एक दीवार जिसने रातों रात बांट दिया था एक देश, 9/11 को गिराकर रचा था एक इतिहास
रातों रात पूर्वी और पश्चिम जर्मनी के बीच खड़ी दीवार ने एक देश को दो भागों में बांटकर रख दिया था। यह शीतयुद्ध का दौर था।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 10 Nov 2019 09:12 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 9 नवंबर का दिन ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद खास है। यह इस लिहाज से भी खास है क्योंकि इसी दिन भारत के सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों पुराने अयोध्या मामले पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। वहीं तीस वर्ष पहले आज ही के दिन यानि 9 नवंबर 1989 को बर्लिन की दीवार को ढहा दिया गया। यह ऐतिहासिक घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज है। जिन लोगोंं ने इस दीवार को बनते और गिरते देखा उनके लिए भी यह पल काफी खास रहा। यह केवल इस दीवार के ढहने तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसके ढहते ही पूर्वी और पश्चिम जर्मनी एक हो गए।
दीवार बनाने के पीछे दो मकसद बर्लिन की दीवार का निर्माण 13 अगस्त 1961 को हुआ था। इस दीवार को बनाने के पीछे दो बड़े मकसद थे। पहला कई देशों द्वारा पश्चिमी जर्मनी से पूर्वी जर्मनी की हो रही जासूसी को बंद करना तो दूसरा मकसद उस वक्त हो रहे पलायन पर रोक लगाना था। दरअसल, लोगों के पूर्वी जर्मनी से पश्चिम की तरफ पलायन करने का असर यहां के उद्योग धंधों पर पड़ रहा था। इसको रोकने के लिए सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने दीवार का निर्माण करवाया। यह शीतयुद्ध का दौर था। इस दौर में यहां पर करीब 60 जासूसी सेंटर मौजूद थे। दीवार बनाने से पहले पूर्वी जर्मनी ने सीमा को रातों-रात बंद कर यहां पर भारी मात्रा में सुरक्षाबल तैनात कर दिए गए। सड़कों की लाइट बंद कर रातों-रात यहां पर कटीले तारों की बाड़ लगा दी गई।
रातों-रात बंट गया एक देश इस एक कदम ने रातों-रात एक देश दो भागों में बांट दिया था। दीवार बन जाने के बाद एक दूसरे के इलाके में जाने के लिए नियम बेहद सख्त थे। इस दीवार को पार करने के लिए वीजा जरूरी हो गया था। दोनों तरफ के लोगों के लिए यह फैसला काफी बुरा था। इस फैसले से कई परिवार बिछड़ गए थे। इस दीवार की निगरानी के लिए 300 से भी अधिक वॉच टावर बनाए गए थे। इन पर चढ़कर गार्ड यहां से गुजरने वालों पर कड़ी निगाह रखते थे। अवैध रूप से गुजरने वालों को यहां बिना पूछे गोली मार दी जाती थी। अब इनमें से कुछ ही बचे हैं। इसमें से एक है पॉट्सडामर प्लात्स के पास खड़ा एक टावर।
लोगों के बीच बढ़ता आक्रोश वक्त बीतने के साथ लोगों के अंदर इस दीवार को लेकर आक्रोश बढ़ता जा रहा था। लोगों के इस आक्रोश को देखते हुए 9 नवंबर 1989 को पोलित ब्यूरो के सदस्य गुंटर शाबोस्की ने इस दीवार को खोलने का एलान किया।इस घोषणा की खबर आग की तरह फैली और लोग अपने परिजनों से मिलने के लिए काफी संख्या में दीवार के नजदीक एकत्रित हो गए। इस जनसैलाब को देखते हुए दीवार को पूरी तरह से हटा दिया गया। दीवार के हटने के बाद कई परिवार और लोग ऐसे थे जो वर्षों बाद अपनों से मिले थे। उनके लिए यह अहसास कभी न भूलने वाला था।
ऐतिहासिक बर्लिन की दीवार बर्लिन की यह दीवार करीब 160 किलोमीटर लंबी थी। वर्तमान में यहां पर दीवार के अवशेषों को इतिहास की धरोहर के तौर पर एक म्यूजियम में रखा गया है। जब तक यह दीवार थी तब यहां पर चेकपॉइंट चार्ली जो एक क्रॉसिंग प्वाइंट था काफी प्रसिद्ध था। आपको बता दें कि पश्चिम जर्मनी जहां पर अमेरिका के हाथों में था वहीं पूर्वी में रूस हावी था। दोनों ही देश एक दूसरे की जासूसी करवाते थे। इस चेकप्वाइंट पर अमेरिकी सैनिक हाथों में तख्ती लिए खड़े रहते थे, जिसपर लिखा होता था आप अमेरिकी सेक्टर में हैं। इस जगह को कोल्ड वार डिज्नीलैंड भी कहा जाता है।
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