केवल तीन राज्यों ने ही बनाया वाहन ट्रैकिंग प्लेटफार्म, मंत्रालय को और स्टेट्स के शामिल होने की उम्मीद
जनवरी 2020 में निर्भया फ्रेमवर्क के तहत आई योजना के लिए तीस राज्यों ने भेजे थे प्रस्ताव। बिहार हिमाचल और पुडुचेरी को छोड़कर बाकी राज्यों का रुख ठंडा रहा। मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि कुछ और राज्य जल्द ही इसमें शामिल हो सकते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Ayushi ChaturvediUpdated: Fri, 06 Jan 2023 07:37 PM (IST)
मनीष तिवारी, नई दिल्ली: अगर राज्यों ने उत्साह दिखाया होता तो बसों और आटो समेत सभी तरह के व्यावसायिक वाहनों की ट्रैकिंग के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय की सहायता से चलने वाली योजना सही तरह आगे बढ़ रही होती और इसका दायरा भी बढ़ाया जा सकता था। तीन साल में केवल तीन राज्य-हिमाचल प्रदेश, बिहार और पुडुचेरी ही आगे बढ़े हैं। यह स्थिति तब है जब लगभग तीस राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों ने सड़क परिवहन मंत्रालय को अपने यहां लागू करने के लिए प्रस्ताव भेजे थे।
दिल्ली में वसंत विहार दुष्कर्म मामले के बाद निर्भया फ्रेमवर्क के तहत इस योजना की रूपरेखा बनाई गई थी। सड़क परिवहन मंत्रालय ने पिछले दिनों जारी किए गए वार्षिक लेखा-जोखा में यह जानकारी दी है कि बिहार, हिमाचल प्रदेश और पुडुचेरी ने पिछले दो-तीन माह में वाहन ट्रैकिंग से संबंधित निगरानी केंद्रों की शुरुआत की है।
15 जनवरी 2020 को मिली मंजूरी
मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि कुछ और राज्य जल्द ही इसमें शामिल हो सकते हैं। मंत्रालय के अनुसार 15 जनवरी 2020 को इस योजना को मंजूरी दी गई थी। इसके तहत लोगों की सुरक्षा और इन्फोर्समेंट लिए राज्य आधारित वाहन ट्रैकिंग प्लेटफार्म बनाया जाना है। इस प्लेटफार्म का विकास, इसकी खूबियां तय करने, तैनाती और प्रबंधन का कार्य राज्यों को करना है। निर्भया फ्रेमवर्क से संबंधित इस पहल के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना है।463 करोड़ रुपये की राशि हुई निर्धारित
प्रारंभिक चरण के रूप में 463 करोड़ रुपये की राशि इसके लिए निर्धारित की गई। सड़क परिवहन मंत्रालय ने योजना के लिए 193 करोड़ रुपये की राशि भी जारी कर दी, लेकिन अभी इस पर अमल के मामले में राज्य पीछे हैं। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक आपराधिक घटनाओं की जांच-पड़ताल के मामले में यह पहल बेहद अहम है, लेकिन राज्यों का रुख ढीला-ढाला है।
ट्रैकिंग की जरूरत हुई महसूस
हम उनसे इसके लिए आगे आने के लिए कह ही सकते हैं। पहले वे व्यावसायिक वाहनों की ट्रै¨कग की निगरानी का सिस्टम तो बनाएं। अगर कानून की जरूरत हुई तो निजी वाहनों की मॉनिटरिंग में भी किसी को हर्ज नहीं होना चाहिए, क्योंकि लोगों की सुरक्षा का सवाल सबसे अहम है। निजता का पहलू इसके बाद आता है। कई देशों में यह सिस्टम प्रभावी रूप से काम कर रहा है। दिल्ली के कंझावाला जैसी डराने वाली घटना में हर किसी ने इस तरह की ट्रैकिंग की जरूरत महसूस की है।हमारे पास तकनीक है, उसे लागू करने के लिए सक्रियता की जरूरत है। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ हरमन सिंह सोढ़ी ने राज्यों को वाहनों की ट्रैकिंग की निगरानी में पीछे नहीं रहना चाहिए। नीति के स्तर पर इसके लिए समयसीमा जरूरी है। यह नहीं कि राज्य अपनी इच्छा से धीरे-धीरे इसके दायरे में आते जाएं। बिना किसी को छूट दिए सभी व्यावसायिक वाहनों को इसके दायरे में लाया जाना चाहिए। केवल बस और कैब ही नहीं, आटो भी इसके दायरे में हों। कुछ जगहों में ऐसा ही हो रहा है।
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