सुल्तान पोखर: दो समुदायों की सदियों पुरानी आस्था का प्रतीक
अररिया। फारबसिगंज का सुल्तान पोखर सदियों से ¨हदू मुस्लिम एकता का प्रतीक बना हुआ है। पोखर
By JagranEdited By: Updated: Tue, 04 Apr 2017 12:35 AM (IST)
अररिया। फारबसिगंज का सुल्तान पोखर सदियों से ¨हदू मुस्लिम एकता का प्रतीक बना हुआ है। पोखर तट पर बने सुल्तानी माई स्?थान पर दोनों समुदायों के लोग एक साथ मन्नते मांगते हैं। यह मान्यता है कि इस पवित्र स्थल पर जब भी कोई संतान विहीन औरत पोखर में स्नान कर के अपने लिए औलाद की मन्नत मांगती है तो वह अवश्य पूरी होती है। महिलाएं अपने मांगे हुए बच्चे का मुंडन इसी स्थल पर होने वाले वार्षिक उर्स के मेले में करवाती हैं।
फारबिसगंज की धरोहर बना सुल्तान पोखर शहरवासी सुल्तान पोखर को फारबिसगंज की धरोहर मानते है। अंग्रेजी शासन काल में यहां रहने वाले अलेक्जेंडर जॉन फोर्ब्स नाम पर फोर्ब्सगंज पड़ा था, जिसे बाद में स्थानीय लोग फारबिसगंज कहने लगे। फारबिसगंज को अपनी जूट की मंडियों व सुल्तान पोखर की वजह से जाना जाता रहा है। एजे फोर्ब्स कर कचहरी व उनके मैनेजर का निवास लाल कोठी इसी पोखर के किनारे थे। इन दिनों सुल्तानी माई मंदिर की वजह से यह दोनों समुदायों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इस मंदिर के भीतर एक मजार है जहां एक ओर ¨हदू समुदाय के लोग पूजा-अर्चना करते हैं, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम अपने आस्था की इबादत करते हैं। कई बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं कि इस पवित्र स्थल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जब भी कोई बांझ औरत पोखर में स्नान कर के औलाद की मन्नत मांगती है तो वह अवश्य पूरी होती है।
नालों की गंदगी से दूषित हो रहा सुल्तान पोखर यह स्थान पर्यटन के मद्देनजर खास तो है, मगर आस-पास के मकानों से निकलने वाले नालों का गंदा पानी सीधा पोखर में ही गिरता है। इस दिशा में सरकारी पहल की आवश्यकता है। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और सरकारी राजस्व की बढ़ोतरी भी होगी।
क्या है सुल्तानी मंदिर का इतिहास जानकारों के अनुसार इस इलाके का मुस्लिम शासक सहबाजपुर की एक ¨हदू लड़की का धर्म परिवर्तन कर उससे शादी करना चाहता था। इसके लिए उसने लड़की के माता पिता को खबर भिजवाई। खबर पाने के बाद लड़की के पिता ¨चता में डूब गए। अपने पिता को ¨चतित देख लड़की ने उन्हें सुल्तान से शादी की हामी भर देने को कहा। मगर इसके लिए तीन शर्तें भी रख दी। इनमें से शादी के पहले धर्म परिवर्तन नहीं करने, शादी के पहले मुस्लिम रीति -रिवाज सीखने व पूनम की किसी रात पोखर में सुल्तान के साथ नौका पर झूमर खेलने की शर्त शामिल थी। सुल्तान को जैसे ही यह खबर मिली कि उसने सारी शर्तें मान ली। लेकिन पूनम की रात जैसे ही वह नौका बिहार के लिए नाव पर सवार हुई, सुल्तान भी उसमें सवार हो गया। नाव जैसे ही बीच में गयी कि कन्या ने पानी में छलांग लगा कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। यह घटना सुल्तान को मर्माहत कर गई और वह उसने प्रण किया कि अब वह किसी का जबरिया धर्म परिवर्तन नहीं करेगा। इसके बाद उसने कन्या को पोखर तट पर दफना कर उसकी मजार बना दी। तब से ही यह स्थान दो समुदायों के सामूहिक आस्था का प्रतीक बन हुआ है।
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