136 वर्ष में बहुत बदल गया दाउदनगर शहर का मन-मिजाज
आज दाउदनगर शहर 136 साल का हो गया। 10 फरवरी 1885 को नगर पालिका बना था। आज इसका मन-मिजाज काफी बदल गया है।
By JagranEdited By: Updated: Tue, 09 Feb 2021 04:36 PM (IST)
दाउदनगर (औरंगाबाद): आज दाउदनगर शहर 136 साल का हो गया। 10 फरवरी 1885 को नगर पालिका बना था। इसके पहले तक वह चट्टी के रूप में मशहूर था। इलाके में कहावत है-जग में जगदीशपुर, शहर में सहसराम। चट्टी में दाउदनगर, बक्सर में डुमरांव।
नगर बनने से पहले जब दाउदनगर चट्टी था, तो महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र हुआ करता था। इसकी आत्मा में व्यवसाय बस्ती थी। बनिया मिजाज था। लंबी यात्रा में शहर का मन मिजाज सब कुछ बहुत हद तक बदल गया। यहां कन्या मध्य विद्यालय की प्रधानाध्यापक रहीं (अब सेवानिवृत्त) निर्मला गुप्ता कहती हैं कि- 'जब वे इस शहर में नौकरी ज्वाइन करने आई थीं, तो उन्हें यह कहा गया था कि बनिया मिजाज का शहर है, कोई समस्या नहीं होगी।' हालांकि अब ऐसा कोई दावे के साथ नहीं कर सकता, इतना मन बदल गया है। नगर बनाए जाने के पीछे भी मन मिजाज बिगड़ा होना ही एक प्रमुख कारण था। 'श्रमण संस्कृति का वाहक दाउदनगर' में लिखा गया है कि दाऊद खान के वंशज डोमन खां के वक्त इस कस्बे के व्यापारी सुरक्षा को लेकर काफी परेशान थे। धार्मिक, सामाजिक, व्यापारिक स्वतंत्रता संकुचित हो गई थी। पीड़ा पहुंचाने की स्थिति बनी। तब यहां से चार लोगों ने ब्रिटिश हुकूमत के सामने शहर बनाने का प्रस्ताव रखा। तब से अब तक काफी उतार चढ़ाव देखा है। शहर के इतिहास को बताने वाली किताब के अनुसार चावल बाजार निवासी कसौधन बनिया पुरुषोत्तम दास, बजाजा रोड निवासी कसौधन बनिया राम चरण साव, केसरी जाति के हुसैनी साव एवं अग्रवाल जाति के बाबू जवाहिर मल ने पहल की और इसे शहर का दर्जा मिला। चारों ने एक आवेदन ब्रिटिश सरकार में भाया कलेक्टर गवर्नर को दिया और दरख्वास्त की। अत्याचार से मुक्ति का रास्ता निकाला जाए।
इसके बाद अक्टूबर 1884 में प्रारूप का प्रकाशन हुआ, अर्थात इस शहर का क्षेत्रफल क्या है, उसकी चौहद्दी क्या है, आबादी कितनी है, सुविधाएं कौन-कौन सी है। दावा-आपत्ति की मांग हुई और फिर तमाम तरह की कानूनी प्रक्रिया पूरी की गईं। इसके बाद 10 फरवरी 1885 को यह चट्टी नगरपालिका घोषित कर दिया गया। नगर पालिका फिर वर्ष 2002 में नगर पंचायत की यात्रा पूरी कर वर्ष 2018 में नगर परिषद बन गया है। कौन थे-रामचरण, पुरुषोत्तम, हुसैनी व जवाहर
भाया कलेक्टर गवर्नर तक चट्टी को नगर बनाने की मांग करने वाले शहर के चारों व्यवसायियों का वह शहर ऋणी है, जो गर्व के साथ कहता है कि हम 1885 के नगरपालिका हैं। रामचरण साव के पूर्वज रोहतास जिले के नासरीगंज थाना अंतर्गतअमियावर गांव से यहां आए थे। बजाजा रोड में उनकी किराने की दुकान थी। 52 जोड़ी दरवाजे के मकान में परिवार को सोने भर की जगह नसीब नहीं होती थी। इतना किराना सामान भरा हुआ रहता था। शहर के लिए जाति के संदर्भ में थे अल्पसंख्यक, लेकिन उनका दबदबा था। उनके पिता ने अमियावर की सारी संपत्ति ब्राह्मणों को दान कर दी थी। पुरुषोत्तम दास संपन्न व्यक्ति थे। उनके पास खेतिहर और आवासीय जमीन पर्याप्त थी। साधु प्रवृत्ति के थे। हुसैनी साव की बजाजा रोड में किराने की दुकान हुआ करती था। इनके पिता का नाम तुलसी साव था। इसी दुकान में जड़ी-बूटी बेचा करते थे। माथे पर मुरेठा बांधना कभी नहीं भूलते। उन्हीं के नाम पर शहर का हुसैनी बाजार या हुसैनी मोहल्ला है। बाबू जवाहर मल जाति के अग्रवाल थे। शहर के मुख्य हिस्से में जमीन काफी थी। उनके दो पुत्र थे। एक बीजू बाबू के नाम पर शहर में 'बीजू बाबू की पट्टी' काफी मशहूर थी।
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