Move to Jagran APP

डूबते को तिनके की जगह सुदामा का सहारा, छठ पर लगती है विशेष ड्यूटी; 100 से अधिक लोगों की बचाई जिंदगी

Aurangabad News आपने कहावत सुनी होगी कि डूबते को तिनके का सहारा लेकिन बिहार के औरंगाबाद में डूबते हुए को सुदामा सहारा दे रहे हैं। सुदामा तालाब या नदी से डूबते हुए को बचाने के साथ-साथ शव निकालने का काम भी करते हैं। देव में सुदामा कार्तिक एवं चैती छठ मेला के दौरान 24 घंटे लाइफ जैकेट पहनकर घाट पर मौजूद रहते हैं।

By Manish KumarEdited By: Aysha SheikhUpdated: Tue, 14 Nov 2023 02:57 PM (IST)
Hero Image
डूबते को तिनके की जगह सुदामा का सहारा, छठ पर लगती है विशेष ड्यूटी
मनीष कुमार, औरंगाबाद। देव भगवान सूर्य की नगरी है। यहां कार्तिक और चैत्र मास में देश प्रसिद्ध छठ व्रत का मेला लगता है। देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने आते हैं और पौराणिक तालाब में अर्घ्य देते हैं।

यहां आने वाले श्रद्धालु जो तालाब में डूबने लगते हैं उनके लिए और इलाके के लोगों के लिए सुदामा प्रताप सिंह भगवान का स्वरूप हैं। देव प्रखंड के सूदी बिगहा गांव निवासी सुदामा तालाब (सूर्यकुंड), इसके बगल में स्थित तालाब (रुद्रकुंड) के अलावा इलाके के तालाब, आहर और कुओं में डूबते लोगों का सहारा हैं।

सुदामा देव तालाब से लेकर आसपास के आहर, पोखर एवं कुओं में डूब रहे करीब 100 से अधिक लोगों को मौत के मुंह से बाहर खिंच लाए हैं। सूर्यकुंड तालाब, आहर, पोखर एवं कुओं से करीब 50 से अधिक शवों को बाहर निकाल चुके हैं। इस कार्य से उन्हें परिवार का उलाहना झेलनी पड़ती है, फिर भी लोगों की जिंदगी बचाने का ऐसा जुनून है कि तुरंत गहरे पानी में भी कूदने से डरते नहीं हैं।

देव में कार्तिक एवं चैती छठ मेला के दौरान 24 घंटे लाइफ जैकेट पहनकर घाट पर मौजूद रहते हैं। तालाब की रखवाली भी करते हैं। मोबाइल पर सूचना के बाद कहीं भी लोगों की जिंदगी बचाने से लेकर शव निकालने के लिए दौड़ पड़ते हैं।

गांव की आहर और देव तालाब में सीखी तैराकी

सुदामा कहते हैं कि वे तैराकी का प्रशिक्षण गांव के बढ़का आहर और देव तालाब में लिया है। हालांकि उन्हें अभी तक तैराकी के प्रशिक्षण का कोई प्रमाण पत्र नहीं मिला है, पर स्थानीय अंचलाधिकारी, थाना की पुलिस और आपदा के पदाधिकारियों को जब भी जरूरत पड़ी है वे डूबते लोगों को जान बचाने से लेकर डूबे लोगों का शव बाहर निकालने का काम किया हैं। इन सभी अधिकारियों के पास मेरा मोबाइल नंबर है।

तालाब में डूबते हुए लोगों को देख बचाने की आई भावना

सुदामा कहते हें कि वे वर्ष 2009 से लोगों की जीवन बचाने का काम कर रहे हैं। देव तालाब में आत्महत्या करने की नियत से या स्नान करने के दौरान डूबते महिलाओं और बच्चों को देखकर और उनके परिवार को घाट पर तड़पते देख जिंदगी बचाने की भावना जगी।

सबसे पहला जिदंगी वे चांदपुर गांव की एक महिला को देव तालाब में डूबते बचाया। पतोहु से झगड़ा कर सास देव पहुंची और तालाब में आत्महत्या करने की नियत से कूद पड़ी तब वे वहां मौजूद थे। भीड़ के द्वारा उनसे जान बचाने का आग्रह किया गया और वे तालाब में बिना विलंब किए कूद पड़े तब वे लाइफ जैकैट भी नहीं पहने थे।

पानी में डूबते जिंदगी को बचाने में अपनी जिंदगी भी बचानी होती है और वे महिला की जान बचा ली। बताया कि इस महिला को बचाने में उन्होंने अपनी जान भी दाव पर लगा दी थी। इसके अलावा कई जिलों के लोगों को देव तालाब में डूबने से बचाने का काम किए हैं।

वर्तमान में मंदिर न्यास समिति से मिल रहा पैसा

सुदामा कहते हैं कि वर्तमान में इस माह से देव सूर्यमंदिर न्यास समिति से हर माह करीब पांच छह हजार मानदेय के रुप में मिलने की बात कही गई है। बताया कि इतनी कम रुपये से आजीविका नहीं चल पाएगी।

वे अबतक जिनकी जिंदगी बचाने का काम किए हैं वे या उनके परिवार जब भी देव मंदिर दर्शन करने आते हैं उनसे मिलते हैं और कुछ नगदी देकर जाते हैं। इन परिवारों के सामने जब खड़ा होते है तो पहले प्रणाम करते हैं।

कहते हैं जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी

जिला आपदा प्रबंधन पदाधिकारी मणिकांत ने कहा कि सुदामा रियल में डूबते लोगों की जिदंगी हैं। कई लोगों के जीवन को बचाने और कई शवों को निकालने का काम किए हैं। इनका अपने विभाग में रखने के लिए राज्य सरकार के पास अनुशंसा भेजी गई है। थानाध्यक्ष राजगृह प्रसाद कहते हैं कि सुदामा पुलिस के लिए भी डूबते लोगों को बचाने और शव निकालने में मददगार बनते हैं।

ये भी पढ़ें -

वर्ल्ड कप वाला काली पूजा पंडाल, साइड पर्दे पर Rohit-Kohli; भक्त मां से करेंगे भारतीय टीम के विजयी होने की कामना

बिहार में बदमाशों की दबंगई बढ़ी, पटाखा फोड़ने का विरोध करने पर चला दी गोलियां

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।