मिसाल बना हॉकर: रिक्शा चलाया; सिलेंडर घर-घर पहुंचाया, 20 साल से अखबार बांट रहे 'कर्मयोगी' ने दैनिक जागरण पर की पीएचडी
Bhagalpurs News Paper distributer Rakesh Done PhD on Dainik Jagran नाथनगर अनाथालय रोड के रहने वाले राकेश को तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग से 18 दिसंबर को डॉक्टर की उपाधि मिली है। विषय है-हिंदी पत्रकारिता में दैनिक जागरण का योगदान (संदर्भ बिहार भागलपुर)। फिलहाल डॉ. राकेश सुल्तानगंज स्थित गोपालन इंटर कॉलेज में साल 2019 से गेस्ट टीचर के रूप में भी कार्यरत हैं।
अभिषेक प्रकाश, भागलपुर। कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मंजिल कदम चूम ही लेती है। 20 साल से लगातार घर-घर अखबार पहुंचा रहे कर्मयोगी राकेश ने अपने नाम के आगे हॉकर की जगह डॉक्टर जोड़ इस लाइन को साकार कर दिखाया है। राकेश ने परिवार का पेट पालने के लिए ठेला-रिक्शा चलाया। अभी भी तड़के अखबार बांटने के बाद गैस सिलेंडर घर-घर पहुंचाते हैं। मजदूरी भी की, लेकिन हार नहीं मानी।
नाथनगर अनाथालय रोड के रहने वाले राकेश को तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग से 18 दिसंबर को डॉक्टर की उपाधि मिली है। विषय है-हिंदी पत्रकारिता में दैनिक जागरण का योगदान (संदर्भ बिहार, भागलपुर)। संभवत: घर-घर अखबार पहुंचाते-पहुंचाते दैनिक जागरण पर शोध करने वाले राकेश पहले कर्मयोगी हो सकते हैं।
दैनिक जागरण ने भागलपुर में आने के बाद कैसे अपनी बेहतर प्रस्तुति, बेहतर कंटेंट व सामाजिक सरोकार के साथ पाठकों के दिलों पर राज किया, यह उनकी शोध का विषय था। यह भागलपुर के साथ-साथ बिहार का भी नंबर वन अखबार बना। डॉ. राकेश सुल्तानगंज स्थित गोपालन इंटर कॉलेज में साल 2019 से गेस्ट टीचर के रूप में भी कार्यरत हैं।
जीवन के संघर्ष में चार बार छूटी पढ़ाई
डॉ. राकेश बताते हैं कि जीवन के संघर्ष में उन्होंने कई पतझड़ देखे हैं। इस संघर्ष में उनकी चार बार पढ़ाई भी छूटी। घर की दयनीय स्थिति देखकर मैट्रिक करने से पूर्व ही वे 1996 में दिल्ली चले गए थे। वहां रिक्शा और ठेला चलाकर कुछ पैसे जमा किए और चार वर्ष बाद जनवरी, 2000 में घर लौटे। परिवार वालों ने फिर बाहर नहीं जाने दिया। साल 2000 में उन्होंने एनवाई हाई स्कूल, नारायणपुर से मैट्रिक किया। चार भाई-बहनों में सबसे बड़े राकेश ने दो छोटी बहनों की शादी के लिए अपने पिता बद्दो यादव के साथ छह वर्ष तक मजदूरी की।
साल 2006 में उन्होंने मुंगेर जिले के इंटर स्तरीय विद्यालय मंझगांय, तारापुर से इंटर किया। घर की स्थिति नहीं सुधरी तो साल 2008 में फिर पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 2008 से 2011 के बीच उन्होंने अखबार बांटते हुए टीएनबी कॉलेज से हिंदी में स्नातक किया।
इसके बाद हिंदी स्नातकोत्तर विभाग से 2011-13 सत्र में मास्टर की डिग्री ली। 2013 में उनकी शादी हो गई। अखबार बांटते हुए उन्होंने 2014 में पीएचडी की परीक्षा पास की। 2015 में रजिस्ट्रेशन करवाया। घर संभालने के लिए गैस वेंडर का भी काम शुरू किया। चार वर्ष की पीएचडी में उन्होंने दो वर्ष का अतिरिक्त एक्सटेंशन भी लिया।
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