भारत में कुपोषण व मोटापा गंभीर समस्या: रिपोर्ट
भारत में भी स्थिति गंभीर है। देश की आधी महिलाएं एनीमिया (खून की कमी) से ग्रस्त हैं।
लंदन, प्रेट्र। भारत कुपोषण के साथ-साथ मोटापे की भी गंभीर समस्या का सामना कर रहा है। एक वैश्विक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। इसके अनुसार, दुनिया में मोटापा और अत्यधिक वजन की समस्या तेजी से बढ़ रही है। दुनिया के कुल दो अरब लोग मोटापे से जूझ रहे हैं। भारत में भी स्थिति गंभीर है। देश की आधी महिलाएं एनीमिया (खून की कमी) से ग्रस्त हैं। वहीं कम से कम 22 फीसद वयस्क महिलाओं का भार जरूरत से बहुत ज्यादा है यानी मोटापे की समस्या से ग्रस्त हैं।
'द ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2017' में भारत सहित 140 देशों में कुपोषण की स्थिति पर गौर किया गया है। इन देशों में भारत सबसे पीछे है। सबसे ज्यादा यहीं पर महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं। 88 फीसद देशों में दो या तीन तरह का कुपोषण अपनी जड़ें फैला रहा है। भारत में तकरीबन 40 फीसद बच्चे कुपोषण के चलते उम्र के मुताबिक कम कद के हैं।
गंभीर वैश्विक हालात
दो अरब : आयरन और विटामिन ए की कमी से जूझने वाले लोग
15.5 करोड़ : उम्र के अनुपात में पर्याप्त लंबे न होने वाले बच्चे
5.2 करोड़ : बेहद कमजोर बच्चे
दो अरब : मोटे या अत्यधिक वजनी वयस्क
तीन तरह का कुपोषण
कुपोषण के तीन आयामों के आधार पर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। ये आयाम हैं बच्चों का कद न बढ़ना, 15-49 उम्र की महिलाओं में एनीमिया और 50 से अधिक उम्र की महिलाओं में अत्यधिक वजन की समस्या।
खतरे में भविष्य
देश के पांच वर्ष से कम उम्र के 38 फीसद बच्चों में पोषण की कमी के चलते कद बढ़ना रुक गया है। कुपोषण से उनका दिमागी विकास भी अवरुद्ध हो रहा है। तकरीबन 21 फीसद बच्चों का वजन अपनी लंबाई के अनुपात में बेहद कम है।
चिंताजनक हालात
दुनिया में 15-49 उम्र की 61.4 करोड़ महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं। इसमें भारत की हिस्सेदारी सर्वाधिक है। यहां 15-49 उम्र की कुल महिलाओं में से 51 फीसद को एनीमिया है। इसके बाद चीन, पाकिस्तान, नाइजीरिया और इंडोनेशिया का स्थान आता है। इतना ही नहीं भारत में 18 वर्ष से अधिक उम्र की तकरीबन 22 फीसद महिलाएं (प्रत्येक पांच में से एक) अधिक वजनी हैं।
एनीमिया : शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं या हीमोग्लोबिन की कमी को एनीमिया कहते हैं। इसके चलते शरीर सुस्त व कमजोर पड़ जाता है। एनीमिया बढ़ने पर कई अन्य बीमारियां भी हो सकती हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं इससे अधिक प्रभावित होती हैं।