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22 नवंबर को पहली बार शुरू हुई थी Mercedes की टेस्ट ड्राइव, जानें नाम के पीछे का इतिहास

22 नवंबर को ही Mercedes टेस्ट ड्राइव शुरु की थी। चलिए अब बताते हैं इसका नाम कैसे पड़ा और कब से कानूनी तौर पर मर्सिडीज ब्रांड नाम रजिस्टर्ड हुआ है।कार विशेष रूप से इसके खरीदार एमिल जेलिनेक के लिए बनाई गई थी जो काफी तेज आकर्षक कारों का शौक रखने वाले उघमी थे। चलिए आपको इसके बारे में और विस्तार से बताते हैं।

By Ayushi ChaturvediEdited By: Ayushi ChaturvediUpdated: Wed, 22 Nov 2023 01:19 PM (IST)
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22 नवंबर को ही Mercedes की पहली टेस्ट ड्राइव हुई थी

ऑटो डेस्क,नई दिल्ली। आज का इतिहास... क्या आप जानते हैं आज के दिन ही एक लग्जरी कार की पहली टेस्ट ड्राइव शुरू हुई थी। जी हां आज हम आपको इस खबर के माध्यम से बताने जा रहे हैं इस रोचक इतिहास के बारे में। जिस लग्जरी कार की बात हो रही है उसका नाम मर्सिडीज है। इस दिन 22 नवंबर को ही कंपनी ने इसकी टेस्ट ड्राइव शुरु की थी। चलिए अब बताते हैं इसका नाम कैसे पड़ा और कब से कानूनी तौर पर मर्सिडीज ब्रांड नाम रजिस्टर्ड हुआ है।

कैसे पड़ा लग्जरी कार का नाम

22 नवंबर 1990 को मर्सिडीज नाम के तहत निर्मित होने वाली पहली कार को जर्मनी के कैनस्टैट में उद्घाटन अभियान के लिए ले जाया गया। कार विशेष रूप से इसके खरीदार एमिल जेलिनेक के लिए बनाई गई थी, जो काफी तेज आकर्षक कारों का शौक रखने वाले उघमी थे। जेलिनेक ने मर्सिडीज कार को जर्मन कंपनी डेमलर-मोटरेन-गेसेलशाफ्ट से बनवाया था।

यह कंपनी द्वारा पहले बनाई गई किसी भी कार की तुलना में हल्की और काफी चिकनी थी और जेलिनेक को भरोसा था कि वह इतनी आसानी से रेस जीत जाएगी कि लोग इस कार को देखते ही खरीदने के लिए उत्सुक हो जाएंगे और खरीद भी लेंगे। चलिए अब बात आती है कि इसका नाम कैसे पड़ा... तो इसका नाम कंपनी ने अपनी नई मशीन का नाम जेलिनेक की 11 साल की बेटी, मर्सिडीज के नाम पर रखने की सहमति व्यक्त की तो इस तरह पड़ा इस लग्जरी कार का नाम।

दुनिया की पहली बिना घोड़े वाली गाड़ी 

1886 में, जर्मन इंजीनियरों गोटलिब डेमलर और विल्हेम मेबैक ने दुनिया की पहली बिना घोड़े वाली गाड़ी का निर्माण किया था, एक चार पहिये वाली कार जिसमें एक इंजन लगा हुआ था। 1889 में दोनों व्यक्तियों ने चार -स्ट्रोक इंजन द्वारा संचालित होने वाला दुनिया की पहली चार -पहिये वाली ऑटोमोबाइल बनाया। इसके बाद उन्होंने अगले साल डेमलर-मोटरेन गेसेलशाफ्ट का गठन किया।

 डी-एम-जी ऑटो का विज्ञापन देखा

वहीं 1896 में, एमिल जेलिनेक ने एक जर्मन पत्रिका में डी-एम-जी ऑटो का विज्ञापन देखा, फिर कहानी के अनुसार, उन्होंने डी एम -जी के कैनस्टैट कारखाने की यात्रा की, इसमें पिथ हेलमेट, पिंस नेज और मटन चॉप साइडबर्न पहने हुए कारखाने के फर्श पर चढ़ गए और मांग की कि कंपनी उन्हें सबसे शानदार कार बेचे।

वो कार काफी मजबूत थी, लेकिन वह केवल 15 मील प्रति घंटे की स्पीड से चल सकती थी फिर 898 में, उन्होंने दो और कारों का ऑर्डर दिया इसके साथ ही ये भी शर्त लगाया कि वो पहली कार की तुलना में कम से कम 10 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चलने में सक्षम होगी। उसी समय उन्हें एक ऐसी रेसिंग कार की जरूरत थी जो और भी तेजी से चल सके और उसे दुनिया का सबसे अच्छा स्पीडस्टर (मर्सिडीज का नाम दिया जाएगा) बनाया जाएगा, तो वह उनमें से 36 खरीद लेगा।

1902 में कंपनी ने कानूनी तौर पर रखा नाम 

नई मर्सिडीज कार तेज थी। इसमें एल्यूमीनियम क्रैंककेस, मैग्नेलियम बियरिंग्स, प्रेस्ड-स्टील फ्रेम, एक नए प्रकार का कॉइल-स्प्रिंग क्लच और हनीकॉम्ब रेडिएटर (जो आज के मर्सिडीज उपयोग करता है) भी पेश किया गया। यह फीनिक्स की तुलना में लंबा, चौड़ा और निचला था और इसमें बेहतर ब्रेक थे। इसके साथ ही इसमें सबसे खास बात ये थी कि एक मैकेनिक कुछ ही मिनटों में नई मर्सिडीज को दो सीटों वाली रेसर से चार सीटों वाली फैमली कार में बदल सकता है। इसके बाद 1902 में कंपनी ने कानूनी तौर पर मर्सिडीज ब्रांड नाम पंजीकृत किया।

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