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Bihar News: एक स्कूल ऐसा भी, जहां उठक-बैठक करते पढ़ते हैं बच्चे, गाड़ियों को रास्ता दे फिर बैठ जाते हैं छात्र

Bihar News बैठे-बैठे अचानक उठ खड़े होते हैं फिर बैठ जाते हैं। यह प्रक्रिया कई बार हो जाती है। न...न...। उन्हें उठक-बैठक का कोई दंड नहीं मिला है न ही कोई व्यायाम कर रहे होते हैं। कोई गाड़ी आ जाती है तो रास्ता देने को उठना पड़ता है गाड़ी चली जाती है तो फिर बैठ जाते हैं। यह वर्षों से हो रहा है।

By SURENDRA PRASAD GUPTAEdited By: Sanjeev KumarUpdated: Wed, 06 Dec 2023 04:55 PM (IST)
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औरंगाबाद में उठक-बैठक करते पढ़ते हैं बच्चे (जागरण)
सुरेंद्र वैद्य, ओबरा (औरंगाबाद)। बैठे-बैठे अचानक उठ खड़े होते हैं, फिर बैठ जाते हैं। यह प्रक्रिया कई बार हो जाती है। न...न...। उन्हें उठक-बैठक का कोई दंड नहीं मिला है, न ही कोई व्यायाम कर रहे होते हैं। कोई गाड़ी आ जाती है तो रास्ता देने को उठना पड़ता है, गाड़ी चली जाती है तो फिर बैठ जाते हैं। यह वर्षों से हो रहा है।

ऐसा करने वाले बच्चे हैं, जो पढ़ाई के लिए स्कूल आते हैं। भवन नहीं है, सो सड़क पर ही बैठना पड़ता है। कोई गाड़ी आ जाती है तो उठना पड़ता है। पठन-पाठन का एक तरीका यह भी है। औरंगाबाद जिले के रफीगंज प्रखंड स्थित मध्य विद्यालय, मंझौली से यही व्यायाम करते-करते कितने ही बच्चे 20-22 वर्षों में आए-गए, पर उन्हें भवन के दर्शन नहीं हो सके।

इससे भी इन्कार नहीं कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए निरंतर आदेश-निर्देश जारी किए जा रहे हैं, शत-प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित की जा रही है। बच्चे विद्यालय नहीं आएं तो उनके नाम भी काटे जा रहे हैं, पर एक सच यह भी है कि बच्चे स्कूल कैसे आएं, जब आधारभूत संरचना तक नहीं हो।

और तो और, विभाग के अधिकारियों को यह पता भी नहीं कि इस तरह का भी कोई स्कूल है, लेकिन एक-एक स्कूल की निरीक्षण रिपोर्ट हर दिन कई स्तर पर दी जा रही है। इस स्कूल में कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई होती है। चूंकि एक ही कमरा है, सो जूनियर-सीनियर के बैठने के लिए व्यवस्था बना दी गई है।

वर्ग एक एवं दो के बच्चे सड़क पर बैठ कर पढ़ाई करते हैं। वर्ग तीन एवं चार के छात्र-छात्राओं के लिए बरामदा है। बाकी जो भी बचे, उनके लिए एक मात्र कमरा। पढ़ाई सड़क से लेकर एक मात्र कमरे तक में होती है, स्तर समझा जा सकता है।

ग्रामीण उदय सिंह, जय गोबिंद सिंह एवं यदुनंदन सिंह ने बताया कि यहां स्कूल के लिए गांव के ही केशव सिंह ने छह डिसमिल जमीन दी थी। स्थानीय ग्रामीण को बच्चों की शिक्षा की चिंता हुई, जमीन दे दी, पर व्यवस्था इतने वर्षों में एक भवन नहीं दे सकी। 1999 में स्कूल की स्वीकृति हुई।

अगले वर्ष उसी जमीन पर एक कमरा बनाना शुरू किया गया। पढ़ाई शुरू हो गई। स्कूल की जमीन मदार नदी के किनारे है, सो कुछ कटाव में कट गई। ग्रामीणों ने बताया कि अब भवन के लिए मिट्टी भराई करनी होगी। भवन ही नहीं है तो बच्चे यहां नामांकन भी नहीं कराते हैं। कुल नामांकित बच्चों की संख्या 140 है।

100-105 बच्चे नियमित आते हैं। वर्षा होती है तो छुट्टी दे दी जाती है। अब इसी संसाधन में मध्याह्न भोजन की भी व्यवस्था करनी पड़ती है। जो एक मात्र कमरा है, उसी में चावल और खाना बनाने के बर्तन आदि भी रखे जाते हैं। प्रधानाध्यापक अरबिंद कुमार ने बताया कि बरसात एवं गर्मी के दिनों में अधिक परेशानी होती है।

वर्षा होने पर बच्चों को छुट्टी दे जाती है, क्योंकि कहीं छिपने की भी जगह नहीं होती। बच्चों को पढ़ाने के लिए पांच शिक्षक हैं। वर्ग एक में आठ, दो में 14, तीन में 23, चार में 14, पांच में 20, छह में 25, सात एवं आठ में 29 छात्र-छात्राएं नामांकित हैं। पेयजल एवं शौचालय की सुविधा जरूर है।

औरंगाबाद के जिला शिक्षा पदाधिकारी संग्राम सिंह ने कहा कि विद्यालय के बारे में हमें जानकारी नहीं है। किसी अधिकारी ने भी इस विद्यालय के संबंध में जानकारी नहीं दी है। विद्यालय के विकास तथा भवन बनाने के लिए रुपये उपलब्ध हैं। इसकी जांच कराकर विद्यालय में भवन का निर्माण कराया जाएगा।

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