राम नाथ कोविन्द। यह आम चुनावों का समय है। अनेक कारणों से यह अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर है। भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इस बार 96.88 करोड़ नागरिकों के पास मताधिकार है। प्रत्येक वोट, चाहे वह किसी भी उम्मीदवार के लिए हो, लोकतंत्र के पक्ष में भी एक वोट है। पूरे विश्व में, बड़ी संख्या में लोकतांत्रिक देशों में चुनाव हो रहे हैं और उनमें से प्रत्येक का परिणाम विभिन्न वैश्विक घटनाओं को अलग-अलग ढंग से प्रभावित करेगा, लेकिन भारत के चुनाव ही लोकतंत्र को मजबूत बनाने में सबसे अधिक योगदान देंगे। इसलिए यह समय की मांग है कि चुनावों में अधिकतम सहभागिता को यथासंभव सुनिश्चित किया जाए। मतदाताओं तक पहुंचने और दूर-दराज के स्थानों में मतदान की व्यवस्था करने हेतु हरसंभव प्रयास करने के लिए भारत के निर्वाचन आयोग की सराहना की जानी चाहिए। इनमें से कुछ क्षेत्रों तक पहुंचना मुश्किल भी है।

सिविल सोसायटी संगठनों और समाचार माध्यमों ने भी मतदान के अधिकार और कर्तव्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए हैं। मतदाताओं ने भी उस आह्वान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और पहले दो चरणों में उत्साहपूर्वक अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। अब तक का रुझान संतोषजनक रहा है, लेकिन जब भी मतदान-प्रतिशत के आंकड़ों पर चर्चा होती है, तब पर्यवेक्षक और विश्लेषक अक्सर एक बड़ी चुनौती के रूप में गर्मी के मौसम की चर्चा करते हैं। यदि गर्मी के बावजूद मतदाता अच्छी संख्या में बाहर आए हैं, तो अनुकूल मौसम में चुनाव होने पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी कहीं अधिक होती।

वर्तमान परिदृश्य में, मौसम एक अपरिहार्य आयाम है। चुनावों को इस तरह से निर्धारित किया जाना चाहिए कि 17वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने (16 जून) से पहले नतीजे आ जाएं। लाजिस्टिक कारणों और सुरक्षा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मतदान को कई हफ्तों की अवधि में आयोजित करना होगा। इन दो तथ्यों को देखते हुए इस बार का चुनाव कार्यक्रम अप्रैल में शुरू हुआ और जून में समाप्त होगा। यही समय है जब भारत के अधिकांश हिस्से बढ़ती गर्मी से पीड़ित रहते हैं। यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत के निर्वाचन आयोग ने चुनावों के संचालन का समय निर्धारित करते हुए, मौसम के आयाम को ध्यान में रखा है, लेकिन उसे 16 जून की अंतिम समयसीमा का पालन भी करना पड़ा है।

जैसे ही आइएमडी यानी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अप्रैल के दौरान कई जिलों में लू की चेतावनी जारी की, निर्वाचन आयोग ने त्वरित कार्रवाई की। निर्वाचन आयोग ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों को शामिल करते हुए एक टास्क फोर्स गठित करने का निर्णय लिया। यदि आवश्यकता पड़ी तो यह टास्क फोर्स प्रत्येक चरण के मतदान से पांच दिन पहले लू और आर्द्रता के प्रभाव की समीक्षा करेगी और रक्षात्मक उपायों के लिए कदम उठाएगी।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को चुनाव संचालन को प्रभावित करने वाली गर्मी की स्थिति का सामना करने हेतु तैयारी करने और सहायता प्रदान करने के लिए राज्यों में स्वास्थ्य अधिकारियों को आवश्यक दिशानिर्देश जारी करने की जिम्मेदारी दी गई है। निर्वाचन आयोग ने राज्य-स्तरीय अधिकारियों को मतदान केंद्रों पर आश्रय-स्थल, पीने के पानी और पंखों की व्यवस्था करने के लिए भी कहा है। मुझे विश्वास है कि ये उपाय मतदाताओं को कुछ हद तक राहत प्रदान करेंगे, फिर भी ये उपाय चुनाव प्रक्रिया के केवल एक पक्ष का समाधान करते हैं।

हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि उम्मीदवारों, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को बाहर गर्मी और धूल में प्रचार कार्य करना पड़ता है। सार्वजनिक रैलियों में बड़े नेताओं के बेहोश होने की खबरें चौंकाने वाली तो थीं, लेकिन आश्चर्यजनक नहीं। तथाकथित मतदाता-उदासीनता प्रचार अभियान के दौरान ही शुरू हो सकती है। मतदान केंद्रों पर व्यवस्थाओं की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन जिन मतदाताओं को ग्रामीण इलाकों में तेज धूप में काफी दूरी तय करनी पड़ सकती है, वे बाहर निकलना पसंद नहीं करेंगे। हमें ध्यान देना चाहिए कि ऐसे परिदृश्य अपवाद नहीं, बल्कि सामान्य हैं।

भारत में गर्मी के दौरान मौसम की यह स्थिति तनिक भी असामान्य नहीं है। उत्तरी मैदानी इलाकों, दक्षिणी प्रायद्वीपीय तथा तटीय क्षेत्रों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है, यहां तक कि कुछ स्थानों पर यह 45 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर रहता है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि भविष्य में जब भी मई-जून में मतदान होगा, तब भी मौसम संबंधी यही समस्याएं रहेंगी।

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण परिस्थितियां और अधिक कठिन ही हो सकती हैं। इसलिए हमें मतदाताओं, चुनाव प्रचारकों और चुनाव कराने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए चुनाव के उपयुक्त समय पर चर्चा करने की जरूरत है। कहने की जरूरत नहीं है कि लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए भी यह महत्वपूर्ण है।

अब समय आ गया है कि हम आम चुनावों के लिए मौसम के अनुकूल समय-सारणी बनाएं। मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि यह विषय एक साथ चुनावों पर मेरी अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति के संदर्भ की शर्तों का हिस्सा नहीं था। चुनाव समय-सारणी के बारे में मेरा सुझाव उस समिति की सिफारिशों से अलग है। यह सुझाव मेरे द्वारा व्यक्तिगत क्षमता में दिया जा रहा है।

मुझे लगता है कि जलवायु संबंधी चिंता इतनी गंभीर है कि इसके लिए एक सुविचारित और सामूहिक पहल की आवश्यकता है। लोकतंत्र के हित में इस समस्या का समाधान करने के लिए सभी हितधारकों को एक साथ आना चाहिए और कोई रास्ता निकालना चाहिए। हमारा उद्देश्य ऐसे मौसम में चुनाव कराना होना चाहिए, जो अधिकतम भागीदारी के लिए अनुकूल हो ताकि लोकतंत्र की व्यवस्था और मजबूत हो सके।

(लेखक पूर्व राष्ट्रपति हैं)