अब अपनी खुशी से जीना चाहती हैं यहां की महिलाएं, डेटिंग और शादी को कह रही 'No'
अभी तक हम विकासशील या गरीब देशों में ही पुरुष प्रधान समाज की बात करते आए हैं लेकिन ऐसा नहीं है। दक्षिण कोरिया की महिलाएं अब इसके खिलाफ एकजुट हो रही हैं।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 10 Dec 2019 09:28 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कोरियाई प्रायद्वीपीय देश उत्तर कोरिया को लेकर कई तरह की खबरें सामने आती रहती हैं। वहीं दक्षिण कोरिया को हम हर तरह से संपन्न, विकसित और खुली सोच वाला देश मानते हैं। लेकिन, ऐसा नहीं है। महिलाओं को लेकर सामने आई एक खबर आपको भी अपनी सोच को बदलने को मजबूर कर सकती है। दरअसल, महिलाओं से जुड़ी जिन बातों को हम केवल विकासशील या पिछड़े मुल्कों की बता कर पल्ला झाड़ लेते थे उसका असर अब काफी दूर तक हो रहा है। आपको बता दें कि ज्यादातर विकासशील और गरीब देशों में पुरुष प्रधान समाज देखा जाता है।
क्या है '4 बी' या 'फोर नोस' महिलाओं के हक की वहां पर बातें तो होती हैं लेकिन उनकी जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। ऐसा ही कुछ दक्षिण कोरिया में भी देखने को मिला है। यहां पर महिलाएं शादी इसलिए नहीं करना चाहती हैं क्योंकि शादी के बाद उन पर पुरुष अपनी सोच को थोप देते हैं। उनसे जो अपेक्षाएं की जाती हैं उनमें पुरुष समाज ये भूल जाता है कि महिला आखिर क्या चाहती है। दक्षिण कोरिया में इस तरह की सोच को लेकर शादी या पुरुषों से संबंध बनाने को लेकर न कहने वाली महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। जापान टाइम्स की एक खबर के मुताबिक दक्षिण कोरिया की महिलाएं अब कट्टरपंथी नारीवादी आंदोलन '4 बी' या 'फोर नोस' (4B/four nos) के साथ आगे बढ़ रही हैं। इसका अर्थ चार चीजों पर उनका सीधा इनकार है। इनमें से पहला है डेटिंग से इनकार, दूसरा है यौन संबंध बनाने से इनकार, तीसरा शादी से इनकार और चौथा बच्चे पैदा करने से इनकार।
एक सर्वे की रिपोर्ट पर नजर दक्षिण कोरिया महिलाओं में शादी को लेकर पनप रही सोच पर बीते वर्ष एक सर्वे भी हुआ था। कोरिया इंस्टिट्यूट फॉर हैल्थ एंड सोशल अफेयर्स ने इसी वर्ष जनवरी में इस सर्वे की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया था। इसके मुताबिक 20-44 वर्ष की आयु के करीब 40 फीसद लोग डेटिंग में इन्वॉल्व पाए गए। लेकिन यह आंकड़ा शादी के मामले में काफी अलग था। इसके मुताबिक 25-29 वर्ष की आयु वाले पुरुष और महिलाएं करीब 90 फीसद गैर शादीशुदा पाए गए। वहीं 30-34 वर्ष की आयु वाले पुरुष और महिलाओं में ये करीब 56 फीसद और 40-45 की उम्र में ये 33 फीसद तक पाया गया।
बढ़ रही है मुहिम से जुड़ने वाली महिलाओं की संख्या वर्तमान की यदि बात करें तो अब इस मुहिम से जुड़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे जुड़ी महिलाएं यू-ट्यूब चैनल समेत दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने में लगी हैं। जापान टाइम्स ने जो रिपोर्ट प्रकाशित की है उसमें इस मुहिम के साथ चलने वाली महिलाओं से बात कर इसकी वजह भी जानने की कोशिश की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक बोनी ली को न तो ब्वॉयफ्रेंड बनाने की कोई चिंता है और न ही शादी की। वह इस बारे में न तो सोचती है और न ही सोचना चाहती है। 40 वर्षीय ली सियोल में रहती हैं। उनका कहना है कि वह काफी स्ट्रेट महिला हैं जिसकी पुरुष, शादी और संबंध बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह मानती हैं कि इसके बाद भी वह खुद को अकेला महसूस नहीं करती हैं। वह अपने फैसले से काफी खुश हैं। ली का कहना है कि शादी के फायदे से ज्यादा नुकसान हैं।
पुरुष प्रधान समाज की सोच इस मुहिम से जुड़कर शादी को न कहने वाली महिलाओं का कहना है कि यहां के पुरुष प्रधान समाज में शादी के बाद मान लिया जाता है कि महिला पूरी तरह से घर-गृहस्थी की तरफ ध्यान देगी। बुजुर्गों की सेवा और बच्चे पैदा करना केवल उनकी प्राथमिकता होगी और इसमें ही उन्हें अपना जीवन गुजारना होगा। शादी की इस दुनिया में महिलाओं की इच्छा की कोई कदर नहीं होती है। न ही कोई ये जानना चाहता है कि वो क्या करना चाहती है या वो शादी से पहले क्या सोचती थी। ली की ही बात करें तो उन्होंने दो अलग-अलग विषयों में मास्टर डिग्री हासिल की है। वह मानती हैं कि इतना पढ़ लिखने का अर्थ सिर्फ घर में कैद होकर रह जाना नहीं होता है। ली जैसी कई अन्य महिलाएं यहां के कठोर पितृसत्तात्मक मानदंडों को खारिज कर रही हैं।
एक फिल्म चर्चा में यही वजह है कि दक्षिण कोरिया में विवाह की दर तेजी से कम हो रही है। ली का कहना है कि ज्यादा शिक्षित होना महिला के लिए नकारात्मक बिंदु हो जाता है। दक्षिण कोरिया में महिलाओ की मानसिकता और वहां के पुरुष प्रधान समाज को दर्शाती एक फिल्म ने हाल ही में बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता पाई है। इस फिल्म का नाम 'किम जी योंग, बॉर्न 1982' है। यह फिल्म एक उपन्यास पर आधारित है। इसमें दिखाया गया है कि शादी करने के बाद कैसे एक दक्षिण कोरियाई महिला को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है और कम संसाधनों में अपने बच्चों का लालन-पालन करना पड़ता है। यहां की महिलाओं की सोच में आए बदलाव को इस तरह से भी देखा जा सकता है कि इन्होंने इस फिल्म को 10 में से 9.5 रेटिंग दी जबकि पुरुषों ने इसको केवल 2.8 अंक दिए हैं। एक दशक पहले अकेली और कभी न शादी करने वाली कोरियन महिलाओं में से करीब 47 प्रतिशत सोचती थीं कि शादी जरूरी है। वहीं अब इस सोच को रखने वालों की संख्या महज 22.4 फीसद हो गई है।
गिर रहा है शादी करने वालों का आंकड़ा दक्षिण कोरिया में 1996 में शादी करने वालों का जो आंकड़ा 4,34,900 था वो 2018 तक 2,57,600 हो चुका है। फोर बी को हां कहने वालों के फिलहाल फॉलोवर्स हजारों में हैं। लेकिन यू-ट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने वाले एक लाख से ज्यादा तक हो चुके हैं। फोर बी को हां कहने वाली 24 साल की एक अन्य महिला योन जी अपने मां-बाप के साथ रहती हैं। वह मानती हैं कि यहां की महिलाओं से अक्सर चुलबुली और आकर्षक' होने की उम्मीद की जाती है। वो अब अपने ब्वॉयफ्रेंड को बॉय-बॉय कह चुकी हैं। उनका कहना है कि उनका फ्रेंड नारीवादी सोच का विरोध करता था और अपनी हर खुशी या सोच को उस पर थोपना चाहता था, जो उसको पसंद नहीं आया और वो उससे अलग हो गईं। उनके मुताबिक दक्षिण कोरिया में पॉर्न को लेकर तेजी आई है। उनके मुताबिक 20 से 30 साल के ज्यादातर पुरुष हिडन कैमरे से पहले साथी की वीडियो बनाते हैं और फिर उन्हें लीक करते हैं। इस वजह से भी अब वह इन सबसे दूर रहना ज्यादा बेहतर समझती हैं। उनके मुताबिक खुश रहने के कई तरीके हैं। सिर्फ शारीरिक खुशी ही इसके लिए पूरी नहीं हो सकती है।
बूढ़ों का देश बन जाएगा दक्षिण कोरिया आपको यहां पर ये भी बता दें कि दक्षिण कोरिया में पनप रही इस तरह की सोच को पहली बार देखा जा रहा है। लेकिन, इसका एक प्रभाव देश की घटती आबादी पर भी पड़ रहा है। दक्षिण कोरिया में मातृत्व दर 2018 में गिरकर 0.98 प्रतिशत आ गई है। वहीं, दक्षिण कोरिया की जनसंख्या को स्थिर करने के लिए यह 2.1 प्रतिशत की दर बनाए रखना जरूरी है। सरकारी अनुमान के मुताबिक 2067 में देश की जनसंख्या 5.5 करोड़ से गिरकर 3.9 करोड़ हो जाएगी। ऐसे में दक्षिण कोरिया बूढ़ों का देश हो जाएगा, क्योंकि कुल आबादी में 62 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की संख्या अधिक होगी। इसका असर यहां तक ही नहीं रुकने वाना है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका व्यापक असर होगा। देश में काम करने वाले कम होंगे तो उत्पादन भी कम होगा। धीरे-धीरे इसका असर पूरी दुनिया पर भी पड़ेगा।
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