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बटेश्वरनाथ मंदिर : यहां ऋषि वशिष्ठ ने किया था तप, भगवान शिव की आराधना, गौतम ब‍ुद्ध से भी जुड़ा है इतिहास

बटेश्वरनाथ मंदिर भागलपुर के कहलगांव में यह प्रसिद्ध शिव मंदिर है। यहां ऋषि वशिष्ठ ने तप किया था। उन्‍होंने भगवान शिव की आराधना की थी। यह मंदिर का इतिहास गौतम ब‍ुद्ध से भी जुड़ा है। सावन में यहां काफी भीड़ होती है।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Sun, 17 Jul 2022 12:34 PM (IST)
बटेश्वरनाथ मंदिर : यहां ऋषि वशिष्ठ ने किया था तप, भगवान शिव की आराधना, गौतम ब‍ुद्ध से भी जुड़ा है इतिहास
बटेश्वरनाथ मंदिर : कहलगांव के इस मंदिर की ख्‍याति काफी है।

ऑनलाइन डेस्‍क, भागलपुर। सावन 2022 : कहलगांव से दस किलोमीटर दूर उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे बटेश्वर पहाड़ की तराई में बाबा बटेश्वरनाथ का मंदिर है। गंगा और कोसी नदी का यह संगम स्थल भी था। यहां सालों भर शिवभक्तों एवं पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। सावन माह में बाबा बटेश पर जल अर्पण के लिए भीड़ लगी रहती है। माघी पूर्णिमा एवं भादो पूर्णिमा पर हजारों श्रद्धालु गंगा स्नान कर बाबा बटेश पर जलार्पण के लिए आते हैं। यह पूर्व एवं उत्तर बिहार का महत्वपूर्ण पौराणिक धार्मिक स्थल है। यहां भागलपुर, गोड्डा, साहेबगंज, कटिहार, पूर्णिया, मधेपुरा, किसनगंज, बेगूसराय, दरभंगा, मधुबनी तक के शिवभक्त आतें हैं।

मंदिर का इतिहास

बटेश्वरस्थान में आपरूपी महादेव हैं। यहां मुनिवर वशिष्ठ ने भी तप और आराधना की थी। पहले यह मंदिर वशिष्ठेश्वर महादेव कहलाता था। बाद में बटेश्वर महादेव कहलाने लगा। यहां भगवान बुद्ध ने भी तीन माह रहकर साधना वर्षावास किया था। चौरासी मुनि एवं अन्य ऋषि-मुनियों ने भी साधना की थी। यह सिद्ध तंत्र पीठ भी है। बंगाल के सेन राजा ने सन 1216 में मंदिर का निर्माण कराया था। सन 1272 में इसका जीर्णोद्धार बंगाल के हुगलिवासी मथुरानाथ चट्टोपाध्याय ने कराया था। इसके बाद समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है।

मंदिर की विशेषता

बाबा बटेश्वरनाथ के चारों दिशाओं में चार और महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं। जिनकी अलग-अलग महत्ता है। बाबा बटेश्वर सहित इन सभी मंदिरों में शिव के सामने पार्वती की नहीं बल्कि मां काली की प्रतिमा है।

बटेश्वरनाथ महादेव मंदिर के सामने मां गंगा की प्रतिमा, परिहार नाथ महादेव के सामने वासरी देवी भगवती की प्रतिमा, घोड़ेश्वर नाथ महादेव एवं जंगलेश्वर महादेव के सामने गंगा की प्रतिमा है। बटेश्वर नाथ के सामने स्थित मां काली मोक्ष दायिनी हैं। बटेश्वरस्थान विक्रमशिला का उदगम स्थल रहा है।

बाबा बटेश्वरनाथ से सच्चे मन से मांगने पर मुरादें पूरी होती हैं। इस मंदिर की ख्याति बहुत दूर-दूर तक फैली हुई है। बाबा बटेश की पूजा-अर्चना के लिए हर दिन भीड़ लगी रहती है। सावन की सोमवारी को तो यहां पूजा करने वालों का हुजूम उमड़ता है। हर दिन रुद्राभिषेक और आरती का आयोजन होता है। यहां की गंगा से जल भरकर कांवरिया बाबा बासुकीनाथ के दरबार भी जाते हैं। - चन्द्रशेखर झा, पुजारी

इस पौराणिक धार्मिक स्थल के विकास की जरूरत है। यह पर्यटन स्थल भी है। विदेशों से भी यहां पर्यटक आते हैं। भादो पूर्णिमा और माघी पूर्णिमा पर करीब डेढ़ से दो लाख श्रद्धालुओं का आना होता है। पर्यटन स्थल के रूप में भी इस स्थान को विकसित करने की जरूरत है। बटेश्वरस्थान की काफी महत्ता है। - त्रिभुवन शेखर झा, पूर्व मुखिया, ओरियप पंचायत