एस.के. सिंह, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव को देखते हुए जागरण न्यू मीडिया मतदाताओं को जागरूक करने के मकसद से ‘मेरा पावर वोट- नॉलेज सीरीज’ लेकर आया है। इसमें हमारे जीवन से जुड़े पांच बुनियादी विषयों इकोनॉमी, सेहत, शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा पर चर्चा की जा रही है। हमने हर सेगमेंट को चार हिस्से में बांटा है- महिला, युवा, शहरी मध्य वर्ग और किसान। इसका मकसद आपको एंपावर करना है ताकि आप मतदान करने में सही फैसला ले सकें। इस नॉलेज सीरीज में बात इकोनॉमी और शहरी मध्य वर्ग की।

भारतीय शहरों का आकार देश के कुल एरिया का सिर्फ 3% है, लेकिन जीडीपी में योगदान 60% है। नीति आयोग ने 2022 की एक रिपोर्ट में बताया कि भारत की शहरी आबादी 46 करोड़ है। यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्बन कम्युनिटी है। आज के मध्य वर्ग की खासियत है कि डिजिटल टेक्नोलॉजी के प्रति इनका झुकाव अधिक है। ये ब्रांड और बेहतर लाइफस्टाइल पसंद करते हैं। इनका आउटलुक भी ग्लोबल है। लेकिन यह मध्य वर्ग कई तरह की चुनौतियों से भी जूझ रहा है।

इस विषय पर हमने बात की इन्फोमेरिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट तथा केनरा बैंक के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट डॉ. मनोरंजन शर्मा और ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के जिंदल स्कूल ऑफ गवर्मेंट एंड पब्लिक पॉलिसी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. अवनींद्र नाथ ठाकुर से।

-शहरों में जीवन-यापन का खर्च तेजी से बढ़ रहा है। चाहे घर का खर्च हो या हेल्थकेयर और बच्चों की पढ़ाई का खर्च। मिडिल क्लास में एक बड़ा वर्ग है जिसकी आमदनी खर्च के हिसाब से नहीं बढ़ रही है। इस स्थिति को कैसे बदला जा सकता है?

मनोरंजन शर्मा- यह बहुत ही जटिल सवाल है। जिस तरह हम इंडस्ट्री में एफिशिएंसी, उत्पादकता बढ़ाने की बात करते हैं, उसी तरह व्यक्ति के स्तर पर भी उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है। मौद्रिक और राजकोषीय नीति में बेहतर समन्वय की आवश्यकता है। समाज के गरीब तबके के लिए सोशल सेफ्टी नेट बनाना जरूरी है। इससे हम उनकी मूलभूत समस्याओं का निवारण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, गरीब कल्याण अन्न योजना के अच्छे परिणाम मिले हैं। इस तरह के कदमों से हम समाज के उन वर्गों को भी विकास की यात्रा में शामिल सम्मिलित कर पाएंगे जो पीछे छूट गए हैं।

-आमदनी कम होने के कारण लोग बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाते, परिवार को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं करा पाते। हेल्थकेयर के लिए केंद्र सरकार की स्कीम है, कुछ राज्यों ने भी स्कीम चला रखी हैं। फिर भी, गैप है। इसे कैसे भरा जा सकता है?

अवनींद्र ठाकुर- पिछले कई वर्षों से मिडिल क्लास की वास्तविक आमदनी ज्यादा नहीं बढ़ी है या स्थिर बनी हुई है। दूसरी तरफ स्वास्थ्य, शिक्षा, ट्रांसपोर्टेशन से संबंधित खर्चे बढ़ रहे हैं। इसका बड़ा असर व्यक्ति की डिस्पोजेबल इनकम पर पड़ता है। आप चाहें या ना चाहें, खर्च तो होना ही है। लेकिन आपकी आमदनी उतनी नहीं बढ़ रही है। ऐसे में डिस्पोजेबल इनकम कम होती जाती है। पूंजीवादी व्यवस्था में सामाजिक सुरक्षा कई बार नहीं होती है, पेंशन की सुविधा नहीं होती है। इससे लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ती है।

लोगों की आमदनी बढ़ाना तो एकदम से संभव नहीं है, इसलिए इसका दूसरा समाधान यह हो सकता है कि शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाए। साथ में सामाजिक सुरक्षा बढ़ाई जाए। स्कैंडिनेवियन देशों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट, शिक्षा और सेहत की अनेक सुविधाएं मुफ्त में हैं। भारत में जीडीपी की तुलना में शिक्षा और सेहत पर खर्च विश्व औसत से बहुत कम है। मुझे लगता है कि मध्य वर्ग की समस्याओं का बड़ा समाधान पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में है। इससे उन्हें तत्काल राहत मिलेगी।

-अंडर एंप्लॉयमेंट भी बड़ी समस्या है। लोगों को उनकी क्वालिफिकेशन के मुताबिक काम नहीं मिल पाता है। इसे कितनी बड़ी चुनौती मानते हैं?

मनोरंजन शर्मा- बहुत बड़ी चुनौती है। बेरोजगारी बहुत बड़ी चुनौती है और यह लगातार बढ़ रही है, खासकर शिक्षित वर्ग में। इसे कम करने के लिए स्थानीय स्तर पर कुछ डेवलपमेंट प्रोग्राम, स्किल बेस्ड वोकेशनल एजुकेशन शुरू किया जा सकता है। विश्व के अन्य भागों में रोजगार के क्षेत्र में जो सक्सेस स्टोरी हैं, उन्हें देख सकते हैं। स्वरोजगार भी एक बड़ा जरिया है। सरकार ने मुद्रा लोन, मेक इन इंडिया जैसे कई योजनाएं शुरू की हैं। लेकिन स्पष्ट है कि अभी रास्ता बहुत लंबा है।

अवनींद्र ठाकुर- अंडर-एंप्लॉयमेंट का सवाल काफी हद तक स्वरोजगार से जुड़ा हुआ है। हमारी आधी वर्कफोर्स कृषि में है जबकि जीडीपी में उसका योगदान सिर्फ 15% है। आमदनी और निर्भरता के बीच यह अंतर अंडर-एंप्लॉयमेंट को साफ तौर पर बताता है। स्वरोजगार में औसत आमदनी दिहाड़ी मजदूरी से भी कम है। मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ी चुनौती है। बेरोजगारी को हम आसानी से देख सकते हैं, लेकिन अंडर-एंप्लॉयमेंट कई बार दिखता नहीं है। उसकी पहचान करना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए मेरे विचार से एक संतुलित अप्रोच की जरूरत है, जिसमें नियमित रोजगार वाले बड़ी संख्या में हों, उसके बाद कैजुअल श्रमिक हों, फिर स्वरोजगार वाले हो। तब जाकर मांग बढ़ेगी। यहां एक और बात आती है स्ट्रक्चर्ड ट्रांसफॉर्मेशन की। जो लोग अंडर-एंप्लॉयमेंट में हैं उन्हें मॉडर्न सेक्टर में ले जाने की जरूरत है। कुटीर उद्योग और लेबर इंटेंसिव सेक्टर इसमें बड़ा योगदान कर सकते हैं।

-शहरों की आबादी बढ़ने के हिसाब से इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं बढ़ रहा। इससे ट्रैफिक, पावर कट, पानी की समस्या खत्म नहीं हो रही है। इसका क्या समाधान देखते हैं?

अवनींद्र ठाकुर- जब तक गांव में रोजगार की व्यवस्था नहीं होगी, जब तक हमारी कृषि इतनी मजबूत नहीं होगी कि वह लोगों को बाहर जाने से रोके, जब तक हमारे छोटे शहर सशक्त नहीं होंगे तब तक यह समस्या बनी रहेगी। आप दिल्ली का उदाहरण ले लीजिए। फ्लाई ओवर बनते रहते हैं और कुछ समय बाद उन पर भी जाम लगने लगता है। गांव से शहर की ओर माइग्रेशन इतना ज्यादा है कि मुझे नहीं लगता किसी भी स्तर का इंफ्रास्ट्रक्चर पर्याप्त होगा। समाधान यही है कि लोग जहां से आ रहे हैं उस जगह को सशक्त बनाएं। नौकरी के अवसर शहर से बाहर पैदा करने होंगे। हालांकि मुझे नहीं लगता कि इसका तत्काल कोई समाधान निकालने वाला है।

मनोरंजन शर्मा- यह सही है कि तत्काल परिणाम नहीं मिलेंगे, लेकिन हमें सही प्रक्रिया पर ध्यान देना चाहिए। गांव के स्तर पर, तहसील के स्तर पर अगर कुछ मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाएं तो इसके अच्छे परिणाम निकल सकते हैं।

क्या हो समाधान

-स्वास्थ्य, शिक्षा, ट्रांसपोर्टेशन के खर्चे बढ़ रहे, इसलिए पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत किया जाए।

-बड़ी संख्या में लोग असंगठित क्षेत्र में, उनके लिए सामाजिक सुरक्षा के उपाय बढ़ाए जाएं।

-संतुलित अप्रोच- सबसे ज्यादा नियमित रोजगार वाले, उसके बाद कैजुअल और स्वरोजगार वाले हों।

-अंडर-एंप्लॉयमेंट वालों को मॉडर्न सेक्टर में लाने के लिए स्ट्रक्चर्ड ट्रांसफॉर्मेशन जरूरत।

-शहर की ओर माइग्रेशन ज्यादा, इंफ्रास्ट्रक्चर अपर्याप्त, नौकरी के अवसर शहर से बाहर पैदा करने होंगे।

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(डिस्क्लेमरः इस लेख में व्यक्त विचार विशेषज्ञों के हैं। इसका मकसद मतदान का सही फैसला लेने में एंपावर करना है, किसी पक्ष के लिए मत को प्रभावित करना नहीं।)