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Shiv Rudrashtakam: बेहद फलदायी है रुद्राष्टकम स्तुति, इस विशेष दिन करें इसका पाठ

सोमवार के दिन शिव जी की विधि-विधान के साथ पूजा करने से जीवन की तमाम समस्याएं खत्म होती हैं। साथ ही उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है कि शिव जी अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उनकी पूजा में ज्यादा किसी खास सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे में सोमवार के दिन उनके रुद्राष्टक स्तोत्र (Shiv Rudrashtakam) का पाठ जरूर करें।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Published: Mon, 06 May 2024 08:32 AM (IST)Updated: Mon, 06 May 2024 08:32 AM (IST)
Shiv Rudrashtakam: रुद्राष्टक स्तोत्र का पाठ -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shiv Rudrashtakam: हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा अत्यंत फलदायी मानी गई है। भोलेनाथ को सोमवार का दिन अति प्रिय है। इसीलिए इस विशेष दिन उनकी विधि-विधान के साथ पूजा करने से जीवन की तमाम समस्याएं खत्म होती हैं। साथ ही उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है कि शिव जी अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उनकी पूजा में ज्यादा किसी खास सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे में सोमवार के दिन सुबह उठकर किसी मंदिर में जाएं और उनका अभिषेक करें।

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फिर बेलपत्र चढ़ाकर जोर- जोर से भाव के साथ एक लय में रुद्राष्टक स्तोत्र का पाठ करें। अंत में आरती से पूजा समाप्त करें। ऐसा करने से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और मनोवांक्षित फल प्रदान करते हैं, तो आइए यहां पढिए भगवान भोलेनाथ का यह प्रिय स्तोत्र और आरती -

।। रुद्राष्टक स्तोत्र।।

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥

।।शिव आरती।।

जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ॥

ॐ जय शिव ओंकारा

ॐ जय शिव ओंकारा

सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।

ॐ जय शिव ओंकारा

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥

श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥

ॐ जय शिव ओंकारा

लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा ।

पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥

ॐ जय शिव ओंकारा

त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोइ नर गावे ।

कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥

ॐ जय शिव ओंकारा।

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डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।


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