के प्रयास में जुटे संगठन इंटरनेशनल कैंपने टू एबोलिश न्यूक्लियर वेपन्स(आईसीएएन)को 2017 का शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जा रहा है।

नार्वे स्थित नोबेल समिति ने वैश्विक संधि के जरिए परमाणु हथियारों को कानूनी तौर पर प्रतिबंधित कराने के प्रयास के लिए आइसीएएन की सराहना की है, लेकिन अब प्रश्न उठता है कि इस नोबेल पुरस्कार की घोषणा के बाद भी कोरियाई प्रायद्वीप परमाणु युद्ध के मुहाने पर ही क्यों खड़ा है? 11 अक्टूबर को ही पहली बार अमेरिकी बमवर्षकों ने कोरियाई आकाश में युद्धाभ्यास किया, जिससे कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु युद्ध की आशंका बढ़ गई है। इस खतरे को व्यापक बनाने का श्रेय विश्व के पांच परमाणु संपन्न शक्तियों को भी जाता है, जो दुनिया को परमाणु अप्रसार की सीख देती हैं,लेकिन दूसरी तरफ 1945 के बाद से उन्होंने हर नौ दिन में एक के औसत से परमाणु परीक्षण किए हैं।

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ऐसे में परमाणु निशस्त्रीकरण के बारे में कोई भी बड़ी शुरुआत इन्हीं पांच परमाणु शक्तियों की ओर से होनी चाहिए। मगर महाशक्तियां आपसी प्रतिस्पर्धा में अपने परमाणु जखीरे में वृद्धि ही कर रही हैं। आज संपूर्ण विश्व परमाणु युद्ध की आशंका से डरी सहमी हुई है। 1कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु युद्ध की आशंकाएं आज सबसे तीव्र महसूस की जा रही हैं। पिछले 3 सितंबर को दुनिया के तमाम विरोधों तथा दबावों को दरकिनार करते हुए उत्तर कोरिया ने अपना छठवां परमाणु परीक्षण किया, जो मूलत: हाइड्रोजन बम का परीक्षण था। इस हाइड्रोजन बम की ताकत नागासाकी पर गिराए परमाणु बम से छह गुना ज्यादा थी। यही कारण है कि इस परीक्षण के बाद पूरी दुनिया में युद्ध के खतरों को लेकर खलबली मची हुई है।

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जापान, दक्षिण कोरिया तथा अमेरिकी द्वीप गुआम में तो लोगों को परमाणु युद्ध से बचाव के लिए लगातार प्रशिक्षण भी दिए जा रहे हैं। कभी अमेरिका संपूर्ण उत्तर कोरिया को परमाणु बम से भस्म करने की धमकी दे रहा है,तो कभी उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन जापान एवं अमेरिका को परमाणु बमों से तबाह करने की धमकी दे रहे हैं।1कोरियाई प्रायद्वीप के अतिरिक्त भारतीय उपमहाद्वीप में भी पाकिस्तान हमेशा भारत को परमाणु बमों की धमकी देता रहता है। पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर भी प्रश्न उठते रहते हैं। इसकी आशंका हमेशा बनी रहती है कि पाकिस्तानी हथियार कभी भी आतंकवादियों के हाथ लग सकते हैं।

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ऐसे में भारतीय महाद्वीप में तो स्थिति की गंभीरता को स्पष्टत: समझा जा सकता है। दक्षिण चीन सागर में चीनी वर्चस्व को तोड़ने के लिए बार-बार अमेरिकी एवं चीनी परमाणु युद्धपोत आमने-सामने हो जाते हैं। ज्ञात हो कि चीन ने पिछले तीन वर्षो में दक्षिण चीन सागर के कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर लगभग दो तिहाई दक्षिण चीन सागर पर कब्जा कर लिया है। ऐसे में चीन के इस वर्चस्व को अब जब अमेरिका चुनौती दे रहा है,तब परमाणु युद्ध की संभावनाएं दक्षिण चीन सागर में भी खुल जाती हैं। सीरिया संकट में अमेरिकी एवं रूसी परमाणु शक्तियां अभी आमने- सामने खड़ी हैं।

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