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Chhath Puja 2024: बिहार में 9 लाख साल पुराना सूर्यमंदिर! छठ पर्व से जुड़ी आस्था आपको भी कर देगी हैरान

देव सूर्य मंदिर बिहार में स्थित एक प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर करीब 9 लाख 49 हजार 131 वर्ष पुराना माना जाता है। कहते हैं कि इसे त्रेतायुग में भगवान विश्वकर्मा ने बनाया था। इस मंदिर के बारे में कई रोचक बातें हैं जैसे कि यह कई बार भूकंप आने के बावजूद भी अडिग रहा है और इसकी प्रतिमा जीवंत मानी जाती है।

By Manish Kumar Edited By: Yogesh Sahu Updated: Thu, 07 Nov 2024 02:01 PM (IST)
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देव कार्तिक छठ महापर्व पर विशेष व्यवस्थाएं सूर्यमंदिर में आने वाले भक्तों के लिए की जाती हैं।
मनीष कुमार, औरंगाबाद। देव का सूर्य मंदिर देश ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्ध है। सूर्यमंदिर के मुख्य द्वार पर लगे शिलालेख के अनुसार, यह करीब 9 लाख 49 हजार 131वर्ष पुराना है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण त्रेतायुग में भगवान विश्वकर्मा ने किया था।

हालांकि, वास्तुकार इसका निर्माण काल गुप्तकालीन बताते हैं। एएसआई इसे पांचवीं से छठी शताब्दी के बीच का बताता है। कुछ इतिहासकार बताते हैं कि त्रेतायुग में इला के पुत्र ऐल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर के निर्माण से संबंधित शिलालेख मंदिर परिसर में प्रवेश द्वार पर दाहिने तरफ लगा है।

सूर्यमंदिर के शिलालेख पर क्या लिखा है, क्या है काल गणना?

  • सूर्य मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार, माघ मास शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि गुरुवार को इला के पुत्र ऐल ने त्रेतायुग में मंदिर का निर्माण कराया था।
  • त्रेतायुग के 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद सूर्यमंदिर का शिलान्यास किया गया था।
  • शिलालेख के अनुसार त्रेतायुग कुल 12 लाख 86 हजार वर्ष का होता है। इसमें से 12 लाख 16 हजार वर्ष घटा देने पर 80 हजार वर्ष शेष रह जाते हैं।
  • त्रेतायुग के बाद द्वापरयुग आता है। द्वापर आठ लाख 64 हजार वर्ष का था। वर्तमान कलियुग के भी 6128 वर्ष बीत चुके हैं।
  • इस प्रकार वर्तमान संवत 2080 को सूर्य मंदिर के बने करीब 9 लाख 49 हजार 131 वर्ष हो चुके हैं।

कई बार भूंकप के झटके से भी नहीं बिगड़ा मंदिर का संतुलन

जानकारी के अनुसार, कई बार भूकंप आने के बावजूद मंदिर का संतुलन नहीं गड़बड़ाया है। मंदिर का गुबंद इस तरह का बनाया गया है कि उस पर कोई चढ़ नहीं सकता है। मंदिर के बारे में जानने वाले लोग कहते हैं कि मंदिर में विद्यमान तीन स्वरूपी भगवान सूर्य की प्रतिमा जीवंत है।

प्रतिमा के सामने श्रद्धालु खड़े होकर जो मांगते हैं, वह मन्नत पूरी होती है। मंदिर परिसर में भगवान सूर्य के अलावा कई देवी-देवताओं की प्रतिमा दर्शनीय और लाभकारी है। यह मंदिर बिहार ही नहीं; देश की पौराणिक विरासत है।

विश्‍व धरोहर में शामिल करने की है जरूरत

देव सूर्यमंदिर को विश्‍व विरासत में शामिल करने की जरूरत है। संरक्षण के अभाव में मंदिर का पत्थर टूटकर गिर रहा है। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य द्वार के बिंब में दरार है। प्रवेश द्वार के ऊपर पत्थर दरक गया है।

जानकारों के अनुसार, अगर एक भी पत्थर का संतुलन बिगड़ा तो मंदिर को काफी नुकसान हो सकता है। वर्तमान में मंदिर बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन है। बोर्ड के द्वारा मंदिर के रखरखाव एवं देखरेख के लिए मंदिर न्याय समिति का गठन कर उसके अधीन दिया गया है।

केमिकल पेंट से मंदिर को नुकसान

बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल जब इस मंदिर का निरीक्षण करने पहुंचे थे, तब उन्होंने मंदिर परिसर में सीमेंट के बनाए गए स्ट्रक्चर का विरोध किया था। मंदिर के पत्थर पर किए गए केमिकल पेंट को भी मंदिर के लिए नुकसान बताया था।

हालांकि, पूर्व अध्यक्ष के आदेश पर आज तक अमल नहीं किया गया है। वर्तमान में मंदिर की सुरक्षा को लेकर पत्थरों में किसी भी तरह की कील लगाने पर कमेटी के द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है।

हर वर्ष 15 लाख से अधिक श्रद्धालु-पर्यटक पहुंचते हैं यहां

देव सूर्यमंदिर को देखने और दर्शन करने हर वर्ष 15 लाख से अधिक श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं। छठ मेले में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर नई दिल्ली से कोलकाता को जाने वाली जीटी रोड से करीब 6 किमी दूर है।

क्या कहते हैं भारतीय संग्रहालय संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष

देव सूर्यमंदिर पौराणिक है। यहां भगवान सूर्य सविता स्वरूप में हैं। देव सूर्यमंदिर के आठों दिशाओं में अलग-अलग स्वरूप में सूर्यमंदिर है। यह सूर्यक्षेत्र माना जाता है। 16वीं शताब्दी में राजा भैववेंद्र ने इस सूर्यमंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। - आनंद वर्द्धन, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भारतीय संग्रहालय संघ

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख-फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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