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Bihar News: तसर कीट पालन कर आत्मनिर्भरता की कहानी लिख रही ये आदिवासी महिलाएं, कृषि विज्ञानियों को भी दे रहीं प्रशिक्षण

बिहार के बांका में जिले के अंतिम छोर पर स्थित जयपुर थाना क्षेत्र की गाय बकरी चराने वाली आदिवासी महिलाएं तसर कीट पालन कर आत्मनिर्भर बन रही है। चौका-बर्तन करने वाली ये आदिवासी महिलाएं माइक्रोस्कोपिक लैब चलाने में भी माहिर हो गई हैं। तभी तो इन महिलाओं से उन्नत तसर कीट पालन का प्रशिक्षण लेने के लिए आ चुके हैं।

By Anil kumar sharmaEdited By: Mohit TripathiUpdated: Wed, 15 Nov 2023 05:50 PM (IST)
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बिजागार में अंडा तैयार करती आदिवासी महिलाएं। (जागरण फोटो)
संवाद सूत्र, जयपुर (बांका)। बांका जिले के अंतिम छोर पर बसे जयपुर थाना क्षेत्र की गाय, बकरी चराने वाली आदिवासी महिलाएं तसर कीट पालन कर आत्मनिर्भर बन रही है।

चौका-बर्तन करने वाली ये आदिवासी महिलाएं माइक्रोस्कोपिक लैब चलाने में भी माहिर हो गई हैं। तभी तो इन महिलाओं से उन्नत तसर कीट पालन का प्रशिक्षण लेने के लिए महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा सहित छत्तीसगढ़, झारखंड सहित कई राज्यों के कृषि विज्ञानी जयपुर आ चुके हैं।

पहले आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक तरीके से जंगलों में जैसे-तैसे तो तसर कीट पालन कर रहे थे। 2002-03 में गांव की आदिवासी महिलाओं ने तसर विकास समिति का गठन कर विज्ञानी तरीके से तसर पालन व्यवसाय की शुरुआत की थी। जिसमें अत्याधुनिक कृषि पद्धति के साथ विज्ञानी सहायता प्रदान करने में प्रदान संस्था सहायक बनी थी।

अब पूरे क्षेत्र में दो हजार महिलाएं 50 से ऊपर समूहों का निर्माण कर तसर पालन का काम कर रही है। बौंसी कटोरिया चांदन मिलाकर लगभग एक हजार हैकटेयर जमीन पर तसर उत्पादन कर एक-एक महिलाएं सालाना न्यूनतम 25 से 50 हजार कमा रही है।

पहले मानी जाती थी अछूत, अब बन गईं प्रधान

माइक्रोस्कोपिक लैब टेक्नीशियन इननरमा देवी, फूल कुमारी टुडू, फूलन देवी, रानी हांसदा एवं सुन्नी कुमार इसमें महारत हासिल है। वो बताती है कि पहले पारंपरिक तरीके से जंगलों में तसर कीट पालन के लिए महिलाओं को अछूत माना जाता था।

लोग कहते थे कि महिलाओं के संपर्क में कीड़े आ जाएं, तो उसमें नपुंसकता आ जाएगी। हालांकि, अब गांव की आदिवासी महिलाएं इस रोजगार की प्रधान बन गई है। तसर उत्पादन के क्षेत्र में अंडा तैयार करने से लेकर माइक्रोस्कोपिक लैब जांच भी वो खुद करने में सक्षम है।

आसन और अर्जुन इस व्यवसाय की है रीढ़

तसर कीट पालन के लिए आसन का पौधा सबसे बेहतरीन माना जाता है। इसके बड़े-बड़े पत्ते खाकर पले-बढ़े कीट ए ग्रेड का कोकून तैयार करते हैं।

आसन का पत्ता आसानी से उपलब्ध नहीं होने के कारण अब क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अर्जुन पौधे का प्लांटेशन लगाया गया है। तसर कीट पालन व्यवसाय वन पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ रोजगार का भी एक बड़ा आधार बन गया है।

क्या कहती हैं सेल्फ हेल्प ग्रुप की टीम लीडर

सेल्फ हेल्प ग्रुप महिला आदिवासी टीम लीडर सुषमा हेंब्रम ने बताया कि अब गांव की महिलाएं सिर्फ विज्ञानी नहीं, बल्कि डॉक्टर भी हैं। घर में पाले जाने भेड़ बकरी गाय शुअर मुर्गी आदि का उपचार वह खुद सुई लगाकर करती हैं।

उन्होंने बताया कि आदिवासी समुदाय में अब शिक्षा को सर्वोपरि माना जा रहा है। उन्होंने मुखिया का चुनाव लड़ने के दौरान शराब के खिलाफ मुहिम छेड़ रखा था। इसलिए शनिवार से इनका बेटा वीरेंद्र उत्तराखंड में निर्माणाधीन सुरंग में फंसा हुआ है। जिसको लेकर उनका पूरा परिवार अभी व्याकुल है।

आदिवासी महिलाएं समूह में जुड़कर कई प्रकार की खेती कर आत्मनिर्भर बन रही है। जिसमें मधुमक्खी पालन, तसर कीट पालन, मुर्गी पालन, बकरी पालन एवं मशरुम की खेती आदिवासी महिलाओं के लिए वरदान साबित हुआ है।

सुषमा हेंब्रम सेल्फ हेल्प ग्रुप, टीम लीडर तेतरीया

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