इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है
By Ankit DubeyEdited By: Updated: Wed, 06 Mar 2019 08:34 AM (IST)
नई दिल्ली (ऑटो डेस्क)। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है। एनजीओ की तरफ से दायर याचिका में लोगों के जीवन, स्वास्थ्य और स्वच्छ पर्यावरण के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में विस्तारित नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान, 2020 (एनईएमएमपी-2020) का भी उल्लेख किया गया है। भारी उद्योग मंत्रालय ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने और प्रोत्साहित करने के लिए 2015 में यह योजना तैयार की थी। याचिका में कहा गया है कि 2020 तक 60 से 70 लाख हाइब्रिड वाहनों की बिक्री का लक्ष्य है, लेकिन अभी तक सिर्फ 2.63 लाख वाहनों की बिक्री ही हो पाई है।प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने पहले तो इस याचिका को स्वीकार ही नहीं करना चाहती थी। पीठ का मानना था कि यह सरकार की नीतिगत फैसले का मामला है। लेकिन एनजीओ सीपीआइएल, कॉमन कॉज और सीता राम जिंदल फाउंडेशन की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण की दलील के बाद पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब देने को कहा।
याचिका में कहा गया है कि सरकार ‘जीरो इमिशन’ वाहनों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन देने में पूरी तरह विफल रही है। हवा की गुणवत्ता और प्रदूषण स्तर को बेहतर बनाए रखने के लिए उचित कानून का अभाव है। सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे इलेक्ट्रिक वाहन लोगों की पहली पसंद बने। ताकि धीरे-धीरे पारंपरिक वाहनों की संख्या कम हो और पेट्रोल और डीजल की खतम में कमी आए।नॉर्वे, नीदरलैंड, स्वीडन, चीन, अमेरिका और ब्रिटेन के उदाहरण भी दिए हैं, जहां इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्तर पर कई तरह के प्रोत्साहन दिए जाते हैं। नॉर्वे में इलेक्ट्रिक वाहनों पर खरीद या आयात और रोड टैक्स नहीं लगता। ब्रिटेन में ऐसे वाहनों पर उत्पाद कर नहीं लगता।