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Electric Car: आसान नहीं है सेकेंड हैंड इलेक्ट्रिक कार बेचना, बाजार विकसित होने में लगेंगे कई साल

कार डीलर्स भी अपने ग्राहकों को सेकेंड हैंड इलेक्ट्रिक कार के प्रति बहुत भरोसा नहीं दिला पाते हैं इसलिए वे सेकेंड हैंड इलेक्ट्रिक कार को बेचने में बहुत दिलचस्पी नहीं लेते हैं। डीलर्स कहते हैं कि यात्री कार की बिक्री में इलेक्ट्रिक कार की हिस्सेदारी सिर्फ दो प्रतिशत है और इसका बाजार सिर्फ पांच साल पुराना है। लोग पुरानी इलेक्ट्रिक कार को लेकर उत्साह नहीं दिखाते हैं।

By Jagran News Edited By: Yogesh Singh Updated: Sat, 11 May 2024 09:00 PM (IST)
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आसान नहीं है सेकेंड हैंड इलेक्ट्रिक कार बेचना
राजीव कुमार, नई दिल्ली। दीपक तनेजा ने अगस्त 2022 में टाटा नेक्सन एक्स जेड प्लस इलेक्ट्रिक कार की खरीदारी यह सोच कर की थी कि वह इस कार से एक चार्ज में देहरादून की सफर तय कर लेंगे, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सका। अब वह इस कार को बेचना चाहते हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक कार होने के नाते इसे बेचना भी आसान नहीं दिख रहा है।

उन्होंने इस कार को 17.40 लाख रुपए (ऑन रोड प्राइस) में खरीदा था और मात्र डेढ़ साल पुरानी कार को पांच लाख कम दाम पर बेचने को तैयार है। यही कार अगर पेट्रोल डीजल की होती तो हाथोंहाथ बिक गई होती। सिर्फ तेनजा ही नहीं, उनके जैसे कई इलेक्ट्रिक कार मालिक अपनी कार बेचने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं।

नहीं खरीदना चाहते पुरानी इलेक्ट्रिक कार

कार डीलर्स भी अपने ग्राहकों को सेकेंड हैंड इलेक्ट्रिक कार के प्रति बहुत भरोसा नहीं दिला पाते हैं, इसलिए वे सेकेंड हैंड इलेक्ट्रिक कार को बेचने में बहुत दिलचस्पी नहीं लेते हैं। डीलर्स कहते हैं कि यात्री कार की बिक्री में इलेक्ट्रिक कार की हिस्सेदारी सिर्फ दो प्रतिशत है और इसका बाजार सिर्फ पांच साल पुराना है। शुरू के दो साल तो मुख्य रूप से टैक्सी या सरकारी ऑफिस में ही इलेक्ट्रिक कार चलाई जा रही थी।

इस साल अप्रैल में 3,35,123 यूनिट यात्री वाहन की बिक्री हुई और इनमें इलेक्ट्रिक कार की हिस्सेदारी 7,415 यूनिट की थी। वित्त वर्ष 2023-24 में 82,000 इलेक्ट्रिक कार की बिक्री हुई। दो साल पहले तो हिस्सेदारी और भी कम थी। सीमित उपलब्धता एवं जानकारी से लोग पुरानी इलेक्ट्रिक कार को लेकर उत्साह नहीं दिखाते हैं।

ये है मुख्य वजह 

इसकी बैट्री को लेकर भी लोगों में संशय है। सोसायटी ऑफ मैन्यूफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (एसएमईवी) के महानिदेशक सोहिंदर सिंह गिल के मुताबिक इलेक्ट्रिक कार की कीमत में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी बैट्री की होती है और जैसे-जैसे बैट्री पुरानी होती है, उसकी क्षमता कम होती जाती है और इसका असर माइलेज पर भी दिखता है। इसलिए भी लोग पुरानी इलेक्ट्रिक कार लेने से कतराते हैं।

हालांकि इलेक्ट्रिक कार में बैट्री की गारंटी आठ साल की होती है, लेकिन अगर कोई चार साल पुरानी इलेक्ट्रिक कार खरीदता है तो चार साल बाद उसे नई बैट्री लेने के लिए नई कार की 40 प्रतिशत कीमत चुकानी होगी। पांच साल से अधिक पुरानी इलेक्ट्रिक कार तो ग्राहक बिल्कुल नहीं खरीदना चाहेगा। इन सब कारणों से ही सेकेंड हैंड कार बेचने वाली कंपनियां इलेक्ट्रिक कार की कोई गारंटी नहीं लेती है जबकि पुरानी पेट्रोल-डीजल कार पर ये कंपनियां गारंटी-वारंटी देती है।

फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (फाडा) के अकादमी एंड रिसर्च विंग के चेयरमैन वी. गुलाटी कहते हैं, इलेक्ट्रिक कार की रिसेल अच्छी होने में अभी पांच साल लगेंगे और दुनिया भर में यही स्थिति है। उन्होंने बताया कि ईवी में ग्राहकों के पास विकल्प नहीं है, जहां डीजल-पेट्रोल कार में ग्राहक शो रूम में प्रवेश करते हैं तो उनके पास आठ-दस विकल्प होते हैं तो इलेक्ट्रिक कार में सिर्फ एक।

बैट्री और चार्जिंग सुविधा को लेकर ग्राहकों में अभी भरोसा नहीं जगा है। इलेक्ट्रिक थ्री व्हीलर्स में एक इको-सिस्टम विकसित हो गया है, इसलिए पुराने इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर्स की बिक्री होने लगी है। टाटा पैसेंजर इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर आनंद कुलकर्णी कहते हैं कि चार साल पहले ही इलेक्ट्रिक कार की शुरुआत हुई है, इसलिए अभी रिसेल मार्केट नहीं बन पाया है।

इलेक्ट्रिक कार के मालिकों ने बताया कि घर पर चार्ज करने पर उन्हें घरेलू बिजली दर के हिसाब से शुल्क देना पड़ता है, लेकिन हाईवे या अन्य सार्वजनिक जगहों पर चार्ज करने पर उन्हें 21 रुपए प्रति यूनिट प्लस जीएसटी के हिसाब से शुल्क चुकाना पड़ता है। चार्जिंग स्टेशन सभी जगहों पर उपलब्ध नहीं होने से भी इलेक्ट्रिक कार लोगों के जेहन में नहीं उतर पा रही है।

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