दीपों में उभरा-अंतस में समाया, बाबा की नगरी में ‘काशी का प्रकाश’ उतर आया... अद्भुत तस्वीरें

  • Story By: Riya Pandey

देव दिवाली का सनातन धर्म में बेहद महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने इस दिन राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। शिव की जीत का जश्न मनाने के लिए सभी देवी-देवता तीर्थ स्थल वाराणसी...

भगवान शिव की नगरी काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। गंगा किनारे का कोना-कोना आज समानांतर बहती ज्योति की धारा संग मुस्कुरा रही थी तो वहीं हर तरफ श्रद्धा हिलारे मार रही थी। इधर, नमो घाट पर एक और नया इतिहास गुना बुना जा रहा था।



इंडोनेशिया, इटली, चीन, पोलैंड, रूस, नेपाल, भूटान, ग्रीस समेत विश्व के 70 देशों के 150 'हेड ऑफ मिशन' यानी राजदूत, उच्चायुक्त व शीर्ष अधिकारी एक साथ काशी की संस्कृति-कला की धारा में गोता लगाते हुए दीपोत्सव का साक्षी बने।



मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा आवास एवं शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी के साथ मेहमानों ने 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के भाव से जलाए सद्भाव के दीपक जलाए। इसके बाद क्रूज पर सवार होकर साथ में देव दीपावली देखी। 



दशास्वमेध घाट पर हजारों लोगों की मौजूदगी में गंगा आरती की गई एवं राजघाट पर देव दीपावली के पर्व पर खुशियों में आतिशबाजी की गई। साथ ही विभिन्न कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत की।


हजारों दीपों की मद्धिम रोशनी वरुणा नदी में उभरता नयनाभिराम दृश्य जैसे लग रहा था कि जमीं पर सितारे उतर आये हो। एक पल वरुणा नदी के कल-कल बहती धारा व उनकी लहरों में दीपों के प्रकाश ने आत्मीय ऊर्जा प्रदान की।


कपूर ,धूप, लोहबान,दशांग की गमक व तेल से जल रहे दीपों के लौ की खुशबू से पूरा वातावरण खुशनुमा हो उठा। दूसरी तरफ हर भक्त दीपदान के लिए वरुणा के आँचल में एक साथ उतरा तो समिति के स्वयंसेवको को संभालने में मेहनत करनी पड़ी।



विदेशी मेहमान दीपोत्सव के हर पल को मोबाइल कैमरे में कैद करने में जुटे रहे। कुछ ने रील बनाई तो कुछ ने इसकी विशेषता जानने की कोशिश में लगे रहे। 



त्रिपुर नाम के दुर्दांत असुर पर भगवान शिव के विजय पर्व देव दीपावली की पुण्य बेला में काशी नगरी में स्कंद पुराण में उल्लेखित ‘काश्यते-प्रकाश्यते इति काशी’ का दर्शन उतर आया। 



गंगा के घाट से लेकर उस पार का रेतीला पाट, कुंड-सरोवर, मठ-मंदिरों व घर-चौबारों तक सजे दीपों की ज्योति में उभरा और विह्वल प्रकाश पुकार में खिंचे चले जाते सैलानियों-श्रद्धालुओं के अंतस में जा समाया। 



कार्तिक पूर्णिमा की शाम गंगा का क्या कहना, पहना पुष्प-दीप और गीतों का गहना। डमरूओं की डमडम, घंटियों की रुनझुन और वेद मंत्रों की गूंज के बीच महमह करते गुगुल-लोबान। सम्मोहनपाश में बांधने वाली गांव से शहर तक ऐसी ही तमाम चमत्कारी दृश्यावली ने कुछ यही अहसास कराया।



गंगा के घाट पर बाबा विश्वनाथ और गंगा की आराधना के सुरों में प्रभु श्रीराम की जयकार के स्वर एकाकार हुए। अयोध्या में रामलला का मंदिर बनने के उल्लास में दशाश्वमेध घाट पर सजी प्रभु की दिव्य-भव्य झांकी और मां गंगा की आरती भी उन्हें ही समर्पित। 



यह झलकियां देखने के लिए तीसरे पहर के अवसान के साथ नगर की सड़कें-गलियों में भीड़ मानो गंगा के घाटों से गलबहियां करने को आतुर हो उठीं। दीपों का थाल सजाए गंगा के घाटों की ओर बढ़ चला अथाह जन सैलाब।



मन में आस्था की उमंग, तन में जोश की तरंग। न कोई आमंत्रण न कोई बुलावा, सब एक रंग और श्रद्धा का एक ही भाव। गंगा भक्तों की अपार आस्था देख मानों पथरीले घाट जीवंत हो इठला उठे हों। 



यह भाव गंगा तट से इतर बस्तियों में भी नजर आया जहां दिन ढलने के साथ लोगों ने वरुणा-गोमती के तट, कुंड सरोवरों और देवालयों की राह धरी। दीपों से आराध्य देवों का दरबार सजाया।



 एक-दो दीप प्रसाद स्वरूप घर भी लाए और उससे आंगन रच रच कर सजाया। इसमें पंथ विभेद कहीं न नजर आया, यह वैसे ही था जैसे भोले बाबा ने अपनी नगरी में सगुण-निर्गुण समेत समस्त संतों का वास कराया। इसमें पंथ-संप्रदाय कहीं आड़े न आया।