जब Ratan Tata ने अपमान का बदला कंपनी खरीदकर लिया, Ford को ऐसे दिया करारा जवाब
Ratan Tata जितने सरल दिखते थे वह उतने ही अंदर से मजबूत भी थे। इस बात पता इसी से चलता है जब वह अपने पैसेंजर कार डिवीजन को बेचने के लिए Ford Motors के पास गए थे और उसके चेयरमैन ने उन्हें यह कहकर अपमानित किया था कि तुम कुछ नहीं जानते हो। उन्होंने अपने इस अपमान का बदला उसे खरीद कर लिया। आइए जानते हैं इसके पीछे की कहानी।
ऑटो डेस्क, नई दिल्ली। TATA Sons के पूर्व चेयरमैन Ratan Tata का 9 अक्टूबर की रात को स्वर्गवास हो गया। उन्होंने 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। उनके जरिए किए गए कामों को लेकर हमेशा देश याद रखेगा। वह जितने सरल थे, उतने ही अंदर से मजबूत भी थे। अगर उन्होंने कोई काम ठान लिया तो उसे पूरा करके ही दम लेते थे। ऐसा ही एक किस्सा है फोर्ड कंपनी की जगुआर लैंड रोवर के बिकने का। आइए जानते हैं इसके बारे में।
बेचने जा रहे थे पैसेंजर कार डिवीजन
ये बात 90 के दशक की है, उस समय TATA Sons के चेयरमैन रहते हुए रतन टाटा थे। उनके नेतृत्व में टाटा मोटर्स ने अपनी कार Tata Indica थी। यह कार लोगों में काफी पॉपुलर भी हुई, लेकिन टाटा कारों की बिक्री उस हिसाब से नहीं हो पा रही थी, जैसा रतन टाटा ने सोचा था। टाटा इंडिका के ग्राहकों के खराब रिस्पांस और लगातार बढ़ते घाटे की चलते रतन टाटा ने पैसेंजर कार डिवीजन को साल 1999 में बेचने का फैसला कर लिया। इसको लेकर उन्होंने अमेरिकन कार निर्माता कंपनी Ford Motors से बात भी की थी।
यह भी पढ़ें- अलविदा रतन टाटा: Tata Motors का कमर्शियल व्हीकल से पैसेंजर व्हीकल तक का सफर
Ford Motors के चेयरमैन ने किया था अपमान
साल 1999 में जब रतन टाटा अपनी टीम के साथ अमेरिकी शहर डेट्रॉइट स्थित Ford Motors कंपनी के ऑफिस गए। वहां पर रतन टाटा की उस समय कंपनी के चेयरमैन बिल फोर्ड से करीब 3 घंटे की मुलाकात की। इस दौरान रतन टाटा को अपमान का सामना करना पड़ा था। फोर्ड ने अपमान करते हुए कहा था कि तुम कुछ नहीं जानते, आखिर तुमने पैसेंजर कार डिवीजन क्यों शुरू किया? अगर मैं ये सौदा करता हूं तो ये तुम्हारे ऊपर बड़ा एहसान होगा।
मुलाकात के बाद लिया ये फैसला
जैसा की हमने आपको ऊपर बताया कि रतन टाटा जितने ऊपर से सरल दिखाई देते थे उतने ही अंदर से मजबूत भी थे। रतन टाटा ने बिल फोर्ड से हुई मुलाकात के दौरान कुछ नहीं कहा। उस दौरान उन्होंने मन ही मन बड़ा फैसला किया। इसके बाद उन्होंने अपने बिजनेस को बेचने का फैसला टाल दिया और भारत वापस आ गए और अपना पूरा ध्यान टाटा मोटर्स को बुलंदियों पर पहुंचाने में लग गए।यह भी पढ़ें- हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से पढ़ें हैं रतन टाटा, जानिए कहां से पूरी की है स्कूली एजुकेशन