Petrol Engine: करीब 150 साल पहले शुरू हुआ सफर, धुएं और तेज आवाज से दिलाई निजात; कहानी पेट्रोल इंजन की
दुनिया में पेट्रोल इंजन को आए हुए एक सदी से ज्यादा वक्त हो गया है। ये कहानी 19वीं सदी के मध्य में शुरू हुई थी जब निकोलस ओटो और सिगफ्राइड मार्कस जैसे आविष्कारकों ने आंतरिक दहन इंजनों (ICE) में छेड़छाड़ करना शुरू किया उसके कुछ समय बाद पहला पेट्रोल इंजन आया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इंजन में कई कारगर बदलाव हुए।
ऑटो डेस्क, नई दिल्ली। कहा जाता है कि इंजन, गाड़ियों का दिल होते हैं। अपने इस लेख में हम आपके लिए इसके आदि से लेकर अब तक की कहानी लेकर आए हैं। आपको बता दें कि शुरुआत से लेकर अब तक पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों का दबदबा रहा है। आइए, जान लेते हैं कि पेट्रोल इंजन की शुरुआत कब हुई थी और इसका अब तक का सफर कैसा रहा है?
कब हुआ पेट्रोल इंजन का अविष्कार
दुनिया में पेट्रोल इंजन को आए हुए एक सदी से ज्यादा वक्त हो गया है। ये कहानी 19वीं सदी के मध्य में शुरू हुई थी, जब निकोलस ओटो और सिगफ्राइड मार्कस जैसे आविष्कारकों ने आंतरिक दहन इंजनों (ICE) में छेड़छाड़ करना शुरू किया। उस समय के इंजन पॉल्यूशन करने के साथ-साथ तेज आवाज भी करते थे। इस तरह 1860 और 1910 के बीच पेट्रोल से चलने वाले आईसीई इंजन की नींव रखी गई थी।
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आम लोगों तक पहुंचने में लगा था समय
20वीं सदी में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री ने वास्तव में आकार लिया। फोर्ड और मर्सिडीज-बेंज जैसी कार कंपनियों ने इस समय बड़े पैमाने पर पेट्रोल से चलने वाली कारों का उत्पादन किया, जिससे वे आम जनता के लिए सुलभ हो गए। समय के साथ इनोवेशन हुआ और धीरे-धीरे हैंड क्रैंक की जगह इंजन में इलेक्ट्रिक स्टार्टर्स का उपयोग किया जाने लगा।ऑटोमैटिक गियरबॉक्स की शुरुआत
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इंजन में कई कारगर बदलाव हुए। इसके सुव्यवस्थित डिजाइन के साथ-साथ ऑटोमाटिक ट्रांसमिशन और पावर स्टीयरिंग जैसे फीचर्स जोड़े गए। इसके बाद धीरे-धीरे फ्यूल- एफिशियंट कारों की लोकप्रियता बढ़ी, जिससे कैटेलिटिक कन्वर्टर्स और टर्बोचार्जिंग जैसे इनोवेशन को बढ़ावा मिला।