Begusarai News बेगूसराय के कावर झील पक्षी विहार में 36 वर्ष से विवाद चल रहा है। 1986 में 15780 एकड़ भूमि पर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत सुरक्षित किया गया लेकिन रैयतों को अपनी जमीन बेचने की अनुमति नहीं है। मामला और उलझ गया है एसडीएम मंझौल द्वारा दो अलग-अलग नोटिस जारी करने से। लोग अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।
बलबंत चौधरी, छौड़ाही (बेगूसराय)। कावर झील पक्षी विहार अपने स्थापना काल यानी विगत 36 वर्ष से विवाद में उलझी हुई है। कावर परिक्षेत्र में बसे लोगों के घर की जमीन तक की खरीद बिक्री नहीं हो पा रही है। एसडीएम मंझौल द्वारा नौ वर्ष में दो अलग तरह के नोटिस किसानों को जारी करने से मामला और उलझा है। लोग अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।
विशेष भूमि सर्वेक्षण में रैयतों को शामिल नहीं करने से मामला गंभीर हो गया है। रैयत के बदले वन भूमि विभाग का नाम अंकित होने से किसान मंझौल व बखरी अनुमंडल क्षेत्र के सैकड़ों रैयत धरना प्रदर्शन कर किसी भी कीमत पर भूमि नहीं छोड़ने की बात कर रहे हैं। सर्वे में वन विभाग का नाम कैसे अंकित किया सकता है। कागजात तो सरकार के अभिलेखागार में है। उसे प्रशासन रैयतों को उपलब्ध आसानी से करवा सभी मामले सुलझा सकता है।
क्या है कावर भूमि विवाद : रैयत दस्तावेजी साक्ष्य दिखाते हुए बताते हैं कि 1986 में बेगूसराय जिला प्रशासन द्वारा कावर के 5467.76 हेक्टेयर यानी 15780 एकड़ भूमि पर विसंगति पूर्ण गजट कर उसे सुरक्षित कर दिया गया। आपत्ति दर्ज कराने का समय कम दिए जाने तथा जानकारी नहीं रहने के कारण 90 प्रतिशत रैयत अपनी आपत्ति दर्ज नहीं करवा पाए।
20 फरवरी 1986 में जिला गजट तथा 20 जून 1989 में राज्य गजट में 15780 एकड़ भूमि को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 18 के तहत सुरक्षित कर दिया गया। इस धारा के अंतर्गत किसानों द्वारा खेतों में रासायनिक उर्वरक एवं दवा, पंप सेट के उपयोग, खर पतवार जलाने, सूखा जलावन घर ले जाने तथा मजदूरों को खेत पर ले जाने पर रोक लगा दी गई। 2018 में रैयतों को बिना मौका दिए हुए अनुमंडल न्यायालय से सभी रजातों का दावा खारिज कर दिया गया।
मंझौल और बखरी अनुमंडल में है भूमि : मंझौल अनुमंडल क्षेत्र के राजस्व ग्राम मंझौल के 1386.48 हेक्टेयर, जयमंगलपुर के 420.48, जयमंगलागढ़ के 38.45, श्रीपुर एकंबा के 3055.04, परोड़ा के 64.35, नारायणपीपर के 574.67, मणिकपुर के 117.36 हेक्टेयर, बखरी अनुमंडल क्षेत्र के राजस्व ग्राम सकड़ा के 119.38, रजौड़ के 429.79, कनौसी के 105.63 कुल 6311.63 हेक्टेयर (15780 एकड़ , 21 हजार वीघा) भूमि संरक्षित किया गया।
5095 एकड़ है गैरमजरूआ भूमि : एक अक्टूबर 2008 को पूर्णिया के वन संरक्षक सीपी खंडूजा ने अपर प्रधान मुख्य संरक्षक बिहार को लिखा कि 15780 एकड़ के संरक्षित क्षेत्र में एक अंश भी वन नहीं है। अधिसूचित क्षेत्र में से 5095 एकड़ गैर मजरुआ भूमि है, लेकिन उसमें से अधिकांश की बंदोबस्ती हो चुकी है। 15780 एकड़ भूमि में से अधिकतम तीन हजार एकड़ में ही पानी रहता है। बांकी भूमि पर सालों भर किसान खेती करते हैं।
भूमि खरीदने बेचने पर है रोक : पांच जनवरी 2013 को बेगूसराय डीएम मनोज कुमार ने वर्ष 1989 के बाद कावर परिक्षेत्र में किए गए सभी जमीन रजिस्ट्री को खारिज करते हुए भूमि की खरीद-बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। जिस अधिनियम के कारण जमीन खरीद बिक्री पर रोक लगी उसके तहत संरक्षित क्षेत्र में कुछ नहीं किया जा सकता है। देश में कहीं भी इतने बड़े भूभाग पर विसंगतिपूर्ण गजट नहीं किया गया। रैयत सरकार को 118 साल से मालगुजारी भी दे रहे हैं।
दो नोटिस में उलझा है मामला : रैयत अनुमंडल अधिकारी मंझौल द्वारा जारी दो अलग-अलग नोटिस दिखाते हुए बताते हैं कि 16-07-2012 को जारी नोटिस में कावर पक्षी विहार के लिए अधिग्रहित की गई उनकी भूमि के मुआवजा के लिए आवेदन दावा समर्पित करने को कहा गया। सभी दस्तावेज उपलब्ध करा दिए गए, कोई कार्रवाई नहीं हुई। फिर 27-08-2018 में अनुमंडल अधिकारी मंझौल ने नोटिस जारी कर हमारी भूमि को अवैध बता दिया।
कहते हैं कावर के किसान
1989 में अधिसूचना आई। यह फैसला विवाद से भरा और जल्दबाजी में लिया गया था। वर्तमान से सर्वे में एक विभागीय पत्र के आधार पर जमीन वन विभाग को दिया जा रहा है, जो सर्वे नियमावली के अनुसार भी गलत है। आलोक कुमार, मंझौल।
वन विभाग और प्रशासन चाहती है कि साइबेरियन अतिथि खत्म हो जाएं ,क्योंकि साइबेरिया से आए अतिथि का मुख्य भोजन यहां की फसल है। वन विभाग इसको बंद करना चाहती है। जयशंकर भारती, मंझौल।
अनुमंडलाधिकारी एवं समाहर्ता ने कावर पक्षी आश्रयणी को 10 हजार एकड़ के लगभग भूमि वन विभाग को सौंपने की बात की है। उस भूमि पर जिसमें किसानों को दावा आपत्ति करने ही नहीं दिया गया और उसे वाद रहित मान लिया गया। सोनू, मंझौल।
चार सौ के लगभग दावा खारिज कर दिया गया। कहा गया कि किसान सुनवाई में हाजिर हीं नहीं हो पाए। जबकि उप समाहर्ता और एसडीएम मंझौल को यह न्यायिक क्षमता ही नहीं है कि ऐसे मामलों में फैसला सुना सकें। बल्लभ बादशाह, मंझौल।
बिना सुने हमलोगों का दावा खारिज कर दिया गया। सर्वे में वन विभाग के नाम से भूमि अंकित की जा रही है।अभय चौधरी, चेरिया बरियारपुर ।
इसरो के स्पेस एजेंसी के सर्वे के अनुसार कावर टाल में वेटलैंड का जो रकबा चिन्हित किया गया है, वो गलत और बेमतलब का बताया गया है। कई वर्षों से कावर सूखी हुई है। अत्यधिक वर्षा होने पर भी दो हजार एकड़ में भी पानी नहीं टिक पाता है। अनीस कुमार, छौड़ाही।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।