देश में दुर्घटनाओं पर लगेगी लगाम, IIT में स्पीड वार्निंग सिस्टम पर चल रहा काम
IIT के शोधकर्ता स्मार्ट स्पीड वार्निंग सिस्टम के लिए पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं क्योंकि उनका दावा है कि ऐसी प्रणाली दुनिया भर में कहीं भी उपलब्ध नहीं है। शोधकर्ताओं की टीम ने देश भर के विभिन्न राजमार्गों पर पायलट अध्ययन करने की भी योजना बनाई है।
By BhavanaEdited By: Updated: Tue, 19 Oct 2021 08:18 AM (IST)
नई दिल्ली, ऑटो डेस्क। देश में मौजूद विभिन्न Indian Institutes of Technology के शोधकर्ता वाहनों के लिए पहली स्मार्ट स्पीड वार्निंग प्रणाली विकसित कर रहे हैं, जिसका उपयोग सड़क के बुनियादी ढांचे के साथ-साथ भौगोलिक स्थिति के आधार पर ड्राइवर को सचेत करने के लिए किया जा सकता है। बता दें, इस प्रणाली का उद्देश्य देश में तेज गति से संबंधित दुर्घटनाओं से बचने में मदद करना है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, देश में लगभग 70 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं अधिक गति के कारण होती हैं।
नई कारों में अनिवार्य हुआ बीप सिस्टमभारत में हाई स्पीड के चलते होने वाली घातक घटनाओं को कम करने के लिए, सरकार ने 2019 की 1 जुलाई से बेची जाने वाली सभी नई कारों को एक स्पीड मॉनिटर डिवाइस से लैस होना अनिवार्य कर दिया था, जो वाहनों के 80 किमी प्रति घंटे से ऊपर पहुंचने पर रुक-रुक कर चेतावनी बीप प्रदान करेगा और वाहन के 120 किमी प्रति घंटे से ऊपर जाने पर एक निरंतर बीप जारी रहेगा। बता दें, 2019 के नए मोटर वाहन अधिनियम के तहत तेज गति वाले वाहनों के जुर्माने को दस गुना बढ़ा दिया गया था।
वाहन की गति रास्तों से अनुसार होती है अलगहालांकि, IIT गुवाहाटी और बॉम्बे के शोधकर्ताओं के अनुसार, वर्तमान स्पीड गवर्निंग डिवाइस 'वन साइज फिट्स ऑल' समाधान के समान है। यह बहुत अधिक स्मार्ट नहीं है, और इसलिए पहाड़ी इलाकों, मैदानी इलाकों या रेगिस्तानी इलाकों में ड्राइविंग करते समय प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकता है। आईआईटी गुवाहाटी के सिविल इंजीनियरिंग प्रोफेसर अखिलेश कुमार मौर्य ने कहा, "हमारे अध्ययन से पता चला है कि किसी वाहन की सुरक्षित गति सड़क के अनुसार बदलाव के साथ काफी भिन्न हो सकती है।
इसलिए एक स्मार्ट स्पीड वार्निंग सिस्टम विकसित करने की आवश्यकता है, जो आगामी सड़क बुनियादी ढांचे और भूगोल के आधार पर गति सीमा को शामिल करे। IIT के शोधकर्ता स्मार्ट स्पीड वार्निंग सिस्टम के लिए पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं क्योंकि उनका दावा है कि ऐसी प्रणाली दुनिया भर में कहीं भी उपलब्ध नहीं है। शोधकर्ताओं की टीम ने देश भर के विभिन्न राजमार्गों पर पायलट अध्ययन करने की भी योजना बनाई है ताकि विभिन्न भौगोलिक स्थानों का पता लगाया जा सके और मॉडल को अंततः भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के सामने पेश किया जा सके।