पाकिस्तान में अमेरिका से रिश्तों को लेकर मचा है घमासान, जानें क्या कहते हैं जानकार
पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों के दोबारा सही होने की गुंजाइश फिलहाल कम ही दिखाई देती है। इन संबंधों को लेकर पाकिस्तान के सियासी गलियारों में घमासान मचा हुआ है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में घुली कड़वाहट भविष्य में क्या गुल खिलाएगी इस पर अभी से कुछ कहपाना तो जल्दबाजी होगी, लेकिन इतना साफ है कि इन रिश्तों में सुधार की गुंजाइश फिलहाल कम ही दिखाई देती है। लेकिन दोनों के रिश्तों को लेकर पाकिस्तान के सियासी गलियारों में घमासान जरूर दिखाई दे रहा है। यह घमासान अमेरिका से रिश्ते रखने या न रखने को लेकर है। इस मामले में ताजा बयान पाकिस्तान के रक्षा मंत्री खुर्रम दस्तगीर का सामने आया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि पाक सरकार अमेरिका से रिश्तों पर दोबारा विचार कर रही है। उनका कहना था कि संबंधों को लेकर पाकिस्तान की नाराजगी को लेकर उन्होंने अमेरिका को अपनी बात बता दी है, लेकिन अमेरिका को संतुष्ट करने की जिम्मेदारी सिर्फ हमारी नहीं है। यहां पर एक बात और ध्यान रखने वाली है। वह यह है कि अगले सप्ताह न्यूयार्क में यूएन जनरल असेंबली की बैठक होने वाली है जिसमें दस्तगीर पाक पीएम शाहिद खक्कान अब्बासी के साथ अमेरिका जाएंगे। इस दौरान उनकी अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन से बैठक होने की भी उम्मीद है। यह बैठक पहले अगस्त में होने वाली थी लेकिन पाकिस्तान के कहने पर इसका वक्त आगे बढ़ा दिया गया था।
रिश्तों के खराब होने की वजह
इन रिश्तों के खराब होने की दो वजह बेहद अहम हैं। सबसे पहली वजह यह है कि हक्कानी नेटवर्क को खत्म करने के नाम पर जो अमेरिका पिछले 17 वर्षों से पाकिस्तान को फंड मुहैया करवाता रहा है उसका सकारात्मक रिजल्ट न मिलना। दूसरी वजह है कि पाकिस्तान और चीन के बीच उभरते रिश्ते। जहां तक हक्कानी नेटवर्क का सवाल है अमेरिका कई बार इस बात को कहता रहा है कि पाकिस्तान से उसको वो रिजल्ट नहीं मिल रहे हैं जिसकी उन्हें अपेक्षा है। इतना ही नहीं अमेरिका की तरफ से यह भी कहा गया है कि यदि पाकिस्तान ने अपने यहां मौजूद आतंकी संगठनों पर कार्रवाई नहीं की तो फिर यह काम अमेरिका खुद करेगा।
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भारत को खतरा मानता रहा है पाकिस्तान
दस्तगीर का यह भी कहना है कि अमेरिका, भारत और अफगानिस्तान का गठजोड़ पाकिस्तान के लिए किसी बड़े खतरे की तरह है। उनके मुताबिक अमेरिका इस बात से नावाकिफ नहीं है, लेकिन भारत से होने वाले संभावित फायदे को देखते हुए इस तरफ से उसने मुंह फेर रखा है। पाकिस्तान अमेरिका और भारत के बीच होने वाले सैन्य समझौतों से भी काफी खफा है। इसका जिक्र खुद दस्तगीर ने अपने बयानों में भी किया है।
पाक को बर्दाश्त नहीं भारत
पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रिश्तों में घुली कड़वाहट की वजहों में एक कड़ी भारत भी है। दरअसल, पाकिस्तान इस बात को कतई बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है कि अमेरिका के साथ भारत के संबंध बेहतर हों। वहीं जिस तरह से अमेरिका भारत को तवज्जो दे रहा है उससे पाकिस्तान खासा नाराज है। फिर चाहे वह अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी का सवाल ही क्यों न हो। पाकिस्तान ने इस बात का भी जिक्र किया है कि वह अफगानिस्तान में भारत की दखल को पसंद नहीं करता है। पाकिस्तान का यह भी कहना है कि अफगानिस्तान से सीमा विवाद को सुलझाने के लिए और अन्य मसलों के लिए वह ज्वाइंट फोर्स की गश्त के लिए भी तैयार है। यूएन की जनरल असेंबली की बैठक के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के बीच अफगानिस्तान के मसले पर बात होने की उम्मीद है। लेकिन इन सभी बातों के बीच अमेरिका से संबंधों को लेकर लगातार बयानबाजी की जा रही है।
पाक विदेश मंत्री और जनरल का बयानपाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने यहां तक कहा है कि हम पाकिस्तानियों को बलि का बकरा नहीं बनने देंगे। हम अपनी हिफाजत करना जानते हैं। हालांकि उन्होंने ब्रिक्स समिट के दो दिन बाद दिए अपने बयान में पाकिस्तान से संचालित लश्कर-ए-तैयबा और जेईएम समेत अन्य प्रतिबंधित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों और हककानी नेटवर्क के अस्तित्व को स्वीकार किया था। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा था कि पाकिस्तान को इनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए और इसकी जानकारी दुनिया को देनी चाहिए। इसके अलावा आर्मी चीफ जनरल कमर बाजवा ने कहा कि अमेरिका से पाकिस्तान के हालिया ताल्लुकात पर पाकिस्तान की जनता की चिंता बेहद वाजिब है। उनका कहना था कि पाकिस्तान को अमेरिका से मिलने वाली मदद की जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें इज्जत और प्यार चाहिए।
क्या कहते हैं पाकिस्तान के रक्षा जानकार
हक्कानी नेटवर्क को लेकर पाकिस्तान के रक्षा जानकार भी मानते हैं कि हक्कानी नेटवर्क समेत जैश ए मोहम्मद और लश्कर उन्होंने ही अपने लिए बनाए थे। इसका जिक्र पाकिस्तान के एक निजी न्यूज चैनल में हुई डिबेट के दौरान पाकिस्तान के सिनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद, रक्षा विशेषज्ञ मुशर्रफ जैदी और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल तलत मसूद ने माना कि इन तीनों को पाकिस्तान ने अपनी सहूलियत के मुताबिक खड़ा किया था। इन लोगों का यहां तक कहना था कि अमेरिका ने भी इनका भरपूर इस्तेमाल किया है, लेकिन अब इन पर लगाम लगाने को लेकर बड़ा सवाल है। डिबेट के दौरान यह बात भी सामने निकलकर आई कि तीनों ही विश्लेषक इस बात को लेकर असमंजस में थे कि पाकिस्तान यह कर पाएगा या नहीं। जानकारों का कहना था कि अमेरिका अब उतना ताकतवर नहीं रहा है जितना वह पहले था। इसके अलावा इन जानकारों का यह भी कहना था कि पाकिस्तान को अब चीन के और करीब आना चाहिए।
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क्या कहते हैं भारतीय जानकार
पाकिस्तान के अंदर अमेरिका को लेकर मचे घमासान पर विदेश मामलों के जानकार कम आगा का भी मानना है कि भारत को लेकर पाकस्तिान की राय पहले से ही नफरत भरी रही है। ऐसे में अफगानिस्तान में भारत का सहयोग लेना पाकिस्तान को नागवार गुजर रहा है। इसके अलावा हक्कानी नेटवर्क को लेकर अमेरिका का रुख भी जगजाहिर है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान अब अमेरिका से जयादा अपने फायदे के लिए चीन की तरफ देख रहा है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि 2006 के बाद से ही पाकिस्तान चीन की तरफ ज्यादा देख रहा है। उसको चीन से संबंधों में अब ज्यादा फायदा दिखाई देने लगा है। फिर चाहे वह पाकिस्तान चीन का आर्थिक गलियारा हो जिसके जरिए चीन काफी भारी मात्रा में पाकिस्तान में निवेश करने वाला है। इसके अलावा चीन की निगाह ग्वादर पोर्ट पर भी लगी है जिसके जरिए वह तेल और गैस को कम लागत में पाइपलाइन के जरिए चीन तक पहुंचाएगा।
चीन के लिए अहम है ग्वादर
ग्वादर पोर्ट चीन के लिए रणनीतिक लिहाज से भी काफी अहम है। इसलिए वह पाकिस्तान को लगातार निवेश और पैसों का लालच दे रहा है। वहीं पाकिस्तान चीन की कीमत पर अब अमेरिका से अपने संबंधों को दूर करने में लगा है। आगा ने इस दौरान यह भी कहा कि अमेरिका से रिश्तों में आई कड़वाहट के बाद भी अमेरिका पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग-थलग नहीं करेगा और दूसरी तरफ चीन भी पाक को दूर नहीं जाने देगा। इसकी वजह एशिया में भारत का बढ़ता प्रभुत्व है जिसको चीन रोकने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है। सीपैक के जरिए पाकिस्तान और चीन के बीच रक्षा से लेकर कई दूसरे समझौते भी हैं जिसकी वजह से चीन और पाकिस्तान की नजदीकियों से अमेरिका उससे दूर हो रहा है।
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देशों के अपने हित
यहां पर हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि सभी देशों के अपने राजनीतिक और रणनीतिक हित होते हैं। चीन का भारत के प्रभुत्व को कम करने के लिए पाकिस्तान का साथ जरूरी दिखाई दे रहा है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका को चीन का प्रभाव रोकने और पाकिस्तान पर लगाम लगाने के लिए भारत का साथ जरूरी दिखाई दे रहा है।