बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देवकुंड मंदिर एक प्राचीन और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण किया गया है जिससे यह और भी भव्य और आकर्षक हो गया है। मंदिर में दो शिवलिंग स्थापित हैं एक नीलम का और दूसरा काले पत्थर का। यहां साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। महाशिवरात्रि और सावन महीने में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है।
उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। अगर आप 2015 के पहले देवकुंड गए थे और वहां के अतिक्रमण और अनदेखी की जो छवि आपने मन में थी, वह अब पूरी तरह बदल चुकी है। जनसहयोग, मठ के अंशदान एवं पंचायत विकास निधि से प्राचीन मंदिर की विरासत को सहेजकर सुंदरीकरण का कार्य किया गया है।
परिसर में 2019 में ग्राम देवी की स्थापना के बाद से स्थानीय लोगों का जुड़ाव और बढ़ गया। मंदिर के आसपास से 70 वर्ष पुराना करकट और खपरैल की दुकानों का अतिक्रमण हटा दिया गया। इससे मंदिर परिसर निखर गया, अब इसकी भव्यता देखते बनती है।
बाबा दूधेश्वरनाथ के नाम से विख्यात यह मंदिर मगध क्षेत्र का प्रतिष्ठित शिवालय है। यहां दो शिवलिंग स्थापित हैं, एक नीलम का तो दूसरा सुंदरीकरण के क्रम में परिसर की खोदाई में निकला काले पत्थर का है। बड़ी बात यह कि मंदिर प्रबंधन शिवलिंग का प्रतिदिन रुद्राभिषेक कराता है।
रुद्राभिषेक के लिए सालोंभर श्रद्धालुओं का भी तांता लगा रहता है। सावन माह में लगभग दो सौ रुद्राभिषेक का आयोजन होता है। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने से हर मन्नत पूरी होती है। परिसर में बजरंगबली, पिंड स्वरूप ग्राम देवी व सतबहिनी माई, सूर्यदेव एवं राधे-कृष्ण मंदिर भी हैं।
बजरंगबली मंदिर में रामचरितमानस एवं सुंदरकांड का नियमित पाठ होता है। इन सभी कार्यों के लिए मंदिर प्रबंधन की ओर से सात पुरोहित नियुक्त हैं। आप यहां वर्ष में कभी भी दर्शन-पूजन को आ सकते हैं, माहौल उत्सवी व आस्था से ओतप्रोत मिलेगा।
पिंड स्वरूप ग्राम देवी के मंदिर के सामने लगा मां दुर्गे का चित्र।
देवकुंड की उष्मा पांच सौ वर्षों से कायम
यह स्थान औरंगाबाद व अरवल जिले की सीमा पर स्थित है। मान्यता है कि भगवान राम ने गयाजी में पिता राजा दशरथ के पिंडदान के पहले यहां भगवान शिव को स्थापित कर पूजा-अर्चना की थी। बाद में महर्षि च्यवन ने यहां वर्षों तप किया।पांच सौ वर्ष पूर्व बाबा बालपुरी ने महर्षि च्यवन के आश्रम में साधना की और हवन के बाद उसी कुंड में जीवित समाधि ले ली। तभी से कुंड में अग्नि की उष्मा कायम है। यहां प्रतिदिन हवन नहीं होता, परंतु राख की ढेर कुरेदने पर उष्मा का अहसास होता है और धूप डालने पर अग्नि प्रज्वलित हो जाती है।
यह दृश्य चमत्कृत करता है और विज्ञान के लिए चुनौती भी है। कुंड के बगल में ही महर्षि च्यवन की प्रतिमा स्थापित है और बाबा बालपुरी का आसन रखा है, जिसपर बैठकर उन्होंने साधना की थी।
2015 से शुरू हुआ जीर्णोद्धार व सुंदरीकरण
आप देवकुंड मंदिर की प्राचीनता के साथ आधुनिक निर्माण और उसकी भव्यता को देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते हैं। वर्ष 2015 से यहां का जीर्णोद्धार व सुंदरीकरण प्रारंभ हुआ। प्राचीन शिव मंदिर को छोड़कर चारों ओर नवनिर्माण किए गए हैं।
यहां के महंत कन्हैयानंद पुरी बताते हैं कि 2015 में भव्य प्रवेश द्वार का निर्माण किया गया। वर्ष 2016 में मंदिर परिसर में राधा-कृष्ण का नया मंदिर बनाया गया, जिसमें मकराना के सफेद संगमरमर की प्रतिमा लगी है। मंदिर परिसर की खोदाई कर विशाल आंगन का निर्माण किया गया।इसी क्रम में काले पत्थर का प्राचीन शिवलिंग निकला, इसकी भी प्राण प्रतिष्ठा की गई। अब श्रद्धालु नीलम के पुराने शिवलिंग के साथ इनकी भी पूजा अर्चना करते हैं। 2019 में ग्राम देवी का मंदिर बनाया गया। पिंड स्वरूप में सतबहिनी माई पहले से स्थापित थीं।
ग्राम देवी की प्राण प्रतिष्ठा के लिए यज्ञ का आयोजन किया गया। वर्ष 2023 में तत्कालीन डीडीसी की पहल पर मंदिर के चारों ओर लगभग 15 हजार वर्ग फीट में पेवर ब्लाक लगाए गए। इसी वर्ष मुखिया सत्येंद्र यादव ने पंचायत निधि से लगभग 10 हजार वर्गफीट में पेवर ब्लाक मंदिर के सामने बिछवाए।अब जिला परिषद सदस्य चंदा परवीन, शोभा देवी एवं नागेंद्र यादव के साथ जिला परिषद की अध्यक्ष प्रमिला देवी ने मंदिर परिसर के शेष बचे हिस्से में पेवर ब्लाक बिछाने को विकास निधि से पांच-पांच लाख रुपये दिए हैं। कुल 20 लाख की लागत से शीघ्र ही यह कार्य शुरू होगा।
पूरे वर्ष होते हैं धार्मिक आयोजन व अनुष्ठान
मठ (आश्रम) की ओर से संचालित देवकुंड में पूरे वर्ष कई धार्मिक आयोजन व अनुष्ठान किए जाते हैं। फागुन मास में महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की झांकी और बरात निकाली जाती है।जिसमें 20 से 25 हजार श्रद्धालु शामिल होते हैं। वहीं मंदिर में दर्शन करने लगभग एक लाख लोग आते हैं। बरात में शामिल श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद स्वरूप भोजन की व्यवस्था आश्रम की ओर से की जाती है।
श्रावण मास में रविवार की रात और सोमवार को दिन में लंगर चलता है। इसमें सात से दस हजार लोग प्रसाद रूपी भोजन ग्रहण करते हैं।छठ के अवसर पर प्रकाश, सफाई और पानी की व्यवस्था आश्रम की ओर से की जाती है ताकि लोगों को समस्या ना हो।
देवकुंड जाने के हैं छह रास्ते
देवकुंड औरंगाबाद के गोह प्रखंड में स्थित है। दाउदनगर-गया स्टेट हाईवे 120 और पटना औरंगाबाद नेशनल हाईवे-139 से यहां तक पहुंचने के छह रास्ते हैं। दाउदनगर-गया रोड स्थित पचरुखिया से हसपुरा से त्रिसंकट मोड़ होते हुए लगभग नौ किलोमीटर की दूरी है।
यह रास्ता उबड़-खाब़ड़ है। इसके निर्माण की मांग पुरानी है। हसपुरा से दूसरा रास्ता पीरु होकर पहुंचता है, जो 12 किलोमीटर लंबा है। दाउदनगर-गया स्टेट हाईवे पर स्थित देवहरा से भी एक राह देवकुंड जाती है। मलहरा से होते हुए लगभग बारह किलोमीटर की दूरी है।गोह से उपहारा होते हुए दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। एनएच 139 पर स्थित मेहंदिया से दूरी 12 किलोमीटर है। यह रास्ता रामपुर चाय होकर जाता है। वहीं छठा रास्ता शहर तेलपा से है, यहां से मंदिर की दूरी मात्र छह किलोमीटर है।
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