बरौनी जंक्शन पर वेंडर तय करते हैं किस प्लेटफॉर्म पर रूकेगी ट्रेन, स्टेशन मास्टर की भी मिलीभगत; पढ़ें पूरा मामला
बरौनी जंक्शन में स्टाॅल संचालक एवं वेंडर स्टेशन मास्टर की मिलीभगत से ट्रेनों को अपनी सुविधा के हिसाब से प्लेटफार्म पर ठहराव सुनिश्चित कराते हैं ताकि अन्य प्लेटफार्म की अपेक्षा उनकी बिक्री अधिक हो और वे ज्यादा कमाई कर सकें। इसके लिए स्टेशन मास्टर को नजराने के तौर पर चाय पान लस्सी और नाश्ता उपलब्ध कराई जाती है। यह खेल सालों से चल रहा है।
मनोज कुमार, बरौनी (बेगूसराय)। बात सुनने में बड़ी अजीब सी लगती है कि बरौनी जंक्शन का प्लेटफार्म चाय, पान, लस्सी और नाश्ता पर स्टाॅल संचालक और वेंडर खरीदते हैं। परंतु, है बिल्कुल सच। विशेष परिस्थितियों को छोड़, प्रत्येक अप एवं डाउन ट्रेनों के आगमन का प्लेटफार्म निर्धारित रहता है। यात्री उसी हिसाब से पूर्व से ही संबंधित प्लेटफार्म पर ट्रेनों के आगमन का इंतजार करते हैं, परंतु बरौनी जंक्शन के मामले में बात थोड़ी अलग है।
वेंडर तय करते हैं किस प्लेटाफॉर्म पर आएगी गाड़ी
यहां स्टाॅल संचालक एवं वेंडर स्टेशन मास्टर की मिलीभगत से ट्रेनों को अपनी सुविधा के हिसाब से प्लेटफार्म पर ठहराव सुनिश्चित कराते हैं। ताकि अन्य प्लेटफार्म की अपेक्षा उनकी बिक्री अधिक हो और वे ज्यादा कमाई कर सकें।इसके लिए स्टेशन मास्टर को नजराने के तौर पर चाय, पान, लस्सी और नाश्ता उपलब्ध कराई जाती है। इस खेल की जानकारी वरीय मंडल परिचालन प्रबंधक, सोनपुर को भी है। बावजूद इसके कार्रवाई नहीं होना आश्चर्य से कम नहीं है। महत्वपूर्ण बात, कि यह खेल वर्षों से चल रहा है। प्लेटफार्म संख्या पांच और छह के स्टाल संचालक एवं वेंडर इससे सर्वाधिक प्रभावित हैं।
घंटों प्लेटफार्म पर ही खड़ी रखी जाती है ट्रेन
खासकर प्लेटफार्म संख्या पांच-छह के स्टाॅल संचालकों, वेंडरों के साथ बरौनी जंक्शन स्टेशन प्रबंधन का रवैया सौतेलेपन वाला है। बर्थिंग चार्ट के मुताबिक, प्लेटफार्म संख्या पांच एवं छह पर अप जनसेवा एक्सप्रेस, अप अवध-असम एक्सप्रेस, डाउन हटिया-गोरखपुर मौर्या एक्सप्रेस, डाउन पूर्वांचल एक्सप्रेस, विकली ट्रेनें सहित अन्य ट्रेनों का ठहराव है।
बावजूद इसके, अहमदाबाद से बरौनी जंक्शन, गोंदिया-बरौनी जंक्शन एक्सप्रेस ट्रेन को वाशिंग पिट पर भेजने की बजाय उसे प्लेटफार्म संख्या पांच-छह पर घंटों लगाकर छोड़ दी जाती है। इससे उक्त प्लेटफार्म के स्टाॅल संचालकों एवं वेंडरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
अब चूंकि उक्त टै्रक पर रनिंग ट्रेन आएगी ही नहीं, तो वेंडरों की बिक्री होगी कैसे। सबसे बड़ी बात, कि इन्हीं खाद्य सामग्री को बेचकर उन्हें स्टाल का किराया भी रेलवे को भुगतान करना होता है। बिक्री नहीं होने पर किराया जमा करने में इन वेंडरों के पसीने छूटते हैं।
इसकी शिकायत स्थानीय पदाधिकारियों से कई बार की गई, लेकिन कोई सुधार नहीं हो रहा है। आक्रोशित स्टाल संचालक एवं वेंडर अब गोलबंद हो रहे हैं। समय रहते यदि इसमें सुधार नहीं किया गया तो स्थानीय अधिकारियों के इस रवैए से वेंडरों का आक्रोश कभी भी फूट सकता है।
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