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तनाव, देर से विवाह, नशा तथा भाग-दौड़ भरी जीवनशैली से हो रही है शुक्राणुओं में कमी

भारत में सदियों से देखा जाता है कि जब भी किसी दंपत्ति के संतान नहीं होती है तो सबसे पहले पत्नी को दोषी ठहराया जाता है और उसे बांझ कहकर ताने दिये जाते हैं। पुरुषों की जांच तक नहीं करवाते और सारा दोष महिला पर मढ़ दिया जाता है।

By Monika MinalEdited By: Monika MinalUpdated: Sun, 11 Feb 2018 01:24 PM (IST)
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ऐसे व्यक्ति जो सीधे गरम वातावरण के सम्पर्क में रहते हैं

भारत में सदियों से देखा जाता है कि जब भी किसी दंपत्ति के संतान नहीं होती है तो सबसे पहले पत्नी को दोषी ठहराया जाता है और उसे बांझ कहकर ताने दिये जाते हैं। तमाम छोटे शहरों में तो पुरुषों की जांच तक नहीं करवाते और सारा दोष महिला पर मढ़ दिया जाता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में नि:संतानता के मामले बढ़े हैं। इसके पीछे तेजी से हो रहे शहरीकरण, मिलावट की वजह से तमाम रासायनों का शरीर में जाना, तनाव, जरूरत से ज्यादा काम, तेज लाइफस्टाइल और देर से शादी होना बड़े कारण हैं।

गर्मी भी है हानिकारक: ऐसे व्यक्ति जो सीधे गरम वातावरण के सम्पर्क में रहते हैं तथा काम करते हैं- जैसे हलवाई, सुनार जहां भट्टी की गर्मी से अण्डकोष में शुक्राणु की संख्या में गिरावट देखी गई है।

न पहनें लंगोट: पहलवान इत्यादि जो लोग लंबे समय तक लंगोट पहनते हैं उनके अण्डकोष शरीर की गर्मी से खराब हो सकते हैं जिससे शुक्राणुओं की संख्या वीर्य में कम होने लगती है।

बचपन में दें ध्यान: बच्चों में देखें दोनों अण्डकोष थैली में हैं या नहीं अन्यथा कभी-कभी अण्डकोष एक अथवा दोनों थैली में नीचे नहीं आते हैं तथा शरीर की गर्मी से अंडकोष खराब हो जाते हैं वो बच्चे भी बड़े होकर नि:संतानता के शिकार होते हैं।

जंक फूड से रहें दूर: जंक फूड, रसायन मिश्रित खाद्य पदार्थों, फास्ट फूड का ज्यादा सेवन करने से विटामिन की कमी हो जाती है जिससे शुक्राणुओं की मोटिलिटी में कमी आ जाती है।

न रखें जेब में मोबाइल: मोबाइल से निकलने वाले रेडिएशन तथा निरन्तर पैरों पर लैपटॉप रख कर काम करने वाले पुरुषों में भी शुक्राणुओं की कमी तथा नि:संतान होने का खतरा।

नशे से रहें दूर: व्यसन-शराब धूम्रपान एवं अन्य कोई नशा करने पर भी स्पर्म कम हो जाते हैं। जरूरत से ज्यादा शराब पीने से स्पर्म की संख्या में कमी आ जाती है।

शादी को दें प्राथमिकता: कॅरियर के चलते शादी की उम्र बढ़ जाने से स्पर्म की संख्या व गुणवत्ता में कमी आ जाती है।

मोटापे से बचें: पुरुषों की प्रजनन क्षमता महिलाओं के मुकाबले 20 फीसदी कम होती है। ज्यादा वजन से हार्मोनल असंतुलन होता है। इससे स्पर्म बनने में दिक्कत आती है।

शुक्राणु की जांच में क्या है जरूरी

स्पर्म काउंट, स्पर्म मोटीलिटी, स्पर्म मोर्फोलोजी, स्पर्म वाईटेलिटी, शुक्राणु की मात्रा व गतिशीलता के अलावा यह जानना भी जरूरी है कि उसकी गुणवत्ता क्या है। वीर्य की उच्च स्तरीय जांच विशेषज्ञ द्वारा, संक्रमण होने पर कल्चर की जांच, पुरुष हारमोन्स के स्तर की जांच, एंटीबॉडीज के स्तर की जांच, डीएनए फ्रेगमेंटेशन टेस्ट, केरियोटाइप जांच।

शून्य शुक्राणु : जननांगों की सोनोग्राफी एवं कलर डॉपलर की जांच, हार्मोन की जांच (टेस्टोस्टेरोन, एफएसएच), वाई-क्रोमोसोम माइक्रो डिलीशन, जरूरत होने पर अंडकोश की बॉयप्सी।

चिकित्सकीय कारण

1-सूजन-अंडकोष की नस में सूजन होना, 2-संक्रमण-अंडकोष में किसी तरह का संक्रमण होना, 3-हार्मोन असंतुलन-पुरुष में टेस्टोस्टीरोन हार्मोन की कमी के कारण स्पर्म की संख्या में कमी आती है, 4-दवा-स्टीरॉयड, कीमोथैरेपी एंटीफंगल आदि कुछ दवाओं का अधिक उपयोग से भी स्पर्म की संख्या में कमी आती है, 5-यौन संक्रमित बीमारियां- सिर्फ एड्स ही नहीं बल्कि दर्जनों बीमारियां हैं जो असुरक्षित यौन संबंध स्थापित करने से हो जाती हैं तथा यह इनफर्टिलिटी का बड़ा कारण हैं।

कुछ अन्य बीमारियां जैसे मम्स, टीबी, ब्रूसिलोसिस, गोनोरिया, टाइफाइड, इंफ्लुएंजा, स्मॉलपॉक्स आदि के कारण भी स्पर्म काउंट कम हो जाते हैं। 

इंदिरा आईवीएफ दिल्ली की आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर सागरिका अग्रवाल ने बताया शुक्राणु में अनेकों तरह के विकार पाए जाते हैं जिसके चलते सामान्य से अधिक शुक्राणु होने पर भी पुरुषों को संतान प्राप्ति में कठिनाई आती है। शुक्राणु की जांच एक अत्याधुनिक लेब व प्रशिक्षित विशेषज्ञ की निगरानी में कराना अत्यन्त जरूरी इसलिए है क्योंकि यह जांच ही नि:संतान दम्पति के सम्भावित इलाज को तय करती है।

विदेशों में शोध

कनाडा में दो शोध किये गए इसमें वर्ष 1984 में 18 से 29 साल की उम्र में 5 फीसदी कपल इनफरटाइल पाये गये वहीं 2010 में यह संख्या बढ़कर 13.7 फीसदी हो गई। मशहूर पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के मुताबिक, पिछले पचास साल में दुनिया भर में मर्दों में शुक्राणुओं की संख्या आधी रह गई है। यह एक चिंताजनक बात है। 21वीं सदी में पिता बनने की हसरत पुरुषों के लिए तनाव का कारण है।

मृत शुक्राणु

पुरुषों में शुक्राणु की गति धीमी होने की वजह से वह अण्डे को निषेचित करने में असमर्थ होते हैं। इस स्थिति में इक्सी तकनीक ऐसे पुरुषों के लिए वरदान साबित हुई है। मृत शुक्राणु के लिए हाइपो ऑस्मोटिक स्वेलिंग तकनीक के माध्यम से जीवित शुक्राणु का चयन किया जाता है व इक्सी के माध्यम से उनको अण्डे में निषेचित कर भ्रूण तैयार किया जाता है।

शुक्राणु की कमी के लिए क्या उपचार उपलब्ध

शुक्राणु संख्या (१०-१५ मि/एमएल)

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 15 मि/एमएल से ज्यादा शुक्राणुओं की मात्रा सामान्य है। अगर किसी दम्पति में शुक्राणु की मात्रा 10 मि/एमएल से ज्यादा हो तो वह आईयूआई प्रक्रिया करवा सकते हैं। आईयूआई प्रक्रिया में पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग कर एक पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ में छोड़ दिए जाते हैं। यह तकनीक प्राकृतिक गर्भधारण जैसी ही है।

शुक्राणु संख्या (५-१० मि/एमएल)

10 मि/एमएल से कम शुक्राणु वाले आईवीएफ पद्धति के लिए जा सकते हैं। इंदिरा आईवीएफ की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पूजा सिंह ने टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रक्रिया की कार्यप्रणाली को दर्शाया, आईवीएफ पद्धति में पत्नी का अण्डा शरीर से बाहर निकाला जाता है, पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग कर लेब में अण्डे व शुक्राणु का निषेचन किया जाता है। 2-3 दिन में अण्डे भ्रूण में परिवर्तित हो जाते हैं। भ्रूण वैज्ञानिक इनमें से अच्छे भ्रूण चयन करते हैं और ये भ्रूण एक पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ में छोड़ दिए जाते हैं।

शुक्राणु संख्या (१-५ मि/एमएल)

1-5 मि/एमएल से कम शुक्राणु वाले आईवीएफ की अत्याधुनिक पद्धति आईसीएसआई (इक्सी) करवा सकते हैं। इक्सी पद्धति में पत्नी का अण्डा शरीर से बाहर निकाला जाता है, पति के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग कर लेब में इक्सी मशीन के जरिए एक अण्डे को पकड़ उसमें एक शुक्राणु को इंजेक्ट किया जाता है। 2-3 दिन में अण्डे भ्रूण में परिवर्तित हो जाते हैं। भ्रूण वैज्ञानिक इनमें से अच्छे भ्रूण चयन करते हैं और ये भ्रूण एक पतली नली के माध्यम से पत्नी के गर्भ में छोड़ दिए जाते हैं।

शून्य शुक्राणु

आईवीएफ एवं गायनोकोलॉजी एक्सपर्ट डॉक्टर निताशा गुप्ता ने टेस्टीक्लयूर बायोप्सी प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए बताया की शून्य शुक्राणु वाले पुरुषों में टेस्टीक्लयूर बायोप्सी [टीईएसई] की जाती है। इसमें जहां स्पर्म बनते हैं वहां से एक टुकड़ा लेकर लैब में टिश्यू की जांच की जाती है। उस टिश्यू में स्पर्म की उपस्थिति का पता लगाया जाता है। अगर उस टिश्यू में स्पर्म उपलब्थ्ध होते हैं तो (इक्सी) प्रक्रिया के माध्यम से इन स्पर्म से महिला के अण्डाणुओं को फर्टिलाइज्ड कर भ्रूण बनाया जा सकता है। इस तरह से अपने ही शुक्राणुओं से पिता बन सकते हैं। अगर टिश्यू में स्पर्म नहीं मिलते हैं तो डोनर स्पर्म की सहायता से भी पिता बन सकते हैं।